तेरी आरजू
तेरी आरजू,तेरी ख्वाहिश में भींग गए।
आज हम प्यार की बारीश में भींग गए।
सावन के दिन है तंहाई पिघल जाए,
एक दूसरे की समझाईश में भींग गए।
बर्क सी लहराई वो बाहों में सिमट गए,
साँसों से साँसों की आजमाईश में भींग गए।
नशीला सावन न कही हमें रूसवा कर दे,
यूँ दूर दूर जाने की कोशिश में भींग गए।
रिमझिम फुहारों में सुलगते रहे जिस्म,
हम रेशमी बदन की तपिश में भींग गए।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”