पर्यावरण

जलवायु अनुरूप नगरों की जरूरत

सूर्यअपनी प्रचंड किरणों से पृथ्वी, प्राणी के शरीर, समुद्र और जल के अन्य स्रोतों से नमी सोख लेता है। नतीजतन उम्मीद से ज्यादा तापमान बढ़ता है, जो गर्म हवाएं चलने का कारण बनता है। यही हवाएं लू कहलाती हैं। अब यही हवाएं देश के पचास से ज्यादा शहरों को ‘उष्मा द्वीप’ (हीट आइलैंड) में बदल रही हैं। राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और मध्यप्रदेश में पारा 43 से 47 डिग्री के बीच बना हुआ है। राजस्थान के बाड़मेर में दिन का तापमान 48 डिग्री और कश्मीर में गरम हवाओं के चलते तापमान 34 डिग्री तक पहुंच गया है। आमतौर से गरम हवाएं तीन से आठ दिन चलती हैं और एक-दो दिन में बारिश हो जाने से तीन-चार दिन राहत रहती थी, लेकिन इस बार गरम हवाएं चलने की निरंतरता बनी हुई है। इस कारण कई शहर ऊष्मा द्वीप में बदल गए हैं और रहने लायक नहीं बचे हैं। इसके प्रमुख कारणों में शहरीकरण का बढ़ना और हरियाली का क्षेत्र घटना माना जा रहा है।

सामान्य स्थिति में द्वीप का अर्थ समुद्री या नदी घाटियों में पानी से घिरे उस ऊंचे स्थल से लिया जाता है, जिसके चारों ओर जल भरा होता है। लेकिन अब उष्मा द्वीप उन शहरी इलाकों को कहा जाने लगा है, जो ज्यादा तापमान से झुलस रहे हैं। ज्यादातर उष्मा द्वीप घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में आमद दर्ज करा रहे हैं। ऐसे इलाकों में बाहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक तापमान सामना करना पड़ता है। ऊंची इमारतें, सीसी की सड़कें, पैदलपथ और अन्य बुनियादी ढांचागत विकास इसके लिए दोषी हैं। हरियाली कम होने के कारण उच्च ताप वाले क्षेत्र उष्मा- द्वीप में परिवर्तित हो जाते हैं। इन क्षेत्रों में दिन का तापमान लगभग 1- 7 डिग्री और रात का तापमान लगभग 2-5 डिग्री तक बढ़ जाता है। सीएसई ने देश में अलग-अलग जलवायु वाले नौ शहरों के अध्ययन में पाया कि जयपुर जैसे शहरों में ज्यादा तापमान वाले दिनों में शहर का 99.52 फीसद हिस्सा गर्म हवाओं के केंद्र में आकर ऊष्मा- द्वीप बन जाता है। सतत आवास कार्यक्रम (सस्टेनेबल हैबिटैट प्रोग्राम) के निदेशक रजनीश सरीन का कहना है कि हीट सेंटर उस क्षेत्र को कहते हैं, जहां जमीनी सतह का तापमान (एलएसटी) छह साल या उससे अधिक समय में बार-बार मैदानी इलाकों में 45 डिग्री से ऊपर दर्ज किया जा रहा है। महानगरों में हरियाली और जल संरचनाओं का क्षेत्र कम होने से हीट सेंटर का विस्तार हो रहा है। शहरों में हरियाली और नमी बनाए रखने वाले तालाब, नदी- झीलों का अस्तित्व सिमटता जा रहा है। यह जलभराव गर्मी से बचाव करता था। इनके सिमटने से शहरों में और शहरों के आस-पास बंजर भूमि और ईंट, सीमेंट, कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं, जो गर्मी बढ़ाने का काम कर रहे हैं। सीएसई ने नागपुर, अहमदाबाद, चेन्नई, पुणे, जयपुर, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता और भुवनेश्वर में यह सर्वेक्षण किया है। लेकिन जिन शहरों में इस नजरिए से सर्वे नहीं हो पाया है, वे भी ऐसे ही हालातों के शिकार हो सकते है।

