धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मन की समता ही योग है

 सारा विश्व 21 जून को प्रतिवर्ष अंतराष्ट्रीय योग दिवस मनाता है। योग करने से शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहता है। मनुष्य निरोगी रहता है। कहा भी गया है योग भगाए रोग।आज की भागती दौड़ती जिंदगी में बढ़ता प्रदूषण अनेक रोगों को आमंत्रण दे रहा है। शुद्ध वायु नहीं मिलना।हवा में जहर घुलता जा रहा है।वायु प्रदूषण के कई कारण हैं बढ़ते वाहन एक प्रमुख कारण है।वाहनों के हॉर्न की आवाजों पुरानी गाड़ियों के सड़क पर चलते समय होने वाली आवाजों से ध्वनि प्रदूषण बढ़ा है।वातावरण में ऑक्सीजन की कमी होती जा रही है क्योंकि पेड़ जो हमें ऑक्सीजन देते हैं उनकी संख्या कम होती जा रही है। लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए पेड़ काट दिए हैं। धरती का तापमान बढ़ रहा है। ग्लोबलाइजेशन के कारण धरती तवे सी जल रही है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन होने से असमय बारिश आ रही है। कभी भी ओला वृष्टि हो जाती है। कहीं अकाल तो कहीं बाढ़ आ रही है। प्राकृतिक संतुलन बिगड़ गया है। जनसंख्या वृद्धि से प्रदूषण बढ़ रहा है। श्वांस सम्बन्धी रोग बढ़ते जा रहे हैं ।लोग दमा खांसी से परेशान हैं।इन सबसे बचने के लिए लोग योग अपनाने लगे हैं। लोग सुबह जल्दी उठकर योग व्यायाम कसरत करने लगे हैं।योगासन करने से शरीर स्वस्थ रहता है।

  भगवत गीता में योग की विशद व्याख्या की गई है।योग का यथार्थ समझने के लिए भगवदगीता नित्य पढ़ना चाहिए जिसमें योग को बेहतर ढंग से परिभाषित किया है।गीता के अनुसार मन की समता ही योग है और जो इस अवस्था को प्राय कर लेता है वह योगी है। चित्त की वृत्तियों का शांत हो जाना ही योग है।गीता बताती है कि इंद्रियों पर विजय  प्राप्त करना ही योग है।यानि इन्द्रिय संयम ही योग है।जो कामुक सुखों के आकर्षण से मुक्त है वह मानसिक स्थिरता प्राप्त करता है।भगवद गीता के दूसरे अध्याय 2 श्लोक 48 के अनुसार योग को समझें । इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि हे अर्जुन ! सफलता और विफलता की आसक्ति को त्यागकर अपने कर्तव्य के पालन में दृढ़ रहो।ऐसी समता को योग कहते हैं।हे धनंजय ! आसक्ति व संग दोष को त्याग कर सिद्धि व असिद्धि में समान भाव रखकर योग में स्थित होकर कर्म कर।कौन सा कर्म करने हेतु भगवान श्रीकृष्ण कह रहे हैं। श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्म करने की कहा कि अर्जुन तू निष्काम कर्म कर।”समत्वम योग उच्यते” यह समत्व भाव ही योग कहलाता है।समत्व किसे कहते हैं?समत्व ऐसा भाव है जिसमें विषमता न हो।ऋद्धियाँ सिद्धियां विषम बनाती है। जब साधक ईश्वर की ओर उन्मुख होता है तो तमाम ऋद्धियो सिद्धियों में उलझ जाता है।आसक्ति हमें विषम बनाती है।फल की इच्छा भी विषमता पैदा करती है।इसलिए फल की वासना न हो फिर भी कर्म करने में अश्रद्धा न हो यानि कि श्रद्धा के साथ कर्म करना है।देखी सुनी सभी वस्तुओं में आसक्ति का त्याग करके प्राप्ति व अप्राप्ति के विषय में न सोचकर केवल योग में स्थित रहते हुए कर्म कर।योग से चित्त चलायमान न हो।

