किस बात की मुझसे रंजिश है
किस बात की मुझसे रंजिश है,
मैंने तो सबका भला ही चाहा।
जो चल रहे उल्टी चालें,
मैं उनको सीधा करना चाहा।
इल्जाम है उनका उन्हें रोकने का,
जिन्हें भटके पथ से हटाना चाहा।
वो जो भी समझ रहें हों मुझको,
मैं तो उनको भी अपनाना चाहा।
किस बात की मुझसे शिकवा है,
मैं तो सन्मार्ग उन्हे बताना चाहा।
जो जुल्म किए उन्होंने अबतक,
अंजाम उन्हें बताना चाहा।
रंजिश ही सही पर बोलें भी सही,
अपने लिए मैंने उनसे, कब क्या चाहा?
सब लोगों के हित में ही मैं,
हरदम उनसे टकराना चाहा।
सबके हित में ही अपना हित है,
यही बात मैं उनको बतलाना चाहा।
किस बात की मुझसे रंजिश है,
मैंने तो सबका भला ही चाहा।
— अमरेन्द्र