कहानी

लंबी कहानी – प्यार में पागल 

 भाग-1

गोल्डन पब्लिक स्कूल का कैम्पस आज फेयरवेल प्रोग्राम के लिए बेहद खूबसूरती से सजाया गया था। रंग-बिरंगी रोशनी, फूलों की मालाएं, और चारों ओर लटकती रिबनें माहौल को एक उत्सव जैसा बना रही थीं। स्टेज पर स्कूल का नाम चमचमाते अक्षरों में लिखा था, और एक तरफ प्रधानाचार्य का मंच था। सभी छात्र छात्राओं की आंखों में उम्मीदें और भविष्य के सपने झलक रहे थे।

जब प्रधानाचार्य माइक पर आए, पूरे हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज गई, सभी छात्रों ने अपने प्रधानाचार्य का स्वागत तालियां बजा कर किया। प्रधानाचार्य ने सबके अभिवादन में अपना हाथ उठाया और सबको शांत रहने को कहा। समूचे हॉल के छात्रों ने उनकी बातों का सम्मान किया और हॉल में तत्काल सन्नाटा छा गया। 

अब उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए माइक पर कहा, “प्रिय बच्चों, आज आप सभी ने स्कूल की इस यात्रा को सफलतापूर्वक पूरा किया है। आप में से हर एक का भविष्य उज्जवल है, और अब यह समय है कि आप अपनी उड़ान भरें। कॉलेज का सफर शुरू होने वाला है, जहां आपको खुद को साबित करने के और भी मौके मिलेंगे। याद रखें, मेहनत और ईमानदारी आपके जीवन के पथ-प्रदर्शक होंगे। मैं आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं, जाईये और जाकर अपने सपनों को साकार किजिए, मेरी शुभकामनाएं हमेशा आप सबों के साथ है।”

यह शब्द सभी छात्रों के दिल में गूंज उठे। तालियों की गूंज से एक बार फिर पूरा हॉल भर गया। 

इसी स्कूल का एक प्रतिभावान छात्र यश, जो अपने दोस्तों के साथ खड़ा था, मुस्कुराते हुए इस भाषण को सुन रहा था। उसके मन में भी कॉलेज की नई दुनिया की छवि पहले से ही बनने लगी थी।

कार्यक्रम समाप्त होते ही यश ने दोस्तों से विदा लिया और घर जाने के लिए स्कूल कैम्पस के गेट की ओर बढ़ने लगा। वह सोच में डूबा हुआ था कि कैसे कॉलेज में उसकी नई शुरुआत होगी। तभी, पीछे से एक धीमी आवाज ने उसे रोक दिया।

“यश…,” यह आवाज अर्पिता की थी।

यश ने मुड़कर देखा। अर्पिता उसके सामने खड़ी थी, आंखों में हल्की नमी और दिल में हिम्मत। यश अर्पिता को बहुत अच्छी तरह जानता था वह एक बेहद खूबसूरत और समझदार लड़की थी, आज अर्पिता भी स्कूल की परीक्षा पास कर अपने जीवन की नई शुरुआत के लिए निकल रही थी। एक तरह से सभी पास आउट विद्यार्थी का आज आखरी मिलन था। फिर न जाने वे सब जीवन के किस मोड़ पर कब मिले।

अर्पिता उसके पास-बेहद पास आ गई थी, उसने यश की आंखों में झांकते हुए कहा, “यश, आज हम सब जुदा हो रहे है, हमारी स्कूल की पढाई खत्म हो चुकी है, फिर न जाने किस मोड पर मिलेंगे पर मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूं।”

“बोलो अर्पिता।” यश ने उसे हौसला देते हुए कहा।

“यश जब से मेरा दाखिला स्कूल में हुआ तब से आज तक मेरे दिल और दिमाग में तुम ही छाए रहे। तब मैं बच्ची थी और तुम भी। पर अब हम दोनों पंद्रह सोलह साल के है और अब जीवन को थोड़ा बहुत समझने लगे है। मैं बस ये कहना चाहती हूं कि तुम्हारे बिना सब अधूरा लगता है, यश। तुमसे बस यही कहना चाहती थी काफी दिनों से पर कह नहीं पाती थी… कि मैं तुमसे प्यार करती हूं। तुम ये कह सकते हो की तुम्हारे प्यार में पागल हूं मैं।”