  गीता के अनुसार योग एक पराकाष्ठा की स्थिति है और एक प्रारम्भ की स्थिति भी होती है।प्रारम्भ जब करें तो हमारी दृष्टि लक्ष्य पर होना चाहिए।अतः योग पर दृष्टि रखते हुए कर्म का आचरण करना चाहिए। समत्व भाव यानि सिद्धि व असिद्धि में समभाव ही योग कहलाता है।ऐसे व्यक्ति को सिद्धि व असिद्धि विचलित नहीं कर पाती है विषमता जिसमें पैदा नहीं होती है ऐसा भाव होने के कारण यह समत्व योग कहलाता है।यह इष्ट से समत्व दिलाता है इसलिए इसे समत्व योग कहते हैं।कामनाओं का सर्वथा त्याग है इसलिए इसे निष्काम कर्मयोग कहते हैं।कर्म करना है इसलिए इसे कर्मयोग कहते हैं।परमात्मा से मेल कराता है इसलिए इसका नाम योग अथार्त मेल है।आत्मा से परमात्मा के मिलन का नाम योग है।श्रीमद्भगवतगीता के भाष्य यथार्थ गीता के अनुसार संसार के संयोग वियोग से रहित अव्यक्त ब्रह्म के मिलन का नाम योग है।

   महर्षि पतंजलि के अनुसार चित की वृत्तियों को चंचल होने से रोकना(चित्तवृत्ति निरोध)ही योग है।यानि मन को इधर उधर भटकने न देना केवल एक ही वस्तु द स्थिर रखना ही योग है। छह आसक्ति दर्शनों में (षड्दर्शन) में योग दर्शन का एक महत्वपूर्ण स्थान है।कालांतर में योग की अनेक शाखाएं विकसित हुई जिन्होंने बड़े व्यापक रूप में अनेक भारतीय ग्रन्थों  सम्प्रदायों और साधनाओं पर प्रभाव डाला।  चित्तवृत्ति निरोध को योग मानकर यम नियम आसन आदि योग का मूल सिद्धांत उपस्थित किये गए हैं। संक्षेप में योग दर्शन का मत यह है कि मनुष्य को अविद्या अस्मिता राग द्वेष और अभिनिवेश ये पाँच प्रकार के क्लेश होते हैं।ओर उसे कर्मों के फलों के अनुसार जन्म लेकर आयु व्यतीत करनी पड़ती है तथा भोग भोगना पड़ता है।पतंजलि ने इन सबसे बचने और मोक्ष प्राप्त करने का उपाय योग बताया।पतंजलि के अनुसार योग के अंगों का साधन कड़ते हुए मनुष्य सिद्ध हो जाता है और अंत मे मोक्ष प्राप्त कर लेता है। योगदर्शन में संसार को दुखमय माना गया।पुरूष या जीवात्मा के मोक्ष के लिए  योग को ही एक मात्र उपाय बताया है।पतंजलि ने चित्त की जिन वृत्तियों का उल्लेख किया उनमें क्षिप्त मूढ़ विक्षिप्त निरुद्ध और एकाग्र बताई है।जिनका नाम उन्होंने चित्तभूमि रखा।

  चित्त की वृतियों को कैसे रोकें ? चित्त की वृत्तियों को रोकने के लिए पतंजलि ने जो उपाय बताए है उनमें अभ्यास और वैराग्य ईश्वर का प्रणिधान प्राणायाम ओर समाधि विषयों से विरक्ति आदि बताया है।जो लोग योग का अभ्यास करते हैं उनमें अनेक प्रकार की  विलक्षण शक्तियाँ आ जाती है।जिन्हें विभूति या सिद्धि कहते हैं।यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान और समाधि ये आठों योग के अंग कहे गए हैं।योगसिद्धि के लिए इन आठों अंगों का साधन आवश्यक व अनिवार्य कहा गया है।जो व्यक्ति इन अष्टांग योगों को सिद्ध कर लेता है।वह सब प्रकार के क्लेशों से छूट जाता है। वह अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त कर लेता है।

  योग की उतपत्ति सर्वप्रथम भारत मे हुई।इसके बाद दुनिया के अनेक देशों में लोकप्रिय हुआ।योग गुरु रामदेव जी ने योग की सारे विश्व मे अलख जगाई।सर्वप्रथम पतंजलि ने योग को आस्था अंधविश्वास व धर्म से बाहर निकाल कर  सुव्यवस्थित करने का काम किया।  वर्तमान समय मे योग शिक्षा कई प्रतिष्टित योग संस्थाओं योग कॉलेजों योग विश्वविद्यालयों  में योग विभाग द्वारा प्रदान की जा रही है।

 सार रूप में योग व्यक्ति के तनाव को दूर करता है।चिंता को कम करता है।योग एक प्राचीन अनुशासन है जिसे व्यक्ति के शारीरिक मानसिक भावनात्मक व  आध्यात्मिक आयामों में संतुलन और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।यह पश्चिमी देशों में  तेजी से फैलता जा रहा है।योग का अर्थ है हमारी व्यक्तिगत चेतना का सार्वभौमिक दिव्य चेतना के साथ एक अति चेतन अवस्था मे मिलन है।योग से जुड़े शब्द भगवदगीता में प्राणायाम समाधि आदि का वर्णन मिलता है।पतंजलि ने योग के उद्देश्य को योग के सच्चे ज्ञान के रूप में परिभाषित किया है।

 हमें शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सुबह की शुरुआत सूर्य नमस्कार से करना चाहिए। सूर्य नमस्कार के बाद नोकासन जो रीढ़ की हड्डी को ठीक रखता है करना चाहिए। तीसरा आसन है त्रिभुजासन करना चाहिए जिससे गर्दन पीठ कमर का दर्द नही होता है। चौथा आसन भुजंगासन जिसे करने से अपच गेस की परेशानी दूर हो जाती है। लोअर बॉडी भी मजबूत बनती है।   प्रतिदिन अनुलोम विलोम प्राणायाम करने से सर्दी जुकाम की समस्या का निदान होता है। फेफड़े शक्तिशाली बनते हैं। ह्रदय बलवान होता है। मांसपेशियों  की प्रणाली में सुधार हो जाता है। पाचन तंत्र सही हो जाता है। पूरे शरीर मे शुद्ध ऑक्सीजन की  आपूर्ति बढ़ जाती है।  भ्रामरी प्राणायाम से दिमाग को तुरंत शांति मिलती है।  नियमित कपालभाति प्राणायाम करने से  डाइजेस्टिव सिस्टम मजबूत बनता है गेस एसिडिटी कब्ज जैसी समस्याओं से राहत मिल जाती है।कपालभाति हार्ट के कार्य मे सुधार करता है। फेफड़े लिवर पेनक्रियाज में सुधार करता है।  चेहरे की सुंदरता बढ़ाने के लिए शीर्षासन लाभदायक है। नियमित करने से आंखों का तेज बढ़ता है व चेहरे की चमक बढ़ती है साथ ही मानसिक स्वास्थ्य भी सही रहता है।

— डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित

डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित

पिता का नाम - शिवनारायण शर्मा माता का नाम - चंद्रकला शर्मा जीवन संगिनी - अनिता शर्मा जन्म तिथि - 5 सितम्बर 1970 शिक्षा - एम ए हिंदी सम्प्रति अध्यापक रा उ मा वि सुलिया प्रकाशित कृतियां 1. आशीर्वाद 2. अभिलाषा 3. काव्यधारा सम्पादित काव्य संकलन राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में सतत लेखन प्रकाशन सम्मान - 4 दर्ज़न से अधिक साहित्यिक सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित अन्य रुचि - शाकाहार जीवदया नशामुक्ति हेतु प्रचार प्रसार पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य किया संपर्क:- 98 पुरोहित कुटी श्रीराम कॉलोनी भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान पिन 326502 मोबाइल 7073318074 Email [email protected]