वक्त बेवक्त
यूँ वक्त बेवक्त बेसबब न पूछा करो।
हम से हर बात का मतलब न पूछा करो।
गुनाहगार छूटे,बेगुनाह को मिली सजा,
अजी कैसे हुआ ये करतब न पूछा करो।
वो रहते थे दिल में धडकन की तरह,
कैसे हुए ये फसले सबब न पूछा करो।
आती है हर एक रात,अब रतजगा लिये,
कैसे गुजरती है तन्हाँ शब न पूछा करो।
इन्सां कहाँ है अब है परछाइयों के हुजूम,
दोस्तों कैसे हुआ ये करतब न पूछा करो।
सह लिये हर सितम,उन का लिहाज किया,
“सागर” हम सी चुके है लब,न पूछा करो।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”