सामाजिक

चलते रहने का नाम जिंदगी है 

चलते रहने का नाम ही जिंदगी है। जिनको जिंदगी से शिकायत है वे पूरी जिंदगी शिकायत ही करते रह जाते हैं। ‘कभी किसी को मुक्कमल जहां नहीं मिलता। कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता।’ मानव जीवन के सच को बयां करती ये पंक्तियां हमें पोजिटिव बने रहने और जीवन के हर पल को आनंद से जीने का मार्ग दिखाती है। मनुष्य जीवन कर्म-प्रधान है। कर्म का कोई विकल्प नहीं है, न ही हो सकता है। हां, हर व्यक्ति के कर्म करने का माध्यम और उद्देश्य अलग-अलग है। कोई दिमाग का इस्तेमाल ज्यादा करता है तो कोई शरीर का। किसी को नाम-शोहरत चाहिए तो किसी को खूब धन-दौलत और किसी को दोनों। लेकिन बिना मेहनत के जीवन में कोई भी सफलता नहीं मिलती है। परिस्थितियां कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल कुछ भी हो सकती है क्योंकि मनुष्य का जीवन परिवार, दोस्त, पैसा, धर्म, जाति आदि कई कारकों पर निर्भर करता है और इतने कारकों पर हर पल नियंत्रण संभव नहीं है। लेकिन जिसने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी वही जीवन-समर में विजयी होता है और सिकंदर कहलाता है।

पूरी दुनिया ऐसी कहानियों से भरी पड़ी है जिन्होंने कर्म-पथ पर चलते हुए सबके लिए मिशाल पेश की। प्रसिद्ध मीडियाकर्मी ओपरा विन्फ्रे, प्रसिद्ध लेखिका जे के राउलिंग, एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स, अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन, भारत रत्न अब्दुल कलाम, क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धोनी, फिल्म ऐक्टर रजनीकांत जैसी शख्सियत कुछ उदाहरण मात्र हैं। इन सब ने अपने  जीवन के सफर में आए विपरीत परिस्थितियों को अपने मार्गं का बाधक नहीं बनने दिया। उससे लड़े और सफल हुए।  सभी सफल व्यक्ति की कहानी यह बताती है कि वे  आत्मविश्वास से लवरेज थे। उन्होंने स्वयं पर भरोसा किया; मेहनत किया और कठिनाइयों से लड़ते हुए हर दिन अपने को बेहतर बनाने में लगे रहे। उन्होंने चुनौतियों को अवसर के रूप में लिया और समयानुकूल तकनीक, कौशल, बुद्धि -विवेक का इस्तेमाल करते हुए कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की।

मानव जीवन के संबंध में जब हम बात करते हैं तो कुछ  तथ्यों पर गौर करना जरूरी है। पहला पृथ्वी पर हर मनुष्य की मृत्यु तय है और दूसरा हर व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के प्रकृति ने चौबीस घंटे दिया है। मानव जीवन की सफलता और असफलता की कहानी इसी चौबीस घंटे के इस्तेमाल करने की कहानी है। 

हर व्यक्ति का जन्म कहां  होगा, किस परिवार में होगा यह नियति तय करती है। जन्म के समय की सामाजिक, आर्थिक परिवेश पर मनुष्य का कोई नियंत्रण नहीं है। लेकिन उसके बाद की कहानी व्यक्ति स्वयं लिखता है। जो‌ व्यक्ति अपने सामाजिक और आर्थिक हैसियत का रोना न रोकर उपलब्ध संसाधनों और समय का औप्टिम्म इस्तेमाल करते हुए अपने जीवन की समस्याओं को सुलझाने में लगा रहता है वह जिंदगी को जीता भी है और जंग को जीतता भी  है। जरूरी नहीं कि उसे मनचाहा सफलता मिल ही जाए, लेकिन उन सपनों को पूरा करने का सफर व्यक्ति को अनुभवी, दृढ़निश्चयी और आत्मविश्वास से लवरेज करता है। ऐसा इंसान जीवन के हर पल का आनंद उठाता है।

गीता में कहा गया है कि कर्म करो लेकिन फल की इच्छा नहीं करो। मेरा मानना है कि यह सिद्धांत सुखी जीवन का सूत्र है। इसे एैसे समझ सकते हैं कि जीवन गिफ्टेड है। अभी तक ऐसी कोई संस्था सरकारी या गैरसरकारी, तंत्र-मंत्र, टेक्नोलॉजी, दवा आदि नहीं बनी है जो हमारे जीवन की गारंटी दे सके। किसी भी व्यक्ति का कोई भी पल उसका आखिरी पल हो सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी पर प्रति मिनट लगभग 105 व्यक्ति की मृत्यु होती है। स्वस्थ से लेकर बीमार सभी प्रकार के लोग हर पल जीवन की जंग हारते हैं। चूंकि हम मृत्युलोक जाने वाले हर व्यक्ति को नहीं जानते हैं इसलिए हमें अपने आसपास का जीवन बड़ा सामान्य लगता है। वस्तुत: अगर हम जीवित हैं तो वह चमत्कार है। इस चमत्कार करने वाले को ही लोग राम, कृष्ण, अल्लाह, नानक, बुद्ध आदि के नाम से पूजते हैं। घर से सुबह निकलकर शाम को सही सलामत घर लौटना, रात में सोने के बाद सुबह स्वयं के साथ सभी बंधु- बांधवों को नार्मल पाना ईश्वर का चमत्कार है। स्पष्ट है ऐसे अनिश्चित जीवन में कर्म ही एकमात्र विकल्प है जो आनंद दे सकता है और फल चूंकि कई कारकों पर निर्भर है इसलिए वह अनिश्चित है। इसीलिए फल की अनावश्यक चिंता नहीं करनी चाहिए।

हर व्यक्ति अनंत संभावनाओं का स्रोत है। कला, साहित्य,विज्ञान,खेल कोई भी क्षेत्र हो, वहां कोई-न-कोई व्यक्ति ही अपनी प्रतिभा से नित्य नई ऊंचाइयों को छू रहा है। यदि हर व्यक्ति  प्रत्येक दिन अपने ज्ञान, स्कील, टेक्नोलॉजी, व्यवहार को पिछले दिन की तुलना में ऐड ऑन करने की कोशिश करेगा तो निश्चित रूप से वह सफलता के नए आयाम को प्राप्त करेगा। इससे उसका जीवन तो सार्थक होगा ही, परिवार, समाज और राष्ट्र का भी उत्थान होगा। वैसे तरक्की का एक दूसरा रास्ता भी है जिसका इस्तेमाल आज के दौर में बढ़ चढ़कर किया जा रहा है। स्वयं को यथावत रखते हुए अपने संभावित काॅम्पिटीटर के मार्ग में बाधा पैदा कर उसे आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश करना। लेकिन यह मार्ग न केवल जीवन को नकारात्मक विचारों से भर देता है बल्कि दूसरों को रोकने की कोशिश में बाकी दुनिया बहुत आगे निकल जाती है और वह स्वयं बीतते समय के साथ घोर कुंठा और अवसाद का शिकार हो जाता है क्योंकि जो उसे संभावित काॅम्पिटीटर दिख रहा होता है वह वस्तुत: उसकी ईर्ष्या और संकुचित सोच का परिणाम होता है। सच्चाई यह है कि दुनिया में हर समय कोई-न-कोई तुलनात्मक रूप से धन-दौलत, नाम-शोहरत में किसी दूसरे को पछाड़ रहा होता है लेकिन ऐसे हर व्यक्ति की  पहचान करना संभव नहीं है।

बात पते कि यह है कि जब जीवन का ही भरोसा नहीं है तो उस जीवन से जुड़ी सफलता- असफलता की गारंटी का प्रश्न अपने आप बेमानी हो जाता है। ऐसे में जीवन में आनंदित रहने का एकमात्र एकमात्र उपाय है अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए समर्पित होकर  निरंतर कर्म करते रहना। लक्ष्य प्राप्ति के सफर का आनंद उठाते हुए निरंतर प्रयत्नशील रहना। यदि लक्ष्य प्राप्त हो जाता है तो सफ़र दूसरों के लिए मिशाल बन जाती है अन्यथा वह सफर आपको और अधिक के बेहतर और अनुभवी इंसान बना देती है। स्पष्ट है भाग्य का थ्योरी केवल शिकायत करने वाले लोगों का अस्त्र है। कर्म पर विश्वास करने वाले ज्यादा शिकायत किए बिना अपने पर भरोसा करते हुए निरंतर मेहनत करते रहते हैं। उनके लिए जिंदगी चलते रहने का नाम है।

— मृत्युंजय कुमार मनोज 

मृत्युंजय कुमार मनोज

जन्म तिथि -3.8.1977 पेशा - सरकारी नौकरी (भारत सरकार) पता- टेकजोन-4, निराला एस्टेट ग्रेटर नोएडा (पश्चिम) उ.प.201306