लघुकथा

अपने-अपने मायने

कुछ दिनों से लगातार बारिश है रही है। नदी नाले सब उफान पर हैं। सभी अपने अपने स्तर पर बारिश का सामना कर रहे हैं। एक जनरल स्टोर पर काफी है जिसमें महिलाओं की संख्या कुछ ज्यादा है।
दुकानदार पूछने लगा- हां, तो बोलिए आप लोगों को क्या क्या चाहिए? एक धनाढ्य सी दिखने वाली महिला ने कहा- “भैया मुझे पॉपकार्न के फ्रेश पैकेट देना। कल हम लोग लाँग ड्राइव पर जायेंगे, बच्चों के मुंह तो चलने चाहिए ना।” एक मध्यम वर्गीय महिला बोली, “भैया मुझे बेसन, तेल और प्याज दे दीजिए। बारिश का मजा तो गरमा गरम पकोड़े में है।”
एक महिला का चिंतित स्वर में बोली, “मुझे पांच मीटर रस्सी चाहिए, बच्चों के स्कूल के कपड़े सुखाने बहुत जरूरी है।” तभी एक महिला एक पुराने से छाते में आधी भीगी दुकान पर आयी और कहने लगी, “भैया मुझे आपके दुकान में सामान में आयी कुछ अच्छी सी बोरियां दे दो, मेरे पति अपने रिक्शे पर पर्दा बनायेंगे, तभी तो रिक्शे पर सवारी बैठेगी।” दुकानदार सभी के सामान निकालने में व्यस्त हो गया। बारिश बरसने में मस्त थी। दुकानदार सोच रहा था, मौसम ने तो धंधा चमका दिया।

— अमृता राजेन्द्र प्रसाद

अमृता जोशी

जगदलपुर. छत्तीसगढ़