वो चांद मेरा नहीं था
जो मेरा कभी नहीं था
मेरा मन उस सा नहीं था
जो रात ढले फिर चमके
वो चांद मेरा नहीं था
जो हर बात में कहीं था
हर मुलाकात में कहीं था
शमा जली नहीं उस महफ़िल की
जिसमें उसका जिक्र नहीं था
जो मेरे हर सवालों में था
मेरे हर ख्यालों में था
तोड़ दिया हर वो आईना
जिसमें उसका अक्स नहीं था
जो मेरे तन मन में था
मेरी धड़कन में था
उसके दिल में मेरे लिए
कुछ खास स्पंदन नहीं था
जो मेरे आंसू की नमी में था
मेरे जीवन की कमी था
चकोर सा ताकने बैठी मैं
वो चाँद मेरा नहीं था
जो मेरी जुल्फों में था
मेरे कंगन में था
सोलह साज श्रृंगार करे मैंने
वो चलनी के पार नहीं था
— सौम्या अग्रवाल