कविता

दौलत…

बेटा दे न सका पिता की अर्थी को कांधा,
किस काम आई ऐसी दौलत,
जिसे विदेशों में कमाई।
जिसने लुटा कर बनाया इंसान,
बुढ़ापे का एक सपना सजाया
ममता के पुष्प सलोने संजोए,
उम्मीदें के सितारे फूटकर रोने लगे।
तड़पते रहे दवाओं के वास्ते,
अंतहीन सफर में मिली तन्हाई,
बेटे निकल जाते चंद दौलत के वास्ते,
कहीं भटक जाते घर के रास्ते,
माता पिता को दूर रखना कोई हल नहीं,
वृद्धा आश्रम छोड़ना कोई फर्ज नहीं,
आज के रिश्ते फिसले रेत से,
दौलत की ललक इस तरह छाई,
क्या होगा इस धन दौलत का,
इस जहां में मां बाप ने होंगे
जल जाएगी अर्थियां आप न होंगे,
जब लोटेंगे वतन से सब खाक मिलेगे,
माता पिता का शरीर सिर्फ खाक मिलेगा।
तुम खुश हो तुमने दौलत कमाई,
महल खड़े किए कोठियां बनाई,
चले जाते मां बाप को अकेला छोड़,
सोचो लाचारी में उनका कोन,
किस काम आई ऐसी दौलत,
जिसे विदेशों में कमाई।
इस दुनिया में बेटे से बढ़कर प्यारा कोन,

— गोविन्द सूचिक

गोविन्द सूचिक

अदनासा, खिरकिया जिला -हरदा नर्मदापुरम संभाग मध्य प्रदेश मोबाइल 90092-20291