मानव निर्मित प्रदूषण से जुड़ी इस आपदा के कारणों में आधुनिक विकास और बढ़ता शहरीकरण है। इन्हीं कारणों से हवाएं आवारा होकर लू का रूप लेने लगी हैं। सुनामी जैसे तूफान इन्हीं आवारा हवाओं के दुष्परिणाम हैं। अमेरिका के नेशनल ओसियानिक एंड एटमासफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन की रपट के अनुसार भारत ही नहीं, दक्षिण एशिया के कई देश गरम हवाओं से जूझ रहे हैं। इन देशों में गरम हवाएं चलने की आशंका 45 गुना बढ़ गई है। इन देशों में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमा शामिल हैं। वियतनाम में तो हालात इतने बदतर हो गए हैं कि गर्मी की वजह से कई तालाब पूरी तरह सूख गए हैं और लाखों टन मछलियां मर गई हैं। पश्चिम एशिया के देश सीरिया, इजराइल, फिलिस्तीन, जार्डन और लेबनान में गरम हवाएं पांच गुना बढ़ सकती हैं। एशिया में घातक गरम हवाएं लगातार चलने का यह तीसरा वर्ष है। इसकी एक वजह अलनीनो भी मानी जा रही है। प्रशांत महासागर से आने वाली गरम हवाओं की वजह से दुनिया में गरम हवाएं चल रही हैं।

हरेक जुबान पर प्रचंड धूप और गर्मी जैसे बोल आमफहम हो गए हैं। हालांकि लू और प्रचंड गर्मी के बीच भी एक अंतर होता है। गर्मी मौसम में ऐसे क्षेत्र जहां तापमान, औसत तापमान से कहीं ज्यादा हो और पांच दिन तक यही स्थिति यथावत बनी रहे तो इसे ‘लू’ कहने । लगते हैं। मौसम की इस असहनीय विलक्षण दशा में नमी भी समाहित हो जाती है। यही सर्द -गर्म थपेड़े लू की पीड़ा और रोग का कारण बन जाते हैं। किसी भी क्षेत्र का औसत तापमान, किस मौसम में कितना होगा, इसकी गणना एवं मूल्यांकन पिछले 30 साल के आंकड़ों के आधार पर की जाती है। वायुमंडल में गर्म हवाएं आमतौर से क्षेत्र विशेष में अधिक दबाव की वजह से उत्पन्न होती हैं। वैसे तेज गर्मी और ल पर्यावरण और बारिश के लिए अच्छी होती हैं। अच्छा मानसून इन्हीं आवारा हवाओं का पर्याय माना जाता है, क्योंकि तपिश और बारिश में गहरा अंतसंबंध है। जिस तरह से बेमौसम बरसात ने दुबई शहर को बाढ़ में बदल दिया, उसने आधुनिकतम शहरी विकास के माडल को नकार दिया है। यही हालात मुंबई, चेन्नई और बंगलुरु में देखने में आ रहे हैं। अतएव हमें जलवायु परिवर्तन के अनुकूल शहरों का निर्माण करना होगा।

हवाओं के गर्म या आवारा हो जाने का प्रमुख कारण ऋतुचक्र का उलटफेर और भूतापीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) का औसत से ज्यादा बढ़ना है। इसीलिए वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि इस बार प्रलय धरती से नहीं आकाशीय गर्मी से आएगी। आकाश को हम निरीह और खोखला मानते हैं, किंतु वास्तव में यह खोखला है नहीं। भारतीय दर्शन में इसे पांचवां तत्त्व यूं ही नहीं माना गया है। सच्चाई है कि यदि परमात्मा ने आकाश तत्त्व की उत्पत्ति नहीं की होती, तो संभवतः आज हमारा अस्तित्व ही नहीं होता। हम श्वास भी नहीं ले पाते। पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ये चारों तत्त्व आकाश से ऊर्जा लेकर ही क्रियाशील रहते हैं। ये सभी तत्त्व परस्पर परावलंबी हैं। यानी किसी एक का वजूद क्षीण होगा तो अन्य को भी छीजने की इसी अवस्था से गुजरना होगा। प्रत्येक प्राणी के शरीर में आंतरिक स्फूर्ति एवं प्रसन्नता की अनुभूति आकाश तत्त्व से ही संभव होती है, इसलिए इसे ब्रह्मतत्त्व भी कहा गया है। अतएव प्रकृति के संरक्षण के लिए सुख के भौतिकवादी उपकरणों से मुक्ति की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति भी बढ़ ‘है और जलीय स्रोतों पर दोहन का दबाव बढ़ता जा रहा है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में प्रकृति से उत्पन्न कठिन हालातों के साथ जीवन यापन की आदत डालनी होगी तथा पर्यावरण संरक्षण पर गंभीरता से ध्यान देना होगा।

— विजय गर्ग

विजय गर्ग

शैक्षिक स्तंभकार, मलोट