ग़ज़ल
गिले और शिकवे सभी अब मिटा दें
चलो जिंदगी को मुहब्बत सिखा दें
मिलेगा कहीं कारवाँ भी खुशी का
मिले तो उसे अपने घर का पता दें
घटेगा अँधेरों का भी कद कभी तो
इसी आस में एक दीपक जला दें
सदाकत जमाने से गुम हो गई है
मिले आपको तो हमें भी बता दें
बसी है जहाँ बस्तियाँ नफरतों की
वहाँ हम मुहब्बत की बारिश करा दें
अहं दूर होगा, वहम भी मिटेगा
मुकद्दस ख्यालों को थोड़ी हवा दें
रमा ज़िंदगी में सलामत रहे सब
खुशी से यही सबको मिलकर दुआ दें
— रमा प्रवीर वर्मा