कहानी

जलमीनार

गाँव में सरकार द्वारा प्रदत्त दो लघु जलमीनार है। एक जलमीनार चमार, मछुवा और धोबी जाति की बस्ती में है। जो सात महीने से खराब पड़ा है। ठीक कराने के वास्ते मुखिया से लेकर बीडीओ तक को आवेदन दे चुके हैं। सब हाँ बोलते हैं। एक दो बार मिस्त्री भी आ जाते हैं। वे खराब सामान का लिस्ट बनाकर चले जाते हैं। लेकिन सामान लेकर दोबारा लौटते नहीं हैं। इधर धीरे-धीरे जलमीनार के एक-एक कलपुर्जे खराब होते जा रहे हैं। पूस-माघ के महीने में कुआँ का पानी पी रहे थे। पर फागुन के आते-आते पीने के पानी की किल्लत होने लगी। फागुन और चैत्र महीना में नदी-नाला में गड्ढा खोदकर पीने के पानी का जुगाड़ किया। बैसाख आते नदी-नाला का पानी पीने लायक नहीं रह गया। गाँव का दूसरा जलमीनार सवर्ण की बस्ती में है। वहाँ दिन में पानी भरने जाने का मतलब घंटों इंतजार कीजिए। किसी का मन पसीजा तो एक बाल्टी भरने देंगे। वरना खड़ा के खड़ा रहना पड़ेगा। इसलिए भोर के चार बजे और रात के आठ-नौ बजे ही पानी भर लेते हैं।
कुनिया चमारिन प्रतिदिन की भाँति भोर में ही पानी भरने चली जाती है। पर आज भोर में ही खाते-पीते घर के लड़कें पानी पी और हाथ-पाँव धो रहे हैं। वे पी और धो कम रहे हैं। पीने और धोने का अभिनय ज्यादा कर रहे हैं। कुनिया के आग्रह से नल से दूर हो जाते हैं। पर कुनिया की ओर गंदी-गंदी इशारे कर रहे हैं। कुनिया दो बाल्टी पानी भरने के वजाय एक ही बाल्टी पानी भरकर घर चली जाती है।
डगरू चमार चार दिन से बीमार है। कुकरखाँसी का दौरा जब भी उठता है, मानो शरीर से प्राण निकलने वाला है। बीबी कुनिया दवा-पानी पिलाती, तब कहीं एक-आध घंटे में बंद होता। डगरू की कुकरखाँसी आज रूकने का नाम ही नहीं लेता है। कुनिया लोटा-बाल्टी की ओर नजर दौड़ाई। पर उसमें एक घूँट पानी नहीं है। जेठ माह के दो बज रहे हैं। कुनिया मन-ही-मन विचार की। इस चिलचिलाती धूप में कोई सवर्ण नहीं आयेंगे। फिर बाल्टी पकड़कर जलमीनार की ओर दौड़ पड़ी। पर वहाँ रईस घर के लड़कें चड्डी-बनियान में नहा रहे हैं। कुनिया उन्हें देखकर दस कदम दूर ही रूक गयी। कुनिया की सुन्दर देह को देखकर बबलू सिंह कहता है, ”रूक क्यों गयी? आजा, आजा, पानी भर ले।“ फिर अपने मित्रों से कहता है, ”अरे! क्या सौंदर्य है? ओह! एक बार हाँ करने दो। फिर बड़ा आनंद आयेगा। आज बहुत दिनों के बाद लाॅटरी लगी है।“ सभी हँसता है, ”हा, हा, हा… हहहहहहह… हाहाहाहाहाहा…।“
नवीन कुमार कहता है, ”हाँ, हाँ, हम भी बहती गंगा में हाथ धो लेंगे।“ फिर सभी हँसता है, ”हा, हा, हा… हहहहहहह… हाहाहाहाहाहा…।“
मटरू साहू होंठ को चाटता हुआ कहता है, ”आह! कितनी कमल देह। जरा! अपनी जवानी का सरपान करा दो। हम स्वयं बाल्टी में पानी भर देंगे।“ फिर सभी हँसता है, ”हा, हा, हा… हहहहहहह… हाहाहाहाहाहा…।“
शैलेन्द्र कुमार कहता है, ”हाँ, हाँ, केवल एक बार…।“ फिर सभी हँसता है, ”हा, हा, हा… हहहहहहह… हाहाहाहाहाहा…।“
”आप सभी के घरों में माँ-बहन-बेटी नहीं हैं। यदि मेरी जगह आपकी माँ-बहन-बेटी होती तो। क्या? तुम उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार करते। मैं भी किसी की माँ-बहन-बेटी-पत्नी हूँ। मैं बिकाऊँ औरत नहीं हूँ।“ कुनिया
”तुम! तुम्हारे जिस्म में कितनों के नाम लिखे हैं। तुम सब पैसा के वास्ते किसी के सामने कपड़ा उतारने को तैयार हो।“ बबलू सिंह
”भगवान के वास्ते ऐसा मत कहिए। समाज मुझ पर थूकेगी।“ कुनिया
”चमारिन की, कब से समाज में इज्जत होने लगी। तुम सब तो हम जैसे लोगों की रखैल हो।“ नवीन कुमार
”मैं आप लोगों के आगे हाथ जोड़ती हूँ। मेरे पति की तबीयत बहुत खराब है। घर में दो बूँद पानी नहीं है। कृपा करके एक बाल्टी पानी भरने दिया जाए।“ कुनिया
”अरे! हम तो कब से यही समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि तुम हमें खुश कर दो। तुम्हारे पति के इलाज का सारा खर्च उठाने को तैयार हैं।“ मटरू साहू
”मैं आपकी इच्छा पूर्ण नहीं कर सकती हँू। मैं उस तरह की औरत नहीं हँू। मुझे माफ करना। कृपा करके एक बाल्टी पानी भरने दिया जाए। आप कहो तो आपके पैर छूने को तैयार हूँ।“ कुनिया
”आजा, लो, लो, पानी भर लो। सभी जलमीनार तुम्हारे लिए ही तो है। जब चाहो पानी भरने आ जाओ। हमको तो पानी की आवश्यकता है ही नहीं।“ नवीन कुमार
”मुझे माफ कर दीजिए। आज के बाद कभी दिन में पानी भरने नहीं आऊँगी। अभी एक बाल्टी पानी भरने दिया जाए। वरना, मेरा पति मर जायेगा।“ कुनिया आँचल से आँसू पोंछती है।
”आजा, आजा भर लो, कौन रोक रहा है। ऐ! सभी दूर खड़ा रहो। भाभी जी को पानी भर लेने दो।“ शैलेन्द्र कुमार
सभी नल से कुछ दूर में खड़े हो जाते हैं। कुनिया डरी-डरी सी नल के पास गयी। बाल्टी में पानी भरने लगी। तभी चारों लड़कें कुनिया को चारों ओर से घेर लेते हैं। फिर कुनिया की जिस्म में हाथ डालने लगते हैं। कुनिया बाल्टी छोड़कर घर की ओर भागी। घर में डगरू की कुकरखाँसी बंद हो चुकी है। पल भर के वास्ते कुनिया सुकून का अनुभव की। पर डगरू के पास गयी तो देखी, जमीन पर खून की उल्टी है। डगरू की कुकरखाँसी बंद नहीं हुई है। उनका श्वास ही हमेशा-हमेशा के वास्ते बंद हो गया है। कुनिया छाती पीट-पीट कर रोने लगी।
— डाॅ. मृत्युंजय कोईरी

डॉ. मृत्युंजय कोईरी

युवा कहानीकार द्वारा, कृष्णा यादव करम टोली (अहीर टोली) पो0 - मोराबादी थाना - लालापूर राँची, झारखंड-834008 चलभाष - 07903208238 07870757972 मेल- [email protected]