गीतिका/ग़ज़ल

हर्जाने हैं 

हमने भी सुनें लाखों अफसाने हैं
हुस्न वालों के यहां हजारों दीवाने हैं ।
हराम की कमाई में कोई सरचार्ज नहीं
ईमान की कमाई पे लाखों जुर्माने हैं ।
राह चलते बहन बेटियां सुरक्षित नही
खुलवा रहे थाने की बजाय मयखाने हैं ।
रुलाने को आतुर दिखता है हर कोई
हंसने,हंसाने की खताओं में हर्जाने हैं।
साला बना है उनका मंत्री जी का खास
अब झूठे मुकदमें थानेदार पे चलवाने हैं ।
जनता ने चुना पर जनता की नहीं सुनते
ऐसे नेताओं को डंडे मार भगाने हैं ।
कैसे अपने दिल का हाल सुनाओगे तुम
अपनों से ज्यादा तो दिखते यहां बेगाने हैं ।

— आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616

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