कविता

टूटता तारा

मन की चाह एक है
आसमां में तारे अनेक है
पूरा करने चाहत को
देखो टूटता तारा एक है

खुद को समेटे जैसे तैसे
अम्बर में अकेले चमकता है
भीड़ में सबके साथ मगर
छुपकर के आंसू पीता है

आशाएं हैं उससे सबको
चाह करेगा पूरी इक दिन
सफर में कोई साथ नहीं,
मगर शिकायत न करता है

अपने सपनों के लिये टूटा है
सबकी आंखों में खटका है
उनके सपनों के लिए टूटा जब,
हर कोई उसका अपना है

उसकी खुशी कोई न देखे है
कर्त्तव्यों के बड़े झमेले हैं
आसमां में बैठे निंदा मिली,
टूटा तो सबके खिले चेहरे हैं

अपनी किस्मत को छोड़ चला
दुनिया से नाता तोड़ चला
सबकी किस्मत आजमाने को
आज फिर टूटता तारा एक है

सौम्या अग्रवाल

पता - सदर बाजार गंज, अम्बाह, मुरैना (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तक - "प्रीत सुहानी" ईमेल - [email protected]