हमदर्द
भावों को मेरे समझ नहीं
उनको समझाने बैठी मैं
सारे दर्द सहेजकर मेरे,
हमदर्द तलाशने बैठी मैं
दुनिया मुझसे रूठ गयी
सबको मनाने बैठी मैं
इतना मुश्किल सवाल बनकर,
खुद को हल करवाने बैठी मैं
टूटे तारों से मांगकर दुआएं
क़ुबूल के इंतजार में बैठी मैं
खुद टूट गए जो आखिर,
उनसे आस लगाती मैं
बेगाने रिश्तों की चिंता में
सब कुछ हार गयी मैं
खैर नहीं जिन्हें मेरी चिता की,
उनपे सब कुछ वार गयी मैं
बदले रंग सबके मौसम जैसे
सच देखके खुद को झुठलाती मैं
सावन भी कब पतझड़ बना,
उसका हिसाब लगाती मैं
आंसुओं के सागर में
खुशी के सीपी ढूंढती मैं
सारे दर्द सहेजकर मेरे,
हमदर्द तलाशने बैठी मैं
— सौम्या अग्रवाल