विदेशों में संस्कृत और सनातन धर्म की और बढ़ता आकर्षण
एक जानकारी के मुताबिक संस्कृत शिक्षक संघ दिल्ली द्धारा राजधानी विद्यालयों में संस्कृत के हित में कई लोगों ने अपने विचार रखे । संस्कृत संरक्षण संवर्धन के लिए समर्पित रहने के लिए बात रखी। जो प्रशंसनीय है। वर्तमान में संस्कृत भाषा अपने ही देश मे पराई होकर अस्तित्व तलाश रही है, यह कटु सत्य है ।संस्कृत भाषा के अध्ययन को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक होगा ताकि संस्कृत अपना मूल स्थान पाकर विलुप्त होने से बच सके ।यह सही है की कोई भी भाषा बोलते -लिखते समय अंग्रेजी प्रयोग का समावेश होता ही है। शुद्ध भाषा का प्रतिशत इसी कारण कम होता जा रहा है । जर्मन वैज्ञानिको ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि अंग्रेजी ने प्राथमिक वैज्ञानिक भाषा के रूप मे जर्मन पर अधिपत्य जमा लिया है । अंग्रेजी इस समय एक वायरस के रूप मे कार्य कर रही है, जिससे प्रभावित होकर अन्य देशों कि प्रचलित भाषाए भी अंग्रेजी से पीड़ित हो गई है । मानाकि अंग्रेजी का ज्ञान आज के इलेक्ट्रॉनिक युग बेहद आवश्यक है, कितु उससे इतने भी प्रभावित न हो कि अपनी प्राचीन संस्कृत भाषा मे भी अंग्रेजी का प्रयोग करके उसकी गरिमा व सम्मान के हक़ को छिन लें ।क्या हम मनीषियों की भाषा को ऐसे ही खो जाने देंगे ? शास्त्रों, पुराणों,ग्रंथों की मूल भाषा जिसका हम वंदन करते आए है वह हमारे सबके लिए एक धरोहर होकर आज भी सम्मानीय है ।लेकिन उसको बढ़ावा देने मे हम अब भी पीछे है ।पिछले वषो में अमेरिका में ओकलाहामा प्रान्त के सीनेट सत्र की शुरआत के अवसर पर यूनिवर्सल सोसाइटी आफ हिंदुइजा के अध्यक्ष राजन जेड ने संस्कृत के वेदमंत्रों से मंत्रोच्चारण कर शुभारंभ किया । कई देशों में संस्कृत में हनुमान चालीसा, आरती की चौपाइयां विदेशी लोग गाते है । कहने का मतलब ये है की संस्कृत के प्रति उनका लगाव है । किंतु वर्तमान में ऐसा लगने लगा है की संस्कृत भाषा अपने ही देश मे पराई होकर अस्तित्व तलाश रही है । यह कटु सत्य है ।संस्कृत भाषा के अध्ययन को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक होगा ताकि संस्कृत अपना मूल स्थान पाकर विलुप्त होने से बच सके ।यह सही है कि कोई भी भाषा बोलते -लिखते समय अंग्रेजी प्रयोग का समावेश होता ही है। शुद्ध भाषा का प्रतिशत इसी कारण कम होता जा रहा है । अंग्रेजी इस समय एक वायरस के रूप मे कार्य कर रही है, जिससे प्रभावित होकर अन्य देशों कि प्रचलित भाषाए भी अंग्रेजी से पीड़ित हो गई है । मानाकि अंग्रेजी का ज्ञान आज के इलेक्ट्रानिक युग बेहद आवश्यक है, कितु उससे इतने भी प्रभावित न हो कि अपनी भाषा/ प्राचीन संस्कृत भाषा मे भी अंग्रेजी का प्रयोग करके उसकी गरिमा व सम्मान के हक़ को छिन लें ।
— संजय वर्मा ‘दॄष्टि’