ब्याही जाती हैं लड़कियां
कहने को तो ब्याही जाती हैं लड़कियां, लेकिन
कुछ लड़कियों को मिलते हैं, प्रेमी!
कुछ लड़कियों को मिलते हैं, पति! और
कुछ लड़कियों को मिलते हैं, पुरुष!
प्रथम तरह के पति, लाते हैं फूलों के बुके/ तोहफे
दूसरी तरह के पति, लाते हैं जरुरत के सामान
तीसरी तरह के पति,उन्हें कोई सरोकार नहीं
प्रथम तरह की लड़कियां,सजती हैं गजरे/गहनों में
दूसरी तरह की लड़कियां,गंधाती हैं पसीने/ मसाले में
तीसरे तरह की लड़कियां,बरती जाती हैं “यूज एंड थ्रो”
प्रथम तरह की लड़कियां,रहती हैं नाजुक/बिंदास
दूसरी तरह की लड़कियां,निभाती हैं जिम्मेदारियां
तीसरी तरह की लड़कियां,फिट होती हैं सामान की तरह
प्रथम तरह की लड़कियां,उन्मुक्त मचलती जलप्रपात सी
दूसरी तरह की सुख दुख, खुद में समाहित करती सागर सी
तीसरी विस्मृत/तिरस्कृत मौन की नाव से पार लगाती केवट सी
प्रथम तरह की लड़कियों के जाने पर,
बिलखते हैं पति!
द्वितीय तरह की लड़कियों के जाने पर,
उनकी अहमियत समझते हैं पति!
तीसरी तरह की लड़कियों को
उकसाया जाता है जाने के लिए,
खत्म किया जाता है मान सम्मान
छीन ली जाती है सोचने समझने की शक्ति
और फिर उनके जाने पर,
“कोई फर्क नहीं” के अहं संग जीते हैं,पुरुष/ पति!
— मनु वाशिष्ठ