कहानी

कथा – जहां चाह, वहां राह

बिल्कुल सरल स्वभाव , छोटा कद, सरलता की मूरत और मधुरता का रस लेकिन जब वह बोलती तो उसका व्यवहार और फड़फड़ती अंग्रेजी दोनों ही बिल्कुल विपरीत दिशा में दिखता। रीमा थी कुछ ऐसी ही नटखट सी !!
मां की इच्छाओं ने उसे हमेशा आगे बढ़ने के लिए अक्सर प्रेरित किया, जिससे दसवीं के बाद ही घर से 500 किलोमीटर की दूरी पर तमिलनाडु के एक अच्छे कॉन्वेंट कॉलेज में उसका दाखिला हो गया। वह वही छात्रावास में रहती । वहां कैंपस के अंदर अंग्रेजी और तमिल के अलावा कोई भी भाषा बोलने की अनुमति नहीं थी, जिससे उसमें वक्त के साथ काफी बदलाव आता गया । वह अंग्रेजन के तरह ही बोलने लगी । जब वह उस अंग्रेजी में बातें करती तो अच्छे अच्छों की हवा निकल जाता , वह न केवल विद्यालय के कार्यक्रमों में बल्कि क्लस्टर लेवल के प्रोग्राम में भी हिस्सा लेती।
देखते -देखते वह अच्छे नंबरों से पास भी कर ली और पिता ने उसे अच्छे घराने में लड़के से नौकरी पेशा देख विवाह भी करा दिया । नरेश पेशे से एक शिक्षक था। शुरू में तो सब कुछ ठीक ही था मगर बीतते वक्त के साथ रीमा और नरेश में विचारों की दूरियां बढ़ती गई । कहां रीमा और कहां नरेश!
रीमा मौका मिलते ही अंग्रेजन बन जाती वहीं नरेश का साधारण सा व्यवहार… धीरे-धीरे रीमा की रुचि देखते हुए नरेश ने उसे डॉक्टरी की ट्रेनिंग ज्वाइन कर ली जिससे हर दिन उसे नए-नए लोगों से मिलना भी होता ,‌जिससे उसका कम्युनिकेशन स्किल और भी बढ़ता गया। अब वह किसी प्रतिष्ठान में जाती तो हिंदी भी बोलती तो बड़े ही अच्छे ढंग से और अंग्रेजी की तो बात ही अलग हो जाती।
नीमा शुरू से ही घूमने -फिरने की बड़ी शौकीन रही, लेकिन नरेश को लोगों के साथ व्यवहार करने का सलीका देख उसे पसंद नहीं आता। वह अक्सर कहती तुमने तो बेकार ही इतना पढ़ाई कर रखा है ,एक इंसान से ढंग से अंग्रेजी में बात तक नहीं कर पाते। यह सुनते ही नरेश को बड़ा ही तिरस्कार महसूस होता।
एक बार रीमा दोस्तों के कहने पर नरेश को लेकर एक मैरिज पार्टी में पहुंची। वहां नरेश सब के साथ घुल-मिल गया और आम बोल-चाल की भाषा में बाते करने लगा । यह रीमा को अंदेशा तो था मगर नरेश का व्यवहार अपनी आंखों से से देख बहुत दुखी हुई ।
घर आते ही रीना का चिड़चिड़ा व्यवहार देख उसे बड़ा ही दुख हुआ। दोनों में कहा -सुनी भी हो गई , इतने में रीमा ने कह भी दिया कि तुम्हारे साथ जाना तो खुद का इंसल्ट करना है । यह सुनते ही नरेश को बड़ा धक्का लगा । वह मन ही मन सोचता रहा आखिर वह इतनी बड़ी बात कैसे बोल सकती है!!
नरेश ने अपने मन ही मन प्रण किया और पत्नी होते हुए भी उसके अंदर बदले की भावना जग गई और अंग्रेजी सीखने का हर संभव प्रयास करने लगा ।
उसने दफ्तर के बाद एक कोचिंग क्लास ज्वाइन कर लिया , जिससे बातों ही बातों में एक दिन सैंटर इंचार्ज कहने भी लगे , मैंने तो आपसे भी ज्यादा उम्र दराज लोगों को अंग्रेजी सीखते देखा है लेकिन आप जैसा जल्दी तो कोई सक्षम नहीं हुआ , आप तो कमाल ही कर दिये! मात्र चार महीने में ही आपने इतनी इंप्रूवमेंट किया , सचमुच…
नरेश मन की गंभीरता को दबाते हुए कहा — नहीं आज जिस तरह दफ्तर , घरों में अंग्रेजी ने कब्जा कर रखा है उसकी महता इतनी बढ़ गई है कि…
आप की बात तो सही है लेकिन … आज हिंदी की भी कोई कम महत्व नहीं है, आजकल विदेश में भी हिंदी को स्थान दिया जा रहा है , यही नहीं अब तो पूरे विश्व में हिंदी की पत्र– पत्रिकाएं भी उपलब्ध हो जा रही है।
इंचार्ज की यह बातें सुन नरेश का आत्मविश्वास और बढ़ता ही जा रहा था ।
एक बार नरेश के दफ्तर में फेयरवेल का आयोजन किया गया। जहां नरेश रीमा को भी साथ ले आया। वहां सभी दफ्तर कालीग के साथ नरेश का इतना अच्छा व्यवहार देख रीना दंग रह गई।कुछ ही पल पश्चात नरेश ने अंग्रेजी में अपनी भाषण से पूरी सभा को समायोजित किया, और फिर तालियों की गड़गड़ाहट से रीमा की आंखें फटी की फटी रह गई। उसके अंदर के स्किल को देख वह सोचती रह गई। उसके शब्दों में भारीपन को देख रीमा का जहां एक तरफ सीना चौड़ा हो रहा था, वही सभी कलीग्स के सामने नरेश ने अंग्रेजी में ही “रीमा प्लीज कम ओंन स्टेज” बोला तो..
आते ही उसने उसका इंट्रोड्यूस कराया , यह सब कुछ देख मन में प्रश्नों के भंवर लिए रीमा बोल पड़ी –आप इतनी अच्छी इंग्लिश बोल लेते हैं फिर मेरे साथ जाते थे तो …
नरेश मौन हो सब कुछ सुनता रहा । फिर कहा–‘ इंसान चाहे तो सब कुछ कर सकता है” “जहां चाह, वहां राह” भी मिल ही जाता है ।वह तो है लेकिन…
क्या … मैं मात्र 6 महीने में अपने आप को बदला,
मगर कैसे…
बहुत लंबी कहानी है ,मैं दफ्तर से आधा घंटा पहले आकर कोचिंग क्लास अटेंड करता, सोशल मीडिया का भी आनंद उठाता तो जानती हो सिर्फ इंग्लिश में… कभी अखबारों को पलट लेता ,लेकिन सब कुछ सिर्फ अंग्रेजी में …ताकि तुम्हारी तरह मैं भी…
अरे आप ना …
हां , हमारे बीच यह इंग्लिश बहुत बड़ी दीवार बन कर खड़ा था जिसे मैं नहीं देख सकता था …
अरे चलिए अब डिनर कर के ही घर चलते हैं?
शियोर वाई नौट!
वहां बैठ रीमा उसकी ओर देखती ही जा रही थी,
कुछ आर्डर भी करू या देख कर ही पेट भर जाएगा आपका…
अरे कीजिए, कीजिए वरना बैठे बैठे या रात बता देंगे अरे हां…

— डोली शाह

डोली शाह

1. नाम - श्रीमती डोली शाह 2. जन्मतिथि- 02 नवंबर 1982 संप्रति निवास स्थान -हैलाकंदी (असम के दक्षिणी छोर पर स्थित) वर्तमान में काव्य तथा लघु कथाएं लेखन में सक्रिय हू । 9. संपर्क सूत्र - निकट पी एच ई पोस्ट -सुल्तानी छोरा जिला -हैलाकंदी असम -788162 मोबाइल- 9395726158 10. ईमेल - [email protected]