अमेरिका का असली चेहरा हुआ उजागर
विदेशी शक्तियों द्वारा भारतीय चुनावों को प्रभावित करके नरेन्द्र मोदी को सत्ता से बेदखल करने के सारे प्रयासों को धूल चटाते हुए नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार सरकार बना ली है किन्तु यह गठबंधन सरकार है और भाजपा के पास पूर्ण बहुमत नहीं है। भारत में सत्ता परिवर्तन में असफल रहने के बाद, भारत विरोधी ताकतें एक बार फिर सक्रिय हो गई हैं क्योंकि इनको लग रहा है कि चूंकि वर्तमान लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को अकेले पूर्ण बहुमत नहीं है तो यही समय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के विश्व के शक्तिशाली देशों में शामिल होने और तीसरी सबसे सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के संकल्प को तोड़ा जा सकता है। मोदी के शपथ ग्रहण के साथ ही ये शक्तियां काम पर जुट गई हैं और स्वाभाविक रूप से भारत में बैठे इनके समर्थक उसमें सहायता दे रहे हैं।
लोकसभा में भाजपा की सीटों की संख्या कम हो जाने का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दुष्प्रभाव मात्र बीस दिनों में ही सामने आने लगा है। चुनावों से पूर्व जो भारत विरोधी ताकतें मोदी सरकार को हारने में लगी थीं अब सरकार का मनोबल तोड़ने और हर दिन उसके गिरने की बात कर रही हैं । सरकार के विरुद्ध पहले दिन से ही मुद्दे देने का काम आरम्भ हो चुका है जिसका आरम्भ एलन मस्क ने ईवीएम मशीनों पर बयान देकर किया और यहां के विरोधी दलों ने उसको आधार मानकर एक बार फिर ईवीएम पर बहस छेड़ दी । महाराष्ट्र के एक टेबलायड ने तो एक केंद्र पर ओटीपी से ईवीएम हैक होने की कहानी भी बना दी। विपक्ष प्रधानमंत्री के जी-सेवेन में जाने पर प्रश्न उठाने लगा किया और अब अमेरिका से भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर भेदभाव को लेकर एक रिपोर्ट आई है ।
दूसरी तरफ एक समचार यह भी आ रहा है कि नरेंद्र मोदी के लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बन जाने से पाकिस्तान परेशान है क्योंकि भाजपा की ओर से चुनाव प्रचार के दौरान लगातार यह बात कही गई थी कि पीओके भारत का अभिन्न अंग है, वहां की धरती पर पाकिस्तान का कब्जा पूरी तरह से अवैध है । मीडिया की मानें तो पाकिस्तान भारत से सीधी बातचीत करने के लिए उतालवा है तथा अमेरिका के माध्यम से भारत पर सीधी बातचीत का दबाव डलवाने का प्रयास कर रहा है। भारत में नई सरकार के गठन के बाद, अमेरिका से इस विषय को लेकर यद्यपि एक सधा सा बयान आया था किंतु उसका परोक्ष संकेत यही था कि अब भारत व पाकिस्तान को आमने सामने बैठकर सीधी वार्ता करनी चाहिए । स्मरणीय है कि चुनावों से पूर्व ही अमेरिका भारतीय संसद से पारित सीएए कानून की निंदा भी कर चुका है।
आगामी समय भारत के लिए कठिन होने की आशंका व्यक्त जा रही है क्योंकि अब राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बन चुके हैं और मुस्लिम तुष्टिकरण में किसी भी सीमा तक जाने की राजनीति करने वाले दलों के सांसदों की संख्या 234 तक पहुंच गई है। कांग्रेस के 98 सांसदों के अतिरिक्त मुस्लिमों पर आधारित समाजवादी पार्टी के 37, सनातन हिंदू समाज के उन्मूलन का स्वप्न देखने वाले तमिलनाडु से द्रमुक के 21 तथा हिन्दुओं को तृतीय श्रेणी का नागरिक मानने वाली बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के 29 सांसद हैं । इन सभी दलों के विचारक व कार्यकर्ता मुसलमानों के उत्पीड़न की फर्जी कहानियां और वीडियो बनाकर भारत विरोधी विदेशी ताकतों को बेचते हैं और फिर ये ताकतें उन कहानियों और वीडियो के आधार पर सरकार विरोधी वातावरण बनाने का कार्य करते हैं।
तथ्य परक रूप से यह बात बार बार रखी जाती है की, विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा राष्ट्र है जहां पर अल्पसंख्यक मुसलमानों के अधिकार पूर्णतः सुरक्षित हैं फिर भी भारत में बैठे वामपंथी अपना विकृत एजेंडा चलाते रहते हैं। ये मोटा पैसा लेकर उन विदेशी शक्तियों को भारत विरोधी एजेंडा के लिए इनपुट देती हैं जो भारत को अपने प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखते हैं और नहीं चाहते कि भारत एक मजबूत राष्ट्र बने। राष्ट्र प्रथम का भाव लेकर चलने वाले मोदी जी इनकी आँखों में खटकते हैं, मनमोहन जैसा कमजोर प्रधानमंत्री इनके एजेंडा के अनुरूप होता है। यह सभी ताकतें हिन्दुफोबिया फैला कर अपना उल्लू सीधा करना चाहती हैं यही कारण है कि एक अमेरिकी रिपोर्ट में झूठे तथ्यों के आधार पर भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाना बनाया गया है। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर रिपोर्ट जारी करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहाकि भारत में नफरती भाषण बढ़ गये हैं। धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के घरों और पूजास्थलों को ध्वस्त करने के मामले बढ़े हैं। अमेरिकी रिपोर्ट में भारत में धर्मांतरण विरोधी कानून को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई है। रिपोर्ट में भाजपा पर आरोप लगाया गया है कि मोदी सरकार बनने के बाद वह मुसलमानों, ईसाईयों, सिखों, दलितों, यहूदियों और आदिवासियों के खिलाफ हो रही सांप्रदायिक हिंसा से निपटने मे नाकाम रही है। रिपोर्ट में यूएपीए, सीएए और गोहत्या कानूनों की कड़ी निंदा करते हुए कहा गया है कि इनकी आड़ में अल्पसंख्यक समुदाय पर अत्यचार हो रहे हैं।
आश्चर्य की बात है भारत पर आरोप लगाने से पहले अमेरिका ने अपने भीतर झांककर नहीं देखा क्योंकि अगर आज सबसे अधिक नस्लीय उत्पीड़न कहीं हो रहा है तो वह जगह अमेरिका ही है क्योकि वहां पर त्वचा का रंग देख कर ही श्वेत –अश्वेत दंगे होते रहते हैं। अमेरिका में विगत वर्षों में भारतीय मूल के कई निर्दोष नागरिकों की अकारण हत्या हो चुकी हैं भारतीय उच्चयोग के कड़े प्रतिवाद और घटनाओं की निष्पक्ष जांच की मांग के बाव भी अभी तक किसी भारतीय नागरकि की हत्या के प्रकरण का खुलासा नहीं हो सका है। खालिस्तानी आतंकवादी पन्नू अमेरिका की गोद में बैठकर भारत विरोधी अभियान चला रहा है। अमेरिका में भारतीय दूतावासों पर खालिस्तानी समर्थकों ने कई बार प्रदर्शन किये किंतु अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर वे सभी अमेरिका में खुलेआम घूम रहे हैं और भारत सरकार को धमकी देते रहते हैं।
अमेरिका का दोहरा रवैया कई बार उजागर हो चुका है। जब पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान में हिन्दुओं का उत्पीड़न और उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है तब अमेकिरा तथा उसके पिछलग्गू अपनी आँखें बंद कर लेते हैं क्योंकि संभवतः हिन्दू तथा अन्य अल्पसंख्यक समुदाय इनके लिए मायने नहीं रखते, इनकी दृष्टि में सनातन हिंदू द्वितीय श्रेणी का जीव होता है। भारत में हिजाब पहनने लिए प्रदर्शन करने वाली मुस्लिम महिलाओं को अमेरिका तुरंत समर्थन दे देता है किन्तु पाकिस्तान में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही उन हिन्दू बालिकाओं के लिए अमेरिका जैसे समर्थ देश कोई आवाज नहीं उठाते जिनके साथ मुसलमान बलात्कार और जबरदस्ती निकाह कर धर्मांतरण करने के लिए मजबूर कर देते हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हिन्दुओं और सिखों पर इतने अत्याचार हुए हैं कि वहां उनका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है और यह अतिआधुनिक विचारों वाला अमेरिका इन घटनाओं की कभी कड़ी निंदा तक नहीं करता।
अमेरिका से आई ताजा रिपोर्ट से यह संकेत मिलता है कि भारत विरोधी अभियान चलाने तथा आदिवासी हिन्दू समाज के धर्मांतरण के लिए भारी भरकम धन अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देशों के रास्ते ही भारत आता रहा है। अब भारत के कई राज्यों में धर्मांतरण रोकथाम के लिए कानून बनाकर हिन्दुओं के धर्मांतरण को नियंत्रित किया जा रहा है और इस दिशा में चर्च की गतिविधियां प्रभावित हुई हैं जिसके कारण अमेरिका में भारत विरोधी ताकतों की बैचैनी बढ़ी हुई है।
यह भी संभव हो सकता है कि अमेरिका इस प्रकार की रिपोर्ट जारी कर दबाव डालकर भारत को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रहा हो। अमेरिका भारत को रूस से दूर ले जाना चाहता है। उल्लेखनीय है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 8 जुलाई को रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ बैठक करने जा रहे हैं। चुनावों के मध्य ही रूसी राष्ट्रपति का बयान आया था कि कुछ विदेशी ताकतें भारत के चुनावों को प्रभावित करने के लिए हस्तक्षेप कर रही हैं।पुतिन का साफ इशारा अमेरिका और पाकिस्तान की तरफ था क्योकि पाकिस्तानी सरकार के मंत्री राहुल गांधी की तारीफों के पुल बांधकर कह रहे थे कि भारत का प्रधानमंत्री राहुल गाँधी को बनना चाहिए।
इस बीच अमेरिका ने अस्थिरता फ़ैलाने में सहायक अपनी शहरी नक्सल सहायिका अरुंधती राय को पेन प्रिंटर प्राइज पुरस्कार -2024 से सम्मानित कर दिया है। ये पुरस्कार तब घोषित किया गया है जब दिल्ली के उपराज्यपाल ने उप्पा कानून के अंतर्गत अरूंधती राय के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाने की अनुमति दी है। आतंकवादी यासीन मलिक की सहयोगी अरुंधती अपने लेखों व गतिविधियों के मध्यम से भारत विरोधी एजेंडा चलाती रहती हैं।
वर्तमान केंद्र सरकार को अब अत्यंत सतर्कता व सक्रियता के साथ कार्य करना होगा क्योंकि आजादी गैंग के समर्थक राहुल गांधी अब विपक्ष के नेता बन चुके हैं और अमेरिका में बैठे उसके गुरु सैम पित्रोदा की अपने पद पर वापसी हो चुकी है। कहा जाता है कि सैम के एलन मस्क से अच्छे रिश्ते हैं साथ ही जार्ज सोरोस के साथ भी इनका अच्छा गठबंधन है। सैम पित्रोदा मोदी जी के मंदिर जाने से परेशान होता था और ईवीएम मशीनों पर संदेह व्यक्त करते हुए भारत के नागरिकों की तुलना चीनी और अफ्रीकियों से करता था। राहुल गांधी तो पहले भी कह चुके हैं कि उन्हें पता है कि सिस्टम कैसे काम करता है क्योंकि वह कुछ पिछली सरकारों के प्रधानमंत्री(इंदिरा/राजीव) के घर पर ही रहते थे।
अमेरिका द्वारा जारी, भारत में धार्मिक भेदभाव वाली रिपोर्ट की हर स्तर पर तथ्यों के साथ कड़ी निंदा की जानी चाहिए क्योंकि वर्तमान समय में प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सभी सरकारी योजनाओं का लाभ बिना किसी भेदभाव के हर धर्म व जाति के लोगो को मिल रहा है। सरकार की सभी योजनाएं केवल गरीबों के लिए हैं। किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होता। फ्री अनाज, आवास, उज्जवला, आयुष्मान भारत किसी का भी लाभ धर्म के आधार पर नहीं दिया गया सच तो ये है इनका लाभ मुसलमान ने ही अधिक उठाया है, हिन्दू अपनी प्रवृत्ति से ही मुफ्त चीज़ों के प्रति संकोची होता है। अगर भारत में भेदभाव हो रहा होता तो असुददीन ओवैसी जैसे लोग संसद में शपथ लेते समय जय फिलीस्तीन का नारा लगाने का साहस न कर पाते। अमेरिका को यह अच्छी तरह से पता होना चाहिए कि भारत में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मुसलमानों का उचित प्रतिनिधित्व है और भारत पर धार्मिक भेदभाव के आरोप लगाना एक शरारतपूर्ण कार्य है।
भारत पर रिपोर्ट जारी करने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन का बेटा नशीले पदार्थे की तस्करी में पकड़ा गया है, नवंबर के अमेरिकी चुनावों में बाइडेन की पार्टी की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है। आगामी दो माह में यूरोप के कई देशों में चुनाव होने जा रहे है जहां सत्ता परिवर्तन तय नजर आ रहा है । वैश्विक बदलाव के इस युग में भारत कैसे सामर्थ्य के साथ खड़ा है ये बात तथाकथित शक्तिसंपन्न मित्रों को समझ में नहीं आ रही है।
भारत में राष्ट्रप्रथम की भावना से ओतप्रोत सरकार बनी है, यूरोप के कई देशों में इसी विचार की हवा चल पड़ी है और धुर दक्षिणपंथी विचारों वाले दल आगे चल रहे हैं । वामपंथी विचारकों में अपनी दुकान बंद होने का भय है ऐसे में यही ताकतें भारत को अपना प्रमुख निशाना बनायेंगी क्योंकि यहाँ के विपक्षी दल उनका साथ देते हैं। राहुल गांधी, सैम पित्रोदा, एलन मस्क और अरूंधती राय जैसों के गैंग का खेल अब कुछ दिनों चलता रहने वाला है।
— मृत्युंजय दीक्षित