गोरा रंग, आज भी सांवले पर भारी
अखबार में किराए के दुकान, शादी ब्याह, व्यापार, रिशेप्सनिष्ट आदि के विज्ञापन वाले कॉलम में निगाह डाली तो एक विज्ञापन में लिखा देखा: गोरी, सुंदर, स्मार्ट लड़की चाहिए। अरे भाई! उनसे ये पूछिए आपको योग्यता नहीं चाहिए क्या, गोरे रंग से ही काम चल जायेगा? सांवले रंग वाली लड़की का जीना कितना मुश्किल होता है, यह किसी सांवली रंगत वाली लड़की से पूछिए। आज भी काली कलूटी, बैंगन लूटी, कल्लो जैसे कई उपनामों से नवाजी जाती हैं। जब तब कई घरवाले भी दुखी होते रहेंगे। कोई दही बेसन, कोई नींबू ग्लैसरीन, कोई कुछ क्रीम व्रीम सी बताते ही रहेंगे, मातापिता से सहानुभूति दिखायेंगे सो अलग। है तो यह गलत बात, पर सच्चाई यही है कि आज भी गोरा रंग सांवले रंग पर भारी है। अंग्रेज तो चले गए, पर गोरे रंग का आकर्षण छोड़ गए। दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर अंग्रेजों ने राज्य किया, शायद उसी का परिणाम है कि गोरा रंग सुंदरता का प्रतीक बन गया। काले रंग को हीन दृष्टि, गुलाम की तरह देखा गया।आज भी गोरे रंग को प्रशंसा की दृष्टि से और सांवले रंग को कमतर आंका जाता है। क्योंकि यह कटु सत्य है, धारणा है कि जो सत्तासीन /उच्च पदासीन/ या कुलीन व्यक्ति करते हैं वह श्रेष्ठ है। सत्ता हर चीज का प्रतिमान स्थापित करती है, और आम आदमी में उसको पाने की लालसा बनी रहती है। सत्तासीन लोगों को जो भोजन पसंद होता है, वह स्वाद बन जाता है, जो सत्तासीन पहनावा पसंद करें, वह फैशन का प्रतिमान हो जाता है, यह एक सत्य है। नेहरू जैकेट, अचकन इसका उदाहरण है। समय के साथ बदलते हुए आज मोदी कुर्ते का फैशन है, हालांकि यह आम व्यक्ति पहले भी पहनता था लेकिन उच्च पदासीन लोगों द्वारा किए जाने पर इनको प्रशंसनीय दृष्टि से देखा जाता है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, जंक फूड/ विदेशी संस्कृति से ध्यान हटकर देसी भोजन, मिलेट्स, अपनी संस्कृति की ओर रुझान बढ़ा है।अभिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, संजय दत्त, साधना कट, जया भादुरी स्टाइल और भी कई अन्य इन सबके हेयर स्टाइल युवाओं द्वारा खूब अपनाए गए। ये पसंदगी नई बात नहीं है, कुछ के लिए गोरा रंग सुंदरता का पैमाना माना जाता है, जबकि सुंदरता का गोरे रंग से कोई लेना देना नहीं है। कई तो गोरेपन के इतने दीवाने होते हैं कि, उन्हें तो दूध भी भूरी भैंस का ही चाहिए। वो यू पी का लोकगीत तो सुना होगा जिसमें नई नवेली पत्नी अपने पति से फरमाइश कर रही है:
*मैं खाऊंगी कटेमां (थिक जमा हुआ) दही तौ भूरी भैंस कौ जी!
आज भी कई जगहों पर, गुणों को ताक पर रखकर, रंग को महत्व दिया जाता है। देखने वालों को लड़की गोरी चहिए! बीवी गोरी चहिए! बहू भी गोरी चाहिए! बच्चे भी गोरे चाहिएं! ये कैसा पागलपन है। भले ही बाद में रोना पड़े, लेकिन पहले तो गोरा रंग ही चाहिए। माताएं भी अपनी गोरी बेटियों को देख कर निहाल होती हैं, जैसे इन्होने बड़ी मेहनत का काम किया है। गोरा रंग अतिरिक्त गुण माना जाता है। जब इतनी डिमांड हो तो गोरी लड़कियों के दिमाग भी सातवें आसमान पर होते हैं, उन में भी गुरुर आते देर नहीं लगती, उन्हें लगता है घरेलू काम सांवली लड़कियों के लिए हैं। वैसे सब पर यह बात लागू नहीं होती, फिर भी होती तो है। आज भी गांवों में अपनी गोरी बेटी की शादी में यदि दामाद सांवला मिल गया तो, मांऐं बेटी को विदा करते हुए कैसे रोती हैं:
*अरे! मेरी मैदा की लोई ए कौव्वा लैकें उड़ गयौ।
उनसे यों पूछा जाय कि वो तथाकथित कौवा ही आपकी बेटी को रखेगा, खिलाएगा पिलाएगा और नखरे भी सहेगा।
वैसे जिस लड़के की पत्नी कहीं गोरी हो तो, उस लड़के की गर्दन में भी मानो कलफ लग जाता है, एक अकड़ सी भरी रहती है, जैसे किला फतह कर लिया हो। वो लड़का बस उसके नखरे ही बर्दाश्त करता रहता है, उस की स्किन को लेकर परेशान रहेगा। जब तब ये गाना गुनगुनाएगा:
धूप में निकला न करो रुप की रानी,
गोरा रंग काला न पड़ जाए।
वैसे ये गीत भी सुना होगा,किसी फिल्म वाले ने सही लिखा है:
*गोरे रंग पै न इतना गुमान कर
गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा।
एक और गीत की बानगी देखिए :
*गोरे गोरे मुखड़े पे काला काला चश्मा।
तौबा खुदा खैर करे, क्या खूब है करिश्मा।।
सांवली है तो क्या उसका आत्म विश्वास तो कम मत करिए, उसे भी चश्मा लगाने का, जीने खुश रहने का हक है, और ये कोई गलत बात नहीं है। इसीलिए हर जगह सांवले रंग वालों को अपने आप को साबित करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है। (घर, ऑफिस, नौकरी, समाज कहीं भी देख लीजिए) वैसे सुंदरता तो देखने वाले की आंखों में होती है।
एक पुरानौ गीत याद आय गया:
*पानी में जले मेरा गोरा बदन …
अब ये बताइये गोरे रंग में क्या कुछ रासायनिक प्रक्रिया शुरू हो जाती है? जो काले, सांवले में नहीं होगी।
भला हो अमरोही साहब का, जिन्होंने ये गीत गीत लिखा:
*कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की बहुत खूबसूरत मगर #सांवली सी।
चलौ, किसी ने तो कद्र जानी सांवले रंग की।विदेशों में महिलाएं धूप में पड़े पड़े, लेट लेट कर काली होने की कोशिश करेंगी, और यहां लगा लगा क्रीम गोरी होने की …
वैसे भी किसी साहित्यकार को उठा कर देख लीजिए, सब की नायिका सांवली ही मिलेगी। कालिदास की शकुन्तला सांवली, वाल्मीकि की सीता मईया सांवली, पांडवों की द्रौपदी सांवली, गोरे मजनूं की लैला भी काली थी, प्रेमचन्द और रवीन्द्र नाथ टैगोर की नायिकांएं सांवली थीं। सुंदरता तो देखने वाले की आंखों में होती है।
इसका मतलब इतिहास में भी सुंदरता का पैमाना गोरा रंग नहीं था। ये तो विज्ञापनों ने अपना सामान बेचने वाली कंपनियों ने हमारा ब्रेनवाश कर दिया है। गोरेपन की क्रीम, जिसे खुद मैंने कई महिलाओं को पिछले तीस चालीस वर्षों से फेयर एंड लवली क्रीम लगाते देखा है, और आज की तारीख में भी, जबकि वे महिलाएं, दादी नानी बन गई हैं, किसी को कुछ सफलता नहीं मिली। नौकरी हो या ब्याह शादी, पढ़ाई/ योग्यता सब गौण (सेकेंडरी) लगती है, क्या गोरा होना सही में इतनी बड़ी योग्यता है? अब तो पुरुषों के लिए भी गोरेपन की क्रीम … राधे राधे
वैसे ब्रज में अपने तो कन्हैया भी परेशान, बारम्बार मां से पूछते हैं, राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला … क्या बताएं, अपने कन्हैया की इसी सांवली सूरत पर तो सारा ब्रज, गोपियां दीवानी हो गई थीं। दुनिया में दो ही रंग हैं काला और गोरा। चमड़ी का रंग चाहे कैसा भी हो पर मन काला नहीं होना चाहिए। जय बंसी वाले की।।
— मनु वाशिष्ठ