कहानी : सिर्फ एक डब्बा हमारे लिए
लाख व्यस्तता के बीच भी अवकाश देख नीलू कुछ खरीदारी की इच्छा जाहिर की जिससे रमेश ना भी न कर सका और दोनों मौसम का सुहाना रूप देखकर चाय की चुस्कियां के साथ ही डिमो ट्रेन से सिलचर के लिए रवाना हो गया।
पूरा रास्ता हंसी -ठहाके मौज- मस्ती के साथ बीता। स्टेशन पर उतरते ही हवाओं का झोंका पुरे हृदय तल को शीतल कर गया। निकलते ही जल पान आदि ग्रहण कर चार पहिया से हम दस किलोमीटर की दूरी पर भोले बाबा की प्रतिष्ठित मंदिर सिलीगुड़ी पहुंचे। वहां भोले बाबा और राम के पूजा अनुष्ठानों के बाद बच्चों के लिए कुछ खरीदारी तथा कूछ रसोई की जरूरत की कुछ आवश्यक वस्तुएं ले, मध्यान्ह भोजन आदि से निवृत होकर 3:00 बजे तक हम दोनों वापस स्टेशन के लिए रवाना हो गए।
रेलगाड़ी में स्थान ग्रहण कर दिन का मोयना कर ही रहे थे। इतने में फटाक से एक खाकी कमीज, सिर पर लाल टोपी, हाथों में डंडा लिए पधारे। कहने लगे यह महिलाओं का डब्बा है यहां पुरुषों को बैठनासे वर्जित किया जाता है। यह सुनते ही दोनों एक दूसरे को दंग भरी नजरों से देखते रहे। इतने में रमेश ने झठ से कहा “यह कैसे हो सकता है।”मेरी पत्नी बीमार है मैं उसे छोड़कर नहीं जा सकता”।”उन्होंने बुद बुदाते हुए स्वर में कहा —कहां-कहां से नए-नए कानून बना कर लाते हैं।
हवलदार साहब सभी को चेतावनी देते हुए सामने फाटक की ओर बढ़ते गए और दूसरे फटाक से उतरते देख जाने की तैयारी में लगे लोग भी पुनः अपना स्थान ग्रहण कर लिये।
करीब 20 मिनट बाकी थे अभी भी रेल, स्टेशन से निकलने को ! पुनः एक बार इसी सिलसिले में हवलदार साहब राऊंड मारने पहुंचे, जिस बोगी में हम दोनों रमेश और नीलू ही थे बाकी उस वक्त तक पूरी सीट खाली पड़ी थी। उन्होंने धमक भरे स्वर में कहा मैंने कहा ना –आप लोग दूसरे डब्बे में जाकर बैठिए यहां पुरुष नहीं बैठ सकते।”आप लोग दूसरे डब्बे में चले जाइए। नीलू भी उनकी बात पर बड़ों को ध्यान से सुनती रहे।
हवलदार साहब के आगे बढ़ते देख कुछ लोगों का एक जमावाडा उनकी बोगी में आया। उनमें एक सुंदर सुशील कन्या भी थी। यही कोई 18 19 की उपयुक्त युवा बड़े-बड़े स्तन, गोरी चिकनी टांगें, स्तन को देखा योनि की कल्पनाओं की अनुभूति मात्र युवाओं को आकर्षित कर रही हो, लेकिन स्वार्थ की चादर से ढके हवलदार साहब की बातो काव्यंग कर करते देख नीलू सच में पड़ गई। पुरुषों का विरोध तो समझ में भी आता है लेकिन एक युवा लड़की होकर ……यह भी तो सोचती कि कुछ दूर के सफर में ही कितनी ही महिलाओं लड़कियों को अकेले तय करना पड़ता है, माता-पिता को कितनी चिंता होती है ! यदि एक महिलाओ के डब्बा मिल जाए तो थोड़ी सुरक्षा तो जरूर होगी। वह मन ही मन सोचती रही।
ट्रेन स्टेशन से आगे निकलते ही हंसी मज़ाक का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा था। मन प्रसन्न भी हो रहा था लेकिन युवा लड़की की तीखी बातें उफ…. इतने में ट्रेन अगले स्टेशन पर थमी ही थी कि रमेश झलमुरी का पोटला लिए पहुंचे, लो खा लो, अच्छा लगा तो सोचा तुम्हारे लिए ले आऊं। अरे इतने लोग तो है यहां, मैं भी यहीं बैठ जाता हूं, रमेश ने कहा।
(नीलू और भी गंभीर मुद्रा में)
रमेश : क्या हुआ क्या सोचने लगी ?
नहीं बस यूं ही.. देख रही थी,
“क्या??”
“अब आप ही सोचिए, आप यहां आकर बैठने की सोच रहे हैं इतनी बड़ी ट्रेन में आप लोग एक डिब्बा हम औरतों को देने के लिए तैयार नहीं है ! और समानता का डंका पीटने के लिए न जाने कितनी ही हर रोज कानून बनाते हैं लेकिन असल स्थान में आज भी लोगों के विचारों में बहुत भेदभाव है। देश के 76 साल बाद हम अमृत महोत्सव तो जरूर मना रहे हैं लेकिन विचारों में अमृत खोलना अभी भी बहुत बाकी है बहुत वक्त बाकी है युवा पीढ़ी में ऐसे विचारों को घोलने में …. वह भी एक लड़की के लिए ही इतनी बड़ी ट्रेन में एक डिब्बा नहीं मिल सकता!! यह कहां का न्याय है ??
“आप क्या-क्या सोचती रहती हैं”!
क्या करूं देखकर बड़ा ही दुख होता है।ऐसी स्थिति रही तो भारत को विकसित देश बनने में न जाने और कितने ही वर्ष लग जाए, क्योंकि यह तभी संभव है जब हम युवाओं में समानता का पेड़ लगा सके और उनमें समानता का भाव लाने के लिए हमे उनकी जड़ों को सिचना होगा। बचपन से उन्हें हर क्षेत्र में समानता का डंका लाना होगा जिसके लिए हमें हम मां-बाप को पहले भूमिका अदा करनी होगी।
जबकि यह सच है कि बोगी में हर डब्बे में पुरुषों की संख्या ही अधिकांश है
महिलाएं ननगणय ही है, लेकिन यह भी सच है कि फिर भी पुरुषोत्तम का चादर ओढ़े औरतों के लिए यह भी गवारा नहीं!
उन्हें में से एक आप भी हो! बात की गंभीरता को नीलू कम करना भी चाही !
लेकिन रमेश बोल पड़े, आपकी बात सौ टके की है, लेकिन यह भी तो सोचिए क्या सिर्फ महिलाओं से यह डब्बा भर पाता?
पता नहीं आज पहला दिन है जिससे नहीं भरता, लेकिन जैसे-जैसे यह महिलाओं को सूचना मिलेगी मुझे विश्वास है कि वह इसी डब्बे में आना ज्यादा पसंद करेंगी! स्वच्छंदता तो हर किसी को प्यारा है, एक पक्षी को भी सोने के पिंजरा और खुला आकाश दिया जाए तो वह खुले आकाश को ही चूमेगी। इस तरह महिलाओं को भी स्वच्छंदता से पसरने का मौका मिलेगा, तभी देश का असल विकास भी संभव है। तभी देश को विकसित राज्य घोषित करने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि जिस तरह कहा जाता है कि एक पुरुष यदि पढ़ा लिखा हो तो परिवार की मूल जरूरत को पूरा करता है, वही एक महिला यदि पढ़ी लिखी एवं कार्यरत हो तो वह अपनी शौक के साथ परिवार की हर सदस्यों की इच्छाओं का भी ध्यान रखती है। हर सदस्य अपनी खुली विचारों से अपना विस्तार कर पता है। कोई किसी पर निर्भर नहीं होता, जिससे देश का जीडीपी बढेगा, तो स्वाभाविक है कि देश का भरपूर विकास भी होगा। सब कुछ होगा युवा पीढ़ी की सोच से संभव है।”
“अरे श्रीमती जी, माफ कीजिएगा और मैं जा रहा हूं अपने डब्बे में, “
“अरे नहीं रुकिए, क्या होगा सिर्फ आपके चले जाने से कानून तो नहीं बन पाएगा। उसे लागू करने के लिए हमें युवाओं को समझना होगा। “
रमेश ने जमावड़ा को इशारा करते हुए पूछा– कहां से आ रहे हो तुम लोग ?
“अंकल सब नागडा कॉलेज से ही यूं टी के परीक्षा देकर आ रहे हैं, “
“अच्छा ..”
“कैसा हुआ परीक्षा ?”
“अरे अंकल, पूछिए मत बहुत कठिन था सर के ऊपर से जा रहा थे प्रश्न?’
“क्यों बेटा वह एक्चुअली अंकल हमारी इस एंट्रेंस की कोई प्रिपरेशन नहीं कराई गई थी इसीलिए…..”
“बेटा लेकिन यह डिब्बा केवल महिलाओं के लिए ही बताया जा रहा है, इसमें पुरुष का घूसना वर्जित किया गया है।”
हां, पुरे डब्बे में सिर्फ आप लोगों के ही आवाज आ रही थी “
हां अंकल, पुलिस अंकल बोल रहे थे, लेकिन क्या करूं….
बेटा, यदि कानून बना है तो हमारे अच्छे के लिए ही बना होगा। हमें मनाना चाहिए।”
हां अंकल, वह हमने पहले ध्यान नहीं दिया और आकर बैठ गए। अब किसी दूसरे डब्बे में जाकर सीट भी नहीं मिलता।”
“हां, बात तो सही है तुम्हारी, लेकिन आगे से ख्याल रखना “।
जरूर अंकल, “
रमेश ने नीलू की तरफ मुस्कुरा कर हल्की निगाहों से कहा –क्या जी देखा आपने …
“हां जी, देखा ; जानती होइंसानों को यदि प्यार से समझाया जाए तो एक पत्थर को भी मोम बनाया जा सकता है।”
“हां लेकिन अब हवलदार साहब पूरी डब्बे के लोगों को समझने लगे तो हो गया उनकी ड्यूटी…. नीलू ने कहा.”
“हां, इस तरह के कानून यदि हमारे देश के सीनियर सिटीजंस अपनी कंधों पर ले तो हर कानून को का बखूबी पालन हो पाएगा और देश का भरपूर विकास भी हो पाएगा।”
“हां चलिए, हमारे स्टेशन में ट्रेन घुसने ही वाली है।
“चलते हैं …”
दोनों खुशी से चल दिए। रमेश पीछे मुड़कर बच्चों की ओर हाथ दिखाते हुए–बाय बच्चों, आगे से ख्याल रखना….
सभी मुस्कुराकर जोर की ध्वनि में बोले— जरूर अंकल…
— डोली शाह