कविता

सागर तट पर बैठा मेरा मन

सागर तट पर बैठा
मेरा मन
दूर दूर तक फैले सागर को
देख रहा था
क्षितिज पर ढलते
सूरज की आभा का
रंग सिंदूरी हो गया
सागर तट पर फैली
तलछट चमक उठी
पानी और रेत ने भी
स्वर्ण वेश धारण कर लिया
ऐसा नजारा देखकर
मरे मन ने यह सोचा
काश समय यही ठहर जाए
लेकिन समय नहीं ठहरता
कभी किसी के लिए
कुछ ही देर में स्वर्णिम आभा
विलुप्त हो गई धीरे-धीरे
सागर तट को अंधेरे ने घेर लिया
पानी से स्वर्ण सी आभा मिट गई
जैसे कभी थी ही नहीं
कुछ देर स्तब्ध सा निहारता रहा
लहरें धीरे उठ रही थी
आसमां में चांद निकल आया
फिर वही पानी चांदी सा चमक उठा
रेत पर चाँदनी बिखर गई
वहीं रेत अब चांदी सी चमक रही थी
नौकाएं सागर तट पर लौट आई
लेकिन मैं और मेरा मन सागर
तट से उठकर जाने को तैयार नहीं था

— अर्विना गहलोत

अर्विना गहलोत

जन्मतिथि-1969 पता D9 सृजन विहार एनटीपीसी मेजा पोस्ट कोडहर जिला प्रयागराज पिनकोड 212301 शिक्षा-एम एस सी वनस्पति विज्ञान वैद्य विशारद सामाजिक क्षेत्र- वेलफेयर विधा -स्वतंत्र मोबाइल/व्हाट्स ऐप - 9958312905 ashisharpit01@gmail.com प्रकाशन-दी कोर ,क्राइम आप नेशन, घरौंदा, साहित्य समीर प्रेरणा अंशु साहित्य समीर नई सदी की धमक , दृष्टी, शैल पुत्र ,परिदै बोलते है भाषा सहोदरी महिला विशेषांक, संगिनी, अनूभूती ,, सेतु अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समाचार पत्र हरिभूमि ,समज्ञा डाटला ,ट्र टाईम्स दिन प्रतिदिन, सुबह सवेरे, साश्वत सृजन,लोक जंग अंतरा शब्द शक्ति, खबर वाहक ,गहमरी अचिंत्य साहित्य डेली मेट्रो वर्तमान अंकुर नोएडा, अमर उजाला डीएनस दैनिक न्याय सेतु