पर्यावरण

प्राचीन जल के साधन एवं  प्रदूषण से मुक्ति के उपाय

वैदिक ग्रंथों में जुताई, बुआई, कटाई और गहाई सहित कई कृषि कार्यों का वर्णन मिलता है।ऋग्वेद में ‘रुद्ध’ जल और जल चक्र का भी उल्लेख है।जिसे सिंचाई का उपयोग एवं वैदिक संहिताओं में भी विशेष सिंचाई नहरों का उल्लेख है।मोट, थाले जो कि पतरे के बने होते थे उनका भी उपयोग हुआ।पखाल,रेहट आदि भी सिंचाई किये जाने के साधन रहे। पहाड़ी क्षेत्र में खजूर,ताड़ी के वृक्ष की लकड़ी को दो भागों में बाट कर नहर बनाकर उपयोग किया जाता था।बाद में बिजली से मोटर पंप आदि से सिंचाई की जाने लगी।अब माइक्रो पाइप पद्धति से सिंचाई की जाने लगीं। सार ये है की विकास के आधार पर साधन नए होते गए।वर्तमान में बड़े जल स्त्रोतों के निर्माण से ही जल को बचाया जाकर,भूमिगत वाटर टेबल को बढ़ाया जाकर जल का उपयोग बेहतर तरीके से सिंचाई,पेयजल,निस्तार ,औद्योगिक क्षेत्र में उपयोग किया जा सकता है।ठीक उसी प्रकार जल की शुद्धता के लिए चिंतन आवश्यक है। जल को स्वच्छ रखने में हमारी भूमिका क्या होनी चाहिए।नदियो व अन्य जल संरचनाओ यथा तालाब, झील, कुए, बावडी आदि हमारी संस्कृति व परंपरा मे पूजा के स्थल रहे है, इनकी अनुपलब्धता या दूषित होने पर हेंड पम्प व नलकूप की पूजा करके भी परंपरा का निर्वाह किया जाता रहा है लेकिन प्राकृतिक जल संसाधनों के रख-रखाव के प्रति समुचित जिम्मेदारी का अभाव सा हो रहा है. नदियों व जल संरचनाओं के क्षरण व विलुप्तिकरण के प्रमुख कारण रहे है – नगरीय निकायों द्वारा सीवरेज (मल मूत्र) निकासी की समुचित व्यवस्था न करते हुए सीधे नदी, सहायक नदी, नालों, तालाबों मे इसे छोड़ देना, औधोगिक इकाइयों द्वारा प्रदूषण नियंत्रण के वचनो का पालन न करते हुए अपशिष्ट को अनुपचारित ही इनमे प्रवाहित कर देना।उदगम से संगम तक नदी के पुनर्जीवन के लिए करना चाहिए.।। कई नदियों के तट स्थित रहने वाले कई रहवासी अपने घर के निकले गंदे पानी का निकास घर के पीछे करते है। और उस गंदे पानी को सोख्ता गड्ढे में समाहित करते है। साथ ही वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की योजना बनावे ताकि गन्दा पानी स्वच्छ जल में न मिल पाए।वर्तमान में ऐसी ही प्रक्रिया को  अपनाने की आवश्यकता है ।ताकि  सीधे तौर पर गंदा पानी पावन नदियों के नदियों में न मिल पाए ।नदियों  को स्वच्छ बनाने के लिए नागरिकों  आगे आना चाहिए। नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने का दायित्व निभाने वाली संस्थाओं को पुरस्कृत कर उन्हें शासन से सहायता मुहैया होना चाहिए ताकि नदियों के शुद्धिकरण से सभी को शुद्ध जल का लाभ मिलकर जल संक्रमण  से होने वाली बीमारियों से निजात मिल सके ।स्वच्छता का संदेश और जागरूकता लाना हर इंसान का कर्तव्य है, क्योंकि स्वच्छता से ही बीमारियों ,प्रदूषण को मुक्त रख कर स्वास्थ्य का लाभ हमें एक नई दिशा प्रदान कर सकता है।

— संजय वर्मा “दृष्टि”

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /[email protected] 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच