झोला उठाकर फटाफट
अक्सर जब मैं अपनी कोई बात, अपनी पत्नी से मनवाना चाहता हूं, तो गुस्से में आकर कह देता हूं, मेरी बात मानना हो तो मानो वर्ना मैं अपना झोला उठाकर अभी चल दूंगा फटाफट। पत्नी डर जाती है, फौरन मेरी बात किसी आज्ञाकारी भक्त की तरह मान लेती है। यानी मैं अपनी पूरी स्वातंत्रता में जीते हुए, पत्नी को हर बार इमोशनल ब्लैकमेल करके मौज से, अपने दिन काटता जा रहा हूं। अब मेरे बड़े सुकून से अच्छे दिन चल रहे थे, पर उस दिन जब मैंने यह बात दोहराई, तब वे पलट कर बोलीं-तू जो हरजाई है, तो कोई और सही और नहीं तो कोई और सही।’
मैंने मुंह बना कर कहा-लग रहा आजकल टीवी सीरियल कुछ ज्यादा ही देखने लगी हो। वो नजाकत से जुल्फें लहरा कर बोली-हां आजकल देख रहीं हूं ‘भाभी जी घर पर हैं, भैया जी छत पर हैं।’
मैंने तैश में कहा-इसी लिए आजकल तुम कुछ ज्यादा ही चपड़-चपड़ करने लगी हो। तुम नहीं जानती हो, मैं जो कहता हूं, वो कर के भी दिखा सकता हूं। मुझे कोई लंबी-लंबी फेंकने वाला जोकर न समझना।’
वह भी नाक-भौं सिकोड़ कर गुस्से से बोली-हुंह! तुम भी नहीं जानते मैं, जो कह सकती हूं, वह कर भी सकती हूं, जब स्त्रियां सरकारें चला सकती हैं। गिरा सकती हैं, तो उन्हें सरकारें बदलने में ज्यादा टाइम नहीं लगता।’
मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। अपना गियर बदल कर बेहद मरियल आवाज में, मैं बोला-झोला खूंटी पर टंगा है, अब वह वहीं टंगा रहेगा। मेरी इस अधेड़ अवस्था में सरकार न बदलना। मेरा साथ न छोड़ना, वरना मैं कहीं मुंह दिखाने के लायक न रहूंगा। मेरी खटिया खड़ी बिस्तरा गोल हो जायेगा। खट-पट किसके घर में नहीं होती भाग्यवान! मुझ पर तरस खाओ! तुम मेरी जिंदगी हो! तुम मेरी बंदगी हो! मेरी सब कुछ हो!
तब वे मुस्कुराकर बोलीं-बस.. बस ज्यादा ताड़ के झाड़ पर न चढ़ो! ठीक है.. ठीक है, चाय बनाकर लाइए शर्मा जी। आप की बात पर विचार किया जायेगा। मेरा निर्णय अभी विचाराधीन है।
चाय बनाने के लिए रसोई की ओर मैं चल पड़ा। सामने टंगा झोला मुझे मुंह चिढ़ा रहा है।
बेटी बचाओ अभियान में अब तन-मन से जुट पड़ा हूं। झोला उठाकर फटाफट जाने वाली मेरी अकड़ जा रही है। भले ही अब हमें कोई पत्नी भक्त कहें, पर कोई गम नहीं, लेकिन पत्नी के वियोग में एक पल रहना मुझे गंवारा नहीं, साथ ही पत्नी के छोड़कर जाने पर जगहंसाई झेल पाना भी मेरे बस की बात नहीं।
— सुरेश सौरभ