भाषा-साहित्य

राष्ट्रीय बोध की संवाहक है हिन्दी भाषा

किसी भी देश को एक सूत्र में बांधने के लिए एक राष्ट्र भाषा होनी चाहिए,क्योंकि भाषा के माध्यम से ही हम अपने भावों तथा विचारों को एक दूसरे से व्यक्त कर सकते हैं।भाषा ही मेल-जोल तथा संपर्क स्थापित करने में सहायक होती है।हमारा देश भारत 1947में आजाद हुआ था,लेकिन अभी तक उसकी कोई एक स्पष्ट राष्ट्रभाषा नहीं है।जबकि हम आजादी का अमृत महोत्सव बड़ी धूमधाम से 15 अगस्त 2022 को मना चुके हैं।भारतीय संविधान में 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को केन्द्रीय शासन की राजभाषा के रूप में स्थापित किया गया था।भारत में हिन्दी को उचित स्थान पर प्रतिष्ठित करने के लिए स्व. पद्मश्री अनंत गोपाल शेवडे के कुशल नेतृत्व में तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के समर्थन से 1975 में नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया गया था।जिसमें निर्णय लिया गया था कि संयुक्त राष्ट्रसंघ में हिन्दी को मान्यता प्रदान कराने का प्रयत्न किया जाएगा।लेकिन अभी तक कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है।लेकिन हिन्दी अपने बल पर भारत के बाहर के  लगभग एक सौ छत्तिस विश्व विद्यालयों में पढ़ाई जा रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि हिन्दी विश्व स्तर पर एक समर्थ और समृद्ध भाषा के रूप में अपने पांव पसार रही है। जबकि अंतररार्ष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा हिन्दी को स्थान दिलाने के लिए जो प्रयास होने चाहिए उसकी ओर गम्भीरता से ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
हिन्दी भाषा हमारी सभ्यता और  संस्कृति की संवाहक है,जिसका प्राचीनतम रूप संस्कृत है। हिन्दी भारत की राजभाषा और राष्ट्रभाषा के रूप में जानी जाती है।जो पूरे देश को एक सूत्र में बांधती है।हिन्दी इतनी सामर्थ्यवान है कि भारत की  अन्य भाषाओं के साथ  विश्व की भाषाओं को भी साथ लेकर चल रही है। तमाम विरोध के बाद भी हिन्दी की भारत की राष्ट्र भाषा के रूप में पहचान बनी हुई है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था
“हिन्दी आम जनमानस की भाषा है,जो विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम से सांस्कृतिक विकास करने में सहायक है।”
आज हिन्दी का जो रूप हमें दिखाई देता है वह उसकी लंबी यात्रा का परिणाम है।भाषा परंपरागत वस्तु है जो हमें परंपरा  से ही प्राप्त होती है।जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। जिस प्रकार हम  सभ्य होना सीखते हैं ठीक उसी प्रकार हम समाज से ही भाषा भी सीखते हैं।जो भाषा समय के साथ नहीं चलती है वह कम बोली जाती है।हिन्दी ऐसी भाषा है जो समय से तालमेल बिठाकर चलती है।तथा अन्य भाषाओं को भी स्वयं में समाहित कर लेती है।परिणाम स्वरूप उसके बोलने समझने वालों की संख्या निरंतर बढ़ रही है।
जब भारत में मुगलों का राज्य था तब काम काज की भाषा फारसी थी।हिन्दी भाषा को बढ़ाने में भारतेन्दु युग का  बहुत योगदान रहा है।भारतेन्दु जी ने कहा था कि मातृभाषा की उन्नति से देश की उन्नति होती है।
“निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के,मिटत न हिय को सूल।।”
   मानव जन्म के उपरांत जो भाषा माता-पिता तथा परिवार से सर्वप्रथम सीखता है, वही उसकी मातृ भाषा होती है,जो उसकी समाजिक पहचान को दर्शाती है।भारत में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं।भारत के प्रत्येक राज्य की अपनी भाषा है।जो उसकी शिक्षा का माध्यम है।उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश,उत्तराखंड,हरियाणा,राजस्थान, छत्तीसगढ,व झारखंड में हिन्दी को मातृभाषा की मान्यता प्राप्त है।अब हिन्दी की गुणवत्ता को विश्व स्तर पर स्वीकारा जा रहा है।     चीन ,जापान,दक्षिणकोरिया,इजराइल ,फ्रांस व जर्मन देश अपनी मातृभाषा की शिक्षा की बदौलत ही विकसित देशों की श्रेणी में शामिल हुए हैं।मातृभाषा बौद्धिक संपदा के लिए कितनी महत्वपूर्ण है इससे स्वतः प्रमाणित हो जाता है।मातृभाषा में चिंतन और मौलिकता के बीज  छुपे होते हैं अतः प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होना चाहिए।भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति-2020 में कक्षा पांच तक की शिक्षा मातृभाषा में देने का प्रावधान किए हैं।गांधी जी का मानना था कि मातृ भाषा से इतर भाषा को बच्चों पर लादना उनकी मौलिकता से खिलवाड है।
   द्विवेदी युग के महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी को समृद्ध बनाने के लिए बहुत काम किए हैं।उन्होने कानपुर से सरस्वती पत्रिका निकालकर  हिन्दी का खूब प्रचार प्रसार किया।वही हिन्दी के प्रथम स्वच्छन्दतावादी कवि श्रीधर पाठक ने मातृ भाषा में लिखने पढने का आवाह्न किया था।इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि हिन्दी के साहित्यकारों ने भी भाषा को समृद्ध करने के लिए अथक प्रयास किये हैं, तब जाकर हिन्दी इतना समृद्ध हो पाई है।आज भारत में हिन्दी संपर्क की भाषा बन गई है।हम कह सकते हैं,कि हिन्दी भारत की राजभाषा,राष्ट्रभाषा एवं संपर्क भाषा है।इधर हिन्दी ने वैज्ञानिक एवं तकनीक के विकास में भी पांव पसारे हैं जो कि अत्यंत सुखद है।
हिन्दी भाषा ने भारतीय समाज को एक सूत्र में बांध रखा है।हिन्दी ही एक ऐसी भाषा है जो सभी भाषाओं को अपने समाहित कर लेती है तथा किसी भाषा के विकास मार्ग को अवरुद्ध नहीं करती है।
भाषा ही मनुष्य को अन्य प्राणियों से अलग एवं विशिष्ट बनाती है यह समाज को एक सूत्र में बांधने का काम करती है। भाषा ही किसी समाज की प्राण वायु है।नवसृजन भाषा के माध्यम से ही संभव है।जिस देश के पास अपनी भाषा नहीं होती है वह स्वतंत्र नहीं हो सकता है।हमारे देश के पास भाषा है,किन्तु कुछ लोगों की उदासीनता उसके प्रयोग पर समुचित ध्यान नहीं दे रही है।यह चिंता का विषय है।अब हमें हिन्दी को तकनीक की भाषा बनाना होगा।हलाकि इधर तकनीक के क्षेत्र में भी हिन्दी में उत्साह वर्धक काम हुए हैं।आन लाइन के प्लेटफार्म पर हिन्दी स्वयं को स्थापित कर रही है।जो की अत्यंत सुखद है।
यह हिन्दी की अपनी  ही ताकत है,कि वह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है।
हम जानते हैं भारत से दुनिया भर की  ताकतें  व्यापारिक संपर्क बनाए हुए हैं।बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कार्यलय भारत में काम कर रहे हैं जिसके लिए उनके कर्मचारियों का काम  हिन्दी के बिना संभव नहीं है।अत: विदेशी भी हिन्दी खूब सीख रहे हैं। वर्ष 2015 के आंकड़ो के अनुसार विश्व में हिन्दी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन गई है।दुनिया के सभी 206देशों के लगभग एक अरब तीन करोड लोग हिन्दी बोल रहे हैं। बालीवुड की हिन्दी के प्रचार प्रसार की सहभागिता को नकारा नहीं जा सकता है।फिजी, कोरिया व सिंगापुर में भी हिन्दी बोली जाती है समझी जाती है। कुछ देशों में तो प्राथमिक विद्यालयों में हिन्दी अनिवार्य विषय के रूप में पढाई जाती है।
  हिन्दी भाषा हमारे राष्ट्र का गौरव ही नहीं भारतीयों का स्वाभिमान है।धीरे धीरे हिन्दी विश्व स्तर पर अपना स्थान बना रही है जिससे भारत का आर्थिक रूप से उभरना तय है।हिन्दी की बात करने वाले हिन्दी की रोटी खाने वालों से ज्यादा हिन्दी स्वयं अपना विकास करने में सहायक सिद्ध हो रही है।इस प्रकार हिन्दी पूरे देश को ही नही पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरोने के लिए तत्पर है।वास्तव में देखा जाय तो हिन्दी भाषा राष्ट्रीय बोध की संवाहक है।तभी तो लाला लाजपत राय हिन्दी को भारतीय राष्ट्रवादी रूपी भवन की नींव मानते थे।तो आइये आज से ही हम सभी हिन्दी के उत्थान के लिए संकल्प लेते हैं ।
जय हिन्दी जय देवनागरी!
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— जयराम जय

जयराम जय

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