व्यंग्य : थम के बरस ओ जरा जम के बरस
जब मौसम विज्ञान इतना अपडेट नहीं था तब बारिश भी इतनी चतुर सुजान नहीं थी और सुनिश्चित समय पर आरंभ हो जाती थी।
आज मौसम विभाग के तरक्की का दौर है बारिश को लेकर जितने भी अटकलें मौसम विभाग लगाता है करीब – करीब सभी अटकलें केवल अटकलें ही रह जाती हैं । आज बारिश के ये हालात हो चलें कि मौसम विभाग जहां अतिबारिश बताता है वहां सूखा पड़ जाता है। और जहां सूखे की आशंकाएं जताई जाती हैं वहां बाढ़ आ जाती है। अब बारिश बहुत होशियार और चालाक हो चुकी है पूरी तरह भारतीय नेताओं के जैसे जब आप घर से बाहर हों तभी बारिश होती है जब आपके पास छाता न हो जब आपके पास रेनकोट न हो तभी बारिश होती है । आदमी को भिगोकर अपने होने का सबूत देती है।
इस वर्ष बारिश किसी घोटाले की तरह आई और किसी जांच दल की तरह चुपचाप जा रही है । बचपन में जब रात को तेज बारिश हो रही होती थी तो हम यही मना रहे होते थे कि काश हमारा स्कूल का भवन बारिश में भरभरा के गिर जाए और हमें स्कूल न जाना पड़े लेकिन ऐसा होता नहीं था सुबह को स्कूल का भवन तो क्या ? हमारे टीचर तक भी कहीं गिरे पड़े नहीं मिलते थे । आज के समय कि बारिश में स्कूल भवन और पुलें बिना किसी दुआ बद्दुआ के ही नेताओं के चरित्र की तरह भरभरा के गिर रहे हैं। बरसात के दिनों में सड़कों पर कीचड़ तो सरकार के समान वितरण प्रणाली के तहत प्रत्येक सड़कों पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। हालांकि सड़कों पर उतना कीचड़ नहीं हो पाता जितना लोगों के दिमाग में रहता है।
जिन सड़कों पर कीचड़ नहीं है वहां अपनी जिम्मेदारी समझते हुए गोबर करने का काम आवारा पशुओं ने संभाल रखा है। बारिश के मौसम में फिसल कर गिरने का भी अलग आनंद है। कुछ लोग औंधे मुंह गिरते हैं जैसे शेयर बाजार गिरता है। कुछ लोग ऐसे गिरते हैं जैसे किसी के प्यार में गिर रहे हों। कुछ तो यूं गिरते जैसे नेता चुनाव के समय जनता के पैरों में। ये गिरने का दौर यूं ही जारी रहेगा । जहां सूखा है वहां गीला होगा । बरसात थोड़ी हो या ज्यादा । बस मौज मस्ती का होना चाहिए इरादा ।मैं तो हल्की बारिश का आनंद लें रहा हूं गरम पकौड़े के साथ ग़ज़ल के अश्आर जुबां पर हैं ‘ वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी ‘ ।
— आशीष तिवारी निर्मल