उल्लुओं की सुरक्षा, संरक्षण, आहार, और रहने की व्यवस्था हो
जंगलों,खंडहरों में ज्यादातर रात के समय उल्लू को देखा जा सकता है।वैसे भी उल्लू की प्रजातियां कम होती जा रही है।इसके पीछे अवैध शिकार का कारण हो सकता है।अंधविश्वास के कारण तांत्रिक क्रिया में इनका शिकार होता आया है।सख्त निगरानी ओर कड़ी सजा से इनके शिकार में कमी आई है।फिर भी उनकी प्रजाति कम हुई है।इनकी सुरक्षा,आहार और रहने के पर्याप्त व्यवस्था ही उनकी सीमित प्रजातियों में इजाफा कर सकती है।देखा जाए तो सफ़ेद उल्लू ,ओव्लेट,ईगल उल्लू ,मोटेल वुड उल्लू ,ब्राउन फिश उल्लू,आदि में बार्न आउल (हवेली का उल्लू ) उल्लू की प्रजाति विलुप्ति कगार पर है | सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों में उल्लू प्रजाति जो की विलुप्त थी मिली| खंडवा और बुरहानपुर के खकनार जंगल में भी दुर्लभ वन उल्लूक को देखा गया था | छत्तीसगढ़ का वन विभाग भी फ्रॉस्ट आउटलेट दुर्लभ प्रजाति की खोज में अभियान चलाया था |इस जंगली उल्लू का नाम खोजकर्ता के नाम पर ब्लोविट रखा गया था |वर्ष 1998 इस उल्लू को महाराष्ट्र के जंगलों में फिर से देखा गया था |उल्लेखनीय है की अमेरिका ने सं 1916 में जीव – जंतुओं की रक्षा हेतु विशेष अभियान के अंतर्गत कनाडा से प्रवासी पक्षियों के बारे में एक संधि की जिसके फलस्वरूप वन्य उल्लुओं को अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण प्राप्त हुआ था |उल्लू संरक्षण पार्क की महानगरों में दरकार है|दुर्लभ प्रजाति के उल्लू को ढूंढने के लिए विस्तृत सर्वेक्षण की भी आवश्यकता है ताकि उल्लू प्रजाति किस क्षेत्र में कितनी है का पता किया जा सकें |इस कार्य मे सहयोग हेतु जैव विविधता बोर्ड के साथ वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं ,वन विभाग को जंगलों के नजदीक रहने वाले रहवासियों द्धारा खोज,उनकी सुरक्षा,आहार के लिए मिलकर सहयोग देना होगा ताकि उल्लुओं को बचाया जा सकें|
— संजय वर्मा ‘दृष्टि’