यश थोड़ी देर तक उसकी आंखों में देखता रहा, जैसे वह सही शब्द ढूंढने की कोशिश कर रहा हो। फिर उसने धीरे से कहा, “अर्पिता, तुम मेरे लिए बहुत मायने रखती हो, बचपन से आज तक तुम मेरी बहुत अच्छी दोस्त भी रही हो। ये बात मेरी समझ में पहले ही आ गई थी कि तुम मन ही मन मुझे चाहती हो, मैने कभी उस बात को बढावा नहीं दिया जानती हो क्यों…? क्योंकि फिलहाल मैं सिर्फ अपने सपने और करियर पर ध्यान केंद्रित करना चाहता हूं। मुझे अपना लक्ष्य पाने की धुन है, और मैं उस पर पूरी तरह से फोकस करना चाहता हूं। अभी प्यार के लिए मेरी जिंदगी में जगह नहीं है। माफ करना अर्पिता पर अभी भी हम लोग बच्चे ही है, इतने बड़े नहीं हुए जो जिंदगी के इतने जटिल  फैसले पर बात करे।”

” परंतु यश, मैने शादी की बातें अभी नहीं कही है, मैं बस ये चाहती हूं कि हम लोग जहां भी रहे कॉन्टेक्ट में रहे एक दूसरे के दिल में प्यार जब प्यार होगा तो हम फ्यूचर में कभी मिलेंगे। बस तुम मेरा प्रेम प्रपोजल स्वीकार कर लो।”

” मैं ऐसा नहीं कर सकता अर्पिता, मुझे माफ करना, जिस तरह से तुम मेरे प्यार में पागल हो मैं भी अपने सपने को पूरा करने के लिए पागल हूं। और तुम शायद नहीं जानती मेरा सपना क्या है, आज मैं बताता हूं, मैं क्लाइम्बर्स बनना चाहता हूं, बचपन से ही मेरा सपना रहा है कि मैं बड़ा होकर खुद को एक माउंटेनियर के रूप में देखूं, उंचे उंचे माउंटेन, बर्फ की चादर से ढकी उंची उंची पहाड़ियों की चोटी मुझे हमेशा से आकर्षित करती है, मेरा मन करता है कि उन पहाड़ों की सबसे उंची चोटी पर चढ कर अपने देश का झंडा बुलंद करू। अर्पिता इस सब के लिए मुझे बहुत सारी तैयारी करनी है, पहाड़ों के बारे में बहुत कुछ पढना, जानना है, फिर किसी अच्छे क्लाईम्बिग कॉलेज में दाखिला लेकर ट्रेनिंग करनी है। और ये सब करते हुए मैं तुम्हारे साथ प्यार के वचन को नहीं निभा पाऊंगा, मैं तुम्हारी बहुत कदर करता हूं अर्पिता, पर मेरा सपना ही मेरी प्राथमिकता है। हो सके तो मुझे माफ कर दो प्लीज।”

यश का इंकार सुन अर्पिता के दिल को चोट लगी थी, पर वह जानती थी कि यश का सपना उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है। उसने मन ही मन कुछ निश्चय किया और अपने चेहरे पर दुख और गम के कोई भाव आने नहीं दिया और बोली, “अरे पागल मैं तो बस मजाक कर रही थी, मैं देखना चाहती थी की कोई लड़की अगर तुम को प्रपोज करे तो तुम्हारी हालत कैसी होती है। तुम तो सिरयस ले लिया मेरी बातों को। चिल यार हम दोनों अच्छे दोस्त है और हमेशा रहेंगे।”

यश ने उसके कंधे पर हल्की थपकी दी और मुस्कुराते हुए कहा, “तुम एक बेहतरीन इंसान हो, अर्पिता। मुझे यकीन है, तुम जो भी करोगी उसमें सफल रहोगी।”

यश चला गया, लेकिन अर्पिता वही खड़ी काफी देर तक यश को जाते हुए देखती रही। कंधे पर बैग लटकाए यश अपने रास्ते चलता रहा उसने एक बार भी पीछे पलट कर अर्पिता को नहीं देखा, जबकि अर्पिता उसे तब तक देखती रही जब तक यश उनकी आंखों से ओझल ना हो गया। काश! यश देख पाता कि उसके जाने से किस कदर अर्पिता की आंखों से आँसू रूपी मोती झर रहे थे।

                     भाग- 2

यश का कॉलेज में दाखिला और ट्रेनिंग उसकी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। स्कूल फेयरवेल के बाद, यश ने अपने लक्ष्य की तैयारी शुरू कर दी थी। उसने कई महीनों तक कड़ी मेहनत की, अपनी पढ़ाई के साथ-साथ शारीरिक रूप से भी खुद को तैयार किया। क्लाइम्बर्स के लिए सबसे पहली अहर्ता होती है खुद को फिट और तंदरुस्त रखने की। यश अपने आपको स्वस्थ रखने के लिए कड़ी दिनचर्या का पालन करना शुरू किया।

कॉलेज की पढाई खत्म करने के बाद यश ने पर्वतारोहण (क्लाइम्बिंग) के प्रति अपने जुनून को आगे बढ़ाया। यश को अपने सपने को पूरा करने के लिए भारत के प्रसिद्ध क्लाइम्बिंग संस्थानों में एडमिशन लेने की ज़रूरत थी। उसने इधर उधर से सारी जानकारी इक्कठा की तो उसे एक कॉलेज के मित्र अनीश के द्वारा भारत में कुछ प्रमुख पर्वतारोहण संस्थानों के नाम पता चले। उनमें पहला था नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (NIM), उत्तरकाशी।

दूसरा था हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट (HMI), दार्जिलिंग।

और तीसरा का नाम था 

इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (IMF), दिल्ली।

यश ने HMI में दाखिला लेने का सपना देखा, लेकिन  जब वह वहां पहुंचा तो एडमिशन की प्रक्रिया काफी कठिन थी। यश वहां चाह कर भी एडमिशन नहीं करवा पा रहा था। काफी भागदौड़ के बाद वह चारों तरफ से हताश व निराश हो गया। एक पल को ऐसा लगा कि उसकी अब तक की सारी मेहनत बेकार चली गई है। उसे लगा बचपन से उसका देखा गया सपना अब पूरा नहीं हो सकेगा।

  एक दिन शाम को जब वह उदास बैठा था तो उससे मिलने कॉलेज फ्रेंड अनीश आया। उसे परेशान देख अनीश ने कारण पूछा तो उनसे यश ने अपनी परेशानी बताई। अनीश ने उसे आश्वासन दिया कि चिंता मत करो मैं कुछ जुगाड़ करता हूं।

     यश जानता था कि अनीश को क्लाईम्बिग में कोई इंट्रेस्ट नहीं है, दोस्ती के नाते भले ही उसने आश्वासन तो दे दिया पर वह कोई मदद नहीं कर सकता। वह पूरी तरह निराश था, लेकिन एक दिन जब  HMI से उसके पास कॉल आया तो वह हैरत में रह गया। उस संस्थान में उसे एडमिशन मिल गया था। न जाने अनीश ने ऐसी क्या जुगत भिड़ाई कि कॉलेज वाले उसे फोन करके खुद ही एडमिशन के लिए बुलाया।

  यश बहुत खुश था, अब उसे उम्मीद थी कि उसके सपनों को पंख लगने वाले है। वह जी तोड़ मेहनत करने लगा। हर सुबह, वह ट्रैकिंग और पर्वतारोहण की ट्रेनिंग लेता, जहां उसे विभिन्न तकनीकें सिखाई जातीं—चट्टानों पर चढ़ने की रणनीति, उपकरणों का उपयोग, और उच्च ऊंचाइयों पर जीवित रहने के तरीके।

यश ने अपने शरीर की सहनशक्ति को बढ़ाने के लिए विशेष ध्यान दिया, जिससे वह न सिर्फ शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी मजबूत होता गया। ट्रेनिंग के दौरान उसे टीमवर्क, दृढ़ता, और चुनौतियों का सामना करने का महत्व समझ आया। वह हमेशा से एकल लक्ष्य पर केंद्रित था, और इसी कारण से वह लगातार अपनी क्षमताओं को निखारने में जुटा रहा।

ट्रेनिंग की कठिनाइयों के बावजूद, यश का आत्मविश्वास बढ़ता गया और उसे अपनी क्षमताओं पर गर्व होने लगा।

यश की लगन और कड़ी मेहनत उसे अपने सपने के करीब ले जाती रही, और उसकी हर जीत उसके सिनियर के लिए हैरत का पैमाना होता। इस से पहले वह इतना जनूनी युवक कभी नहीं देखा था जो क्लाईम्बिग की चेलैजिंग ट्रेनिंग को मात्र तीन माह में पूरा कर लिया हो।

  अब उसे क्लाईम्बिग प्रतियोगिता में शामिल होने  के लिए कुछ स्पेशल टूल किट की आवश्यकता थी। यश की आर्थिक स्थिति ऐसी ना थी कि वह इतना महंगा किट तुरंत खरीद सके।

   कहते है जहां चाह है वहां राह है। जहां यश को एक बार फिर आगे बढने के सारे रास्ते बंद नजर आने लगे वहीं अंधेरे में उम्मीद की एक किरण चल कर खुद उसके समीप आई। यश के क्लाईम्बिग ट्रैनर सर मिस्ट पी शुक्ला ने उसे वो सारी टूल किट खरीदकर दी जो उसे जरूरत थी और कहा,  “चिंता मत करो यश, तुम पर कोई एहसान नहीं कर रहा हूं, तुम्हारे जैसे स्टूडेंट लाखों में एक मिलते है, तुम्हारा जनून तुम्हें बहुत उंचाई पर ले जाएगा। मेरी शुभकामनाएं के साथ ये गिफ्ट मेरे तरफ से है। अगले महीने से तुम्हारी पर्वतारोही की कॉम्पीटिशन शुरू हो रही है तुम्हें ये कॉम्पीटिशन हर हाल में जीतना है और देश का नाम रोशन करना है।”

जैसे ही यश ने अपने ट्रेनर शुक्ला सर से वो विशेष टूल किट प्राप्त की, उसके भीतर एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। अब यश पूरी तरह तैयार था अपनी पहली क्लाइम्बिंग प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए। यह प्रतियोगिता उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ साबित हो सकता था। शुक्ला सर की बातों ने उसे और भी प्रेरित कर दिया था।

अगले कुछ हफ्तों में, यश ने अपनी पूरी ताकत और कौशल से खुद को तैयार किया। उसकी तैयारी में न केवल शारीरिक फिटनेस बल्कि मानसिक धैर्य और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से निपटने की तैयारी भी शामिल थी। उसके लिए यह प्रतियोगिता जीतना सिर्फ लक्ष्य नहीं, बल्कि एक सपना था, जो उसे अपने जीवन में आगे बढ़ने का मार्ग दिखा रहा था।

प्रतियोगिता के पहले ही दिन जब यश मैदान में उतरा, तो उसके मन में थोड़ी घबराहट जरूर थी, लेकिन आत्मविश्वास उससे कहीं अधिक था। जैसे ही प्रतियोगिता शुरू हुई, यश ने अपनी पूरी ऊर्जा और तकनीक से एक के बाद एक मुश्किलों को पार करना शुरू किया। कठिनाईयों से भरे रस्ते पर चलते हुए वह कई बार फिसला, पर हार नहीं मानी। वह हिम्मत के साथ पहाड़ की उंचाई की तरफ बढता चला जा रहा था…..

                       भाग -3

प्रतियोगिता के पहले दिन तो यश दुगुने जोश से पहाड़ की चढ़ाई शुरू करता है, लेकिन कुछ ही घंटों में उसे महसूस होने लगा कि ट्रेनिंग और वास्तविकता में ज़मीन-आसमान का फर्क है। हवा पतली होती जा रही थी, कदम उठाना हर बार और भारी लगता। उसकी साँसें तेज़ होने लगीं, और शरीर थकान से टूटने लगा।

तभी, अचानक एक जगह से एक रहस्यमयी औरत प्रकट हुई। उसका चेहरा एक धुंधली याद जैसा था, मानो यश ने उसे कहीं देखा हो। वह शांत स्वर में कहने लगी, “इस ऊंचाई पर ऑक्सीजन कम होती है, लेकिन अगर ध्यान केंद्रित करोगे, तो अपने अंदर की ऊर्जा से सांसों को नियंत्रित कर पाओगे।” यश ने उसकी बात मानकर सांसों को धीरे-धीरे नियंत्रित करना शुरू किया और आगे बढ़ने की कोशिश की।

तीसरे दिन मौसम ने यश की परीक्षा और भी कड़ी कर दी। तेज़ बर्फबारी और आंधी ने कई प्रतियोगियों को नीचे गिरा दिया। हवा इतनी तेज़ थी कि खड़ा रहना मुश्किल हो रहा था। यश का शरीर काँपने लगा, ठंड की वजह से उसके हाथ-पैर सुन्न हो रहे थे। तभी फिर से वह औरत प्रकट हुई, उसने चिल्लाते हुए कहा, “इस तूफान में टिके रहना नामुमकिन है, पहाड़ की खोह में एक सुरंग है, वहीं छिप जाओ।” यश ने उसकी बात मानी और सुरक्षित सुरंग में जाकर छिप गया।

कई घंटे बीतने के बाद जब तूफान थमा, तो यश ने फिर से चढ़ाई शुरू की। लेकिन रास्ता अब और खतरनाक हो गया था। एक जगह पर पहाड़ की सतह बर्फ से ढकी हुई थी और ज़रा सी चूक का मतलब था सैकड़ों मीटर नीचे गिरना। यश की हथेलियों से पसीना बहने लगा, लेकिन उसके भीतर अब एक दृढ़ संकल्प जाग गया था। वह बर्फीली चट्टानों से सावधानी से चढ़ने लगा, हर कदम सोच-समझकर रखता और दिल में उस रहस्यमयी औरत की सीख याद करता।

अंत में, आखिरी चोटी तक पहुँचने से पहले उसकी ताकत खत्म होने को आई, लेकिन जीतने का जुनून उसके हौंसले को टूटने नहीं देता। जब वह चोटी पर पहुँचा, तो आसमान साफ हो चुका था और सूरज की किरणें चारों तरफ बर्फ पर चमक रही थीं। यश ने राहत की सांस ली और अपनी जीत का एहसास किया। सबसे पहले उसने अपने पीठ पर लटके बैग से तिरंगा झंडा निकाला और उस ऊंची