अमृत हलाहल
शारदेय प्रकाशन से प्रकाशित अर्चना मिश्रा जी के काव्य संग्रह, “अमृत हलाहल, संवेदनाओं के स्वर”, को पढ़ना शुरू किया तो एक बार में ही पूरा पढ़ गई, क्योंकि यह बहुत विस्तृत फलतः उबाऊ नहीं है। सुखद अनुभव रहा कि सैकुलरिज़्म,अंग्रेजित और वामपंथी भीड़ के बीच दार्शनिक, सात्विक और आध्यात्मिक साहित्य के दुर्लभ दर्शन हुए।
यह पुस्तक तीन खंडों में बंटी है –
1.’अंतः परिक्रमा’,
2.’कोविड काल के अनुभव’ और
3.’सुर्ख धरती स्याह आसमान।’
‘अंतः परिक्रमा’, आधारित है पौराणिक समुद्र मंथन पर। यह प्रकृति त्रिगुणात्मक है। सत, राज और तम इन तीन गुणों में से सत और तम, यानी डॉ. जैकल और मिस्टर हाइड के बीच सदैव मंथन होता रहता है।
मनुष्य की घृणा, लिप्सा आदि दुष्विचारों और दया परोपकार जैसी सद्विचारों की रस्सी से बंधी ज्ञान रूपी मंदराचल की मथानी से भावनाओं के सागर में जब मन्थन होता है तो सद्वृतियों का अमृत और दुष्प्रवृत्तियों का हलाहल दोनों ही प्रकट होते हैं।
अमृत जीवन का ध्येय या साध्य है, हलाहल जीवन का सत्य है दुर्निवार्य है। ऐसे में यदि अमृत चाहिए तो, मनुष्य को अपनी आत्मा में अवस्थित सद्गुण के ‘बीज’ को लेकर चेतना के गहन मंथन से अपनी आत्मा में अवस्थित ईश्वर के अंश से साक्षात्कार करना होगा। यही ईश्वरीय अंश अमृत है, इसीलिए मानव अमृत पुत्र है।
आत्मा- परमात्मा के अभेद है, इसी अद्वैत को यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे, “तत्वमसि” आदि में बताया है।
अर्चना जी ने, ‘इदं-न-मम’ से आरम्भ करके, वासुधैव कुटुंबकम, सर्वधर्म समभाव, जीवन की सततता, सकारात्मकता, सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय,
“सुख- दुःख, भाव-अभाव, सभी के लिए समभाव”
“असतो मा सद्गमय”,”मृत्योर्मा अमृतं गमय” आदि दर्शनिक भावों को अमृत की बूंद में समेट लिया है। काव्य की दृष्टि से देखें या अध्यात्म की, यह अंश अद्भुत है। जीवन की उन्नति का मार्गदर्शक है।
दार्शनिक विचारों के अतिरिक्त प्रकृति चित्रण, ‘गौरय्या’, ‘मां’, बेटियां ‘स्त्री’, ‘प्रेम’, दस्तान-ए- इश्क, ‘रिश्ते’ और ‘दरकते घर’ के साथ राष्ट्र प्रेम, लोकतंत्र आदि लोक रुचि के विषय भी हैं।
द्वितीय खण्ड “कोविड काल के अनुभव” के हलाहल साथ आरम्भ होता है। यहाँ ‘निविड़ अंधकार’ और ‘कालरात्रि’ है , परन्तु मोदी जी के आह्वान पर ‘एक दीप’ जला कर, ‘जगमग दीवाली हिंदुस्तान वाली’ मना कर एक सकारात्मकता का सन्देश दिया है। लेखिका मानती हैं कि यह महामारी मनुष्य के अहंकार का प्रतिफल है। अतः वह मनुष्य को अहम छोड़ कर ‘आत्मवत सर्वभूतेषु’ का सन्देश देती हैं और अखिल विश्व को उबारने की बात कहती हैं।
तीसरे खण्ड ‘सुर्ख धरती स्याह आसमान’ में हलाहल है isis के आतंकवाद, जो हिंसा का घृणितम रूप है।
सीरिया के तीन शहर पल्मायरा, होम्स, एलेपप्पो पर आतंकवादियों द्वारा ढाए गए कहर और सात वर्षीया सीरियाई लड़की “बाना अलादेव” के ट्विटर संदेश का ज़िक्र करते हुए वह बताती हैं कि एक देश में लगी आतंक की आग क्रमशः सारे विश्व को निगल जायेगी।
‘काश्मीर’ और ‘मेरा दम घुट रहा है’ रचना में वह कश्मीर में वर्षों से चल रहे रक्तरंजित अतंकवाद का भीषण रूप दिखाते हुए पूछती हैं कि –
“क्या यही सिखाते हैं —
गुरु ग्रंथ साहिब, गीता, बाइबिल और कुरान?
दिनोंदिन बढ़ती दहशतगर्दी, खून-खराबा…,”
हलाहल का वर्णन करके भी एक सकारात्मक संकल्प लेने आग्रह करती हैं –
“मुक्त मन से आज ले संकल्प,
‘मनुपुत्र’ हैं तो मानवमात्र में जगायें बंधुत्व,
रोपें ‘सत्य-बीज’ ताकि अंकुरित हो ‘सुंदर’,
प्रसृत हों ‘शिवत्व’ हर मन के अन्दर।”
अतः आप सभी इस विष अमृत से पूर्ण पुस्तक को अवश्य पढें।
शैली त्रिपाठी
लखनऊ