लघुकथा -कार्यवाही
एक कार से गुलजार की टक्कर हो गई थी, जिससे उसकी एक टांग में फ्रैक्चर हो गया था। उसका ऑपरेशन किया गया था, हड्डी जोड़ दी गई थी, और अब वह ठीक था। जिस कार से उसकी टक्कर हुई थी, वह एक सब-इंस्पेक्टर चला रहा था। दुर्घटना के बाद वही उसे अस्पताल छोड़ गया था, परंतु उसके बाद वह नजर नहीं आया था। हां, इतना अवश्य था कि वह गुलजार को अपना फोन नंबर दे गया था, “जब भी जरूरत हो मुझे फोन कर लेना, और जब छुट्टी हो तब तो जरूर कर लेना।”
अब न तो गुलजार ने ही उसे फोन किया, और न ही वह ही या उसकी तरफ से कोई व्यक्ति उससे मिलने आया था। कईयों ने गुलजार से हर्जाने के लिए उस सब इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्यवाही करने की बात भी की, पर वह न माना। अपने घर वालों को भी उसने समझा दिया था।
आज गुलजार की छुट्टी होनी थी। बिल बन चुका था। तभी उस सब-इंस्पेक्टर का फोन आया, “माफ करना भाई, मैं काम में फंस गया था और मुझे बाहर जाना पड़ गया था। पर मैंने तुम्हारा हालचाल लेने के लिए अपना एक बंदा छोड़ रखा था, जो तुम पर आते-जाते नजर रख रहा था। पुलिस वाले हैं ना, पुलिस की तरह काम करते हैं। खैर, मेरी डॉक्टर से बात हो गई है। जितना भी तुम्हारा बिल बना है, उसके आधे का तुमने भुगतान करना है। वह मना नहीं करेगा। बहुत काम किए हैं मैंने उसके”, फिर रुक कर बोला, “अच्छा एक बात बताओ, तुमने मेरे खिलाफ रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई? डर गए थे क्या?”
“ऐसी बात नहीं है जी। डरने की बात तो मेरे लिए थी ही नहीं, क्योंकि मेरा खास दोस्त बहुत ऊंची पोस्ट पर है, वह सब संभाल लेता। दूसरी बात टक्कर अकस्मात हुई थी, इसमें आपका या मेरा किसी का कोई दोष नहीं था। इसे आप महज दुर्घटना ही कह सकते हैं। तीसरा, मैंने सोचा था कि यदि आप सही व्यक्ति हैं तो उसके लिए जानबूझकर आपको क्यों परेशान करूं, जो आपने स्वत: मेरा बिल कम करवा कर जाहिर कर दिया है।” गुलज़ार थोड़ा रुका, फिर बोला, “और अगर मैं केस करता भी, और यदि आप सही व्यक्ति ना होते, तो पता नहीं किससे, कैसे और कितने गलत तरीके से रुपयों का प्रबंध करते? पैसे तो मिल जाने थे हर्जाने के तौर पर मुझे, परन्तु न जाने साथ में कितनी बद्दुआएं मिलतीं, जिनसे पैसे लेते। अभी तो बच गया, पर क्या पता कल मेरे साथ और क्या होता? तो, इससे तो अच्छा है कि मैं ऐसे पचड़े में पडूं ही नहीं…।”
उधर से आवाज खो गई थी।
— विजय कुमार