अंबर के गर्त में
जब हम करते गुज़ारिश बादल से,
बरस जाओ मेह अब अंबर से
तब सोचा है,
रेगिस्तानी माटी बड़ी तपती होगी,
जो नज़ारा रेगिस्तान की सरहद से,
दीखता तब मेह कब बरसे जल्दी अंबर से
आश्वासन देते आते बादल छिप जाते
अंबर के गर्त में,
हम घर में बैठकर लगते तप रहे से
तब सोचा है,
रेगिस्तान की मेड बड़ी तपती होगी,
वो रास्ते वो पगडंडिया भी झूलसती होगी
जब हम करते गुज़ारिश बादल से,
सब और समान से बरसो न रहे प्यासी धरा कोई
— दीपिका तिवारी