सरकार मज़े में है
फूल मज़े में है खार मज़े में है
झुठ्ठों का कारोबार मज़े में है।
जिसे पहन कर भागे थे वह
बाबा की सलवार मज़े में है ।
बढ़े हैं चोर उचक्के जबसे
रहता थानेदार मज़े में है।
औने-पौने फसल खरीदी कर
व्यापारी व व्यापार मज़े में है
सौ का ठर्रा पी के सो जाता है
रहता पल्लेदार मज़े में है।
मध्यम वर्ग का लहू पी कर
रहती है ये सरकार मज़े में है।
जनता को चूना लगाकर
नेताओं का रोजगार मज़े में है।
— आशीष तिवारी निर्मल