लघुकथा

चेहरे की चमक

आज महरी शालू अभी तक नहीं आयी थी। मैं एक बार दरवाजे की तरफ देखती तो दूसरी बार घड़ी की तरफ,पर वो है की पहुंच ही नहीं रही है।आज  मेरे  ऑफिस में बहुत बड़ी मिटींग है।बाहर से भी कुछ लोग आने वाले हैं,देर से पहुंचूं तो बाॅस सबके सामने जरुर मेरी इंसल्ट कर देंगे।मेरा मन बार बार कह रहा था शालू आ भी जा। जैसे तैसे हांफते शालू आई बहुत  उदास भी लग रही थी।मैं उसे देरी का कारण पूछ कर समय खराब नहीं करना चाहती थी।

            पर शालू बोली पड़ी दीदी, मैं तो आज आने वाली नहीं थी,मेरी मां की तबियत बहुत खराब है उसको देखने वाला कोई नहीं है, पैसे  की जरूरत थी इसलिए आना पड़ा कुछ पैसे भी दे दो उसके इलाज के लिए मेरी तनख्वाह से काट लेना,और भी पैसे उसने एडवांस ले रखा है,पर ये सब कहने का समय मेरे पास था ही नहीं। मैंने उसे पांच सौ रुपए का नोट पकड़ा दिया । उसका चेहरा चमक उठा।

उसे देख मैं निश्चित हो गई। मैं आइने के सामने बाल संवारने लगी, तो देखा मेरे चेहरे पर भी चमक आ गयी थी। पैसे की जरूरत ने दोनों का चेहरा चमका दिया था।

— अमृता राजेन्द्र प्रसाद 

अमृता जोशी

जगदलपुर. छत्तीसगढ़