कविता

किनारों की तालाश में

किनारों की तलाश में,
निकल पड़े हैं हम राही
सफर ज़िन्दगी का जारी है,
पर मंज़िल मिलेगी या नहीं ?

खबर एक पल की नहीं,
फिर भी किनारों की तलाश में
निकल पड़े हैं हम राही,
तुझे पाने की चाह है ज़िन्दगी।

लहरें बहुत ज्यादा तेज चल रही है,
पानी का सैलाब है ज़िन्दगी
पर में इसकी तलाश में
चलता जा रहा हूँ ज़िन्दगी।

कभी तो इस सफ़र पर,
चलते हुए किनारा मिल जाएगा।
निकल पड़े हैं हम राही
ज़िन्दगी के किनारों की तलाश में॥

— हरिहर सिंह चौहान

हरिहर सिंह चौहान

जबरी बाग नसिया इन्दौर मध्यप्रदेश 452001 मोबाइल 9826084157