धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

तप और समर्पण का व्रत हरितालिका तीज

भारतीय संस्कृति में तीज त्योहारों का प्रमुख स्थान है।हिन्दू धर्म में व्रत त्यौहार को बड़ी ही महत्ता दी गई है। महिलाओं के कठोर तप और उपवास का व्रत ही हरतालिका ( तीज) होता है। ये पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पावन तृतीय तिथि को होता है।यह पर्व भोलेनाथ और माता पार्वती के मिलन का त्यौहार है जिसे आज भी विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और मन पसंद पति पाने के लिए क्वारी लड़कियां बड़े ही आस्था और प्रेम से करती हैं। भोले शिव से अपने पति की लंबी आयु की कामना करते हुए तीज व्रत को बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। तीज बेहद खास होता है महिलाओं के लिए।
पौराणिक ग्रंथों में इस पर्व की कथा इस प्रकार है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव की अर्धागीनी थी किन्तु जब एक खुशी के समारोह में राजा दक्ष के द्वारा भगवान भोले की उपेक्षा और अनादर की गई तो ये बात शती जी को बहुत बुरा लगा इतना कि उन्होंने हवन कुंड में कूद कर अपने पिता के घर पर ही अपने प्राण त्याग दिए।किन्तु फिर से पर्वत राज हिमालय के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया ।जब वो विवाह योग्य हुई तो नारद जी भगवान विष्णु जी से विवाह का प्रस्ताव लेकर आए । पर्वत राज ने सहर्ष स्वीकार कर लिया!
किन्तु पार्वती को ये रिश्ता मंजूर नहीं था वो केवल शिव जी से ही ब्याह करना चाहती थी ।पिता के विरोध करने पर बात अपनी सखियों को बताई और सखियों ने उन्हें घने जंगल में पर्वत के एक गुफ़ा में ले जा कर छुपा दिया। वहीं पर पार्वती ने एक बालू का शिव लिंग स्थापित करके एक सौ आठ वर्षों तक घोर तपस्या किया।चूंकि शिवलिंग की स्थापना भाद्र पद तृतीय तिथि शुक्ल पक्ष को किया और घोर तपस्या प्रारम्भ कर दिए ।पार्वती जी के घोर तपस्या को देखते हुए त्रिपुरारी का भी आसान डोल गया और भोले नाथ ने पार्वती के तपस्या से प्रसन्न हो कर उन्हें अर्धाग्नी के रूप में स्वीकार किया।
तभी से विवाहित महिलाएं अपने पति के दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य के लिए तीज हरतालिका व्रत करती हैं। क्यूंकि पार्वती की सखियां ही उनको हर कर घने जंगल में ले गईं इसलिए इसे हरतालिका व्रत भी कहते हैं।
ये व्रत केवल उपवास ही नहीं दर्शाता बल्कि अपने पति के लिए प्रेम और समर्पण का भाव भी निहित है इस व्रत में पुरुषों का आधिपत्य किन्तु नारी का सशक्तीकरण का संदेश भी दिखता है। सखियां एक जुट हो कर पार्वती का साथ देती हैं वहीं पर्वत राज हिमालय की पार्वती के हट के आगे झुकना भी पड़ता है। साथ ही ये भाव भी निहित है कि नारी अबला नहीं नारी घोर से घोर और कठिन तपस्या भी कर सकती हैं अपने हित के लिए।
साथ ही पार्वती का प्रेम और शिव के प्रति समर्पण भाव भी निहित है इस कथा में।
अतः प्रकृति प्रेमी भोले शिव सदा अविनाशी हैं जो एक लोटा जल और भांग धतूरे बेलपत्र से ही एक पल में प्रसन्न हो जाते हैं वो भोले कहलाते हैं। सुहागिन महिलाओं के घोर आस्था प्रेम और पति के लिए समर्पण का व्रत है तीज।
तीज व्रत सारा दिन निर्जला उपवास करके संध्या बेला में मिट्टी बालू या फिर हल्दी से शिवलिंग की स्थापना की जाती है उसके बाद महिलाएं एक साथ बैठ कर बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ हर तालिका व्रत की कथा सुनती हैं शिव पार्वती की पूजन श्रृद्धा और निष्ठा से करतीं है। विभिन्न प्रकार के फल फूल श्रृंगार की वस्तुएं नए परिधान में खुद भी सोलहों श्रृंगार करके गीत नाद के साथ शिव पार्वती का पूजन करती हैं। अगली सुबह तक निर्जला व्रत रह कर पुनः सुबह पूजन करके पति पुत्र की दीर्घायु होने की मंगल कामना के साथ व्रत का समापन होता हैं।
जय मां गौरी जय भोलेनाथ।

— मणि बेन द्विवेदी

मणि बेन द्विवेदी

सम्पादक साहित्यिक पत्रिका ''नये पल्लव'' एक सफल गृहणी, अवध विश्व विद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर एवं संगीत विशारद, बिहार की मूल निवासी। एक गृहणी की जिम्मेदारियों से सफलता पूर्वक निबटने के बाद एक वर्ष पूर्व अपनी काब्य यात्रा शुरू की । अपने जीवन के एहसास और अनुभूतियों को कागज़ पर सरल शब्दों में उतारना एवं गीतों की रचना, अपने सरल और विनम्र मूल स्वभाव से प्रभावित। ई मेल- [email protected]