मेरे गुरु जी
मेरे गुरु जी कितने प्यारे थे,
बहुत ही सुंदर होते वो कक्षा के नज़ारे थे,
वो बहुत प्यार प्यार से सिखाते थे,
हम भी कभी उनसे डांट नहीं खाते थे।
कक्षा में वो कभी देरी से नहीं आते थे,
खूब मन लगाकर सारे बच्चों को पढ़ाते थे,
पहले अच्छी शिक्षा हमको देते थे,
फिर बाद में हमारी परीक्षा लेते थे।
अगर कोई गलती हम कर देते थे,
उसका एहसास कराकर खूब हमको हंसाते थे,
ऐसे ज्ञान की अलख जगाते थे,
साथ में अच्छे संस्कार भी हमको सिखाते थे।
पढ़ाई में जो पीछे रह जाते थे,
उनको आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे,
सच में ही मेरे गुरु जी कितने प्यारे थे,
सारे जग में वो सबसे न्यारे थे।
— कैप्टन (डॉ.) जय महलवाल