लघुकथा

छोटे लोग

“मां, मुझे भी ले चल ना अपने काम वाले घर में” मिनी मचलकर कहने लगी। “नहीं रे दो दिन तुझे लेकर क्या चली गयी तूने तो आदत बना ली” शामली ने कहा। मिनी ने फिर कहा -“हां वहां बड़ा मज़ा आता है, वो दीदी के साथ घर घर खेलने में ,उनके किचन सेट में बहुत सारा सामान है जैसे फिरिज मिसकी।”
शामली उदास हो गई और बोली- “रहने दे रे, मेमसाब ने तुझे लेकर जाने से मना किया है, वो अपनी बेटी को तेरे साथ नहीं खेलने देना चाहती हैं।”
“पर क्यों, मां?” मिनी सवाल कर बैठी।
“वो बड़े लोग हैं और हम छोटे इसलिए.” कहकर शामली काम पर निकल गयी।
मिनी के मन में कुछ ऐसे सवाल मंथन करने लगे, मां और वो मेमसाब तो बराबर ऊंची हैं और मैं भी उस दीदी से थोड़ी बड़ी हूं, मां ने ही कहा था उसे दीदी कहने को, फिर हम छोटे लोग कैसे?

— अमृता राजेन्द्र प्रसाद

अमृता जोशी

जगदलपुर. छत्तीसगढ़