ग़ज़ल
लफ़्ज़ों को हथियार बना
फिर उनकी तू धार बना
छोड़ तवज़्ज़ो का रोना
अपना इक मेयार बना
लंबा वृक्ष बना ख़ुद को
लेकिन छायादार बना
नादानी और बढ़ती गयी
जितना बशर होशियार बना
शिकवा गुलों से है न तुझे?
तो काँटों को यार बना
जिसने दिखाई राह नई
वो दुनिया का शिकार बना
— जयनित कुमार मेहता