क्या फायदा
मन में मानवता का कोई भाव न हो
सबसे बढ़कर लगे स्वार्थ अपना महज
औरों का दुख कभी भी न आए समझ
तब ये बातें बनाने का क्या फायदा
आदमी तब कहाने का क्या फायदा
ज्यादा औरों का हो भी तो कम मानते
खुद को बढ़कर सभी से परम मानते
अपने मद में जो लगते हैं छोटे सभी
खुद के आगे जो लगते हों खोटे सभी
तब ये धुनी रमाने का क्या फायदा
करना जो था सही कर सके वो नहीं
कर्ज जो था कभी का भर सके वो नहीं
मन में मानवता का कोई भाव न हो
करूणा का कोई जब प्रभाव न हो
करना जो था सही कर सके वो नहीं
कर्ज जो था कभी का भर सके वो नहीं
मोल कर्तव्यों का खुद न मालूम हो जब
खुद को ही न पता था क्या करना था कब
औरों को तब बताने का क्या फायदा
आदमी तब कहाने का क्या फायदा
औरों की भी सुनो खुद न बोलो फकत
अब भी चेतो जरा अब भी है पूरा वक्त
इतने से भी अगर ज्ञान लेते नहीं
कुछ न हो पाएगा गर जो चेते नहीं
फिर यूं जीवन बिताने का क्या फायदा
आदमी तब कहाने का क्या फायदा
— विक्रम कुमार