बाल कहानी

बाल कहानी : सच्ची मित्रता

बांधा तालाब के किनारे एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था। मोटे व गठीले तने पर मोटी-मोटी शाखाएँ निकली हुई थी। हरी-हरी पत्तियों से टहनियाँ सुशोभित थीं। पत्तियों की आड़ से सूरज की किरणें धरती पर ठीक से नहीं पहुँच पा रही थीं , जिससे वृक्ष के नीचे छाया पूर्णतः व्याप्त थी। जेठ का महीना था और दोपहर का समय। पत्तियों को स्पर्श करती हुई गर्म हवा बह रही थी। विशाल बरगद का पेड़ एक अस्सी वर्षीय शांत स्वाभाव बुजुर्ग सा प्रतीत हो रहा था।
भीषण गर्मी के बावजूद निश्चिंत होकर फिरतू , नायडू , भऊ , और भंगी डंडा-पचरंगा का खेल खेल रहे थे। इन चारों मेंं अच्छी मित्रता थी। हर काम मिलजुलकर करते थे। इस समय फिरतू , नायडू और भंगी पेड़ पर चढ़े थे। नीचे एक गोल घेरे मेंं रखे डंडे के पास भऊ खड़ा था। भऊ का काम पेड़ पर चढ़े इन तीनों को छूना था; और इनसे डंडे को छूने से बचाना था। सभी अपने-अपने ढंग से तैयारी मेंं थे। जैसे भी करके फिरतू और नायडू ने एक-एक करके डंडे को छू लिया। अब बच गया भंगी। भऊ भंगी को छूने के लिए पेड़ पर चढ़ गया और उसके बिल्कुल करीब पहुँच गया। भंगी खुद को बचाने के चक्कर मेंं एक पतली डाली से लिपटकर खर-खर खर-खर उतरने लगा। जल्दबाजी मेंं भंगी का पैर अचानक फिसल गया। हाथ से डाली छूट गयी; और खुद धड़ाम से गिर गया। गिरते ही उसके मुँह से ‘ ए दाई ओ…’ निकला। आँखें छिटकने लगी उसकी। जोर-जोर से कराहने लगा। शरीर मेंं कँपकँपी छाने लगी। देखते ही देखते भंगी मुर्च्छित हो गया।
यह सब देख फिरतू , नायडू और भऊ का अक्का-बक्का बंद हो गया। फिर भी तीनों मित्रों ने हिम्मत नहीं हारी। फिरतू ने तुरंत भंगी की कमीज खोली। उसके आँखों को अपने दोनों हथेलियों से मूँदकर मुँह से हवा देने लगा। नायडू भंगी के पैर को सहलाने लगा फिरतू ने भऊ को तालाब से पानी लाने के लिए इशारा किया। भऊ दौड़ते-दौड़ते तालाब गया और नारियल के खटोली व अपने मुँह मेंं पानी भर-भरकर लाने लगा; और भंगी के सिर पर थोपने लगा। तीनों मित्रों के अथक प्रयास से भंगी की मुर्छा दूर हुई। भंगी को होश मेंं आते देख तीनों मित्रों को बहुत खुशी हुई। उन्हें लगा कि उनकी मेहनत सार्थक रही। भंगी अपनी जान बचाने के लिए अपने इन मित्रों की कोशिश देख द्रवित हो उठा। गला रुंध आया। आँखें डबडबा गई। बोला – ‘ बहुत-बहुत धन्यवाद मित्रों! तुम लोगों ने मेरी जान बचाई। इसका मुझ पर सदैव एक एहसान रहेगा।’ भंगी की सिसकियाँ जारी रही।
‘ नहीं… नहीं… मित्र रोना नहीं। यह तो हमारा कर्तव्य है। इसमें एहसान की कोई बात नहीं। एक मित्र की मुसीबत मेंं दूसरे मित्र का काम आने का ही नाम तो सच्ची मित्रता है ‘ भंगी के आँसू पोंछते हुए फिरतू बोला।
भऊ कहने लगा – ‘ आखिर तुम हमारे मित्र हो। तुम्हें ऐसी हालत मेंं छोड़कर हम भला कैसे जा सकते थे। ‘
‘हाँ मित्र, यह सही बात है ‘ , नायडू ने हामी भरी। फिर चारों मित्र एक-दूसरे का हाथ पकड़े घर की ओर चल पड़े।

— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”

टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"

शिक्षक , शासकीय माध्यमिक शाला -- सुरडोंगर. जिला- बालोद (छ.ग.)491230 मोबाईल -- 9753269282.

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