कैसे
क्या गुजरती है मेरे साथ बताऊँ कैसे
हर किसी को मैं नजर आऊँ तो आऊँ कैसे
एक पल के भी लिए चैन कहाँ है मुझको
दिल किसी से मैं लबाऊँ तो लगाऊँ कैसे
पेश करने के लिए कुछ नहीं अश्कों के सिवा
घर किसी को मैं बुलाऊँ तो बुलाऊँ कैसे
नींद को भाता नहीं पलकों का भीगा बिस्तर
ख्वाब आँखों में सजाऊँ तो सजाऊँ कैसे
‘शान्त’ है कण्ठ रुँधा काँप रही है ये जुबाँ
मैं फड़कती सी गजल गाऊँ तो गाऊँ कैसे
— देवकी नन्दन ‘शान्त’