कविता

दो जून की रोटी

दो जून की रोटी 

यों ही नहीं मिलती 

कोई कड़ी धूप में चलाए फावड़ा,

चलाएं कुदाली 

कोई करता साफ गंदी नाली ।

दो जून की रोटी 

यों ही नहीं मिलती 

कोई तेज धूप में खींचता रिक्शा

कोई रात-रातभर जागे

मेहनत करे कल कारखानों में….

दो जून की रोटी 

किसी को मिलती बड़ी मुश्किल से तो 

कोई काजू, बादाम, पिस्ता उढ़ाए 

जब मेहनत और किस्मत रंग दिखाये 

रे हरिया! जीवन बदल जाये ।

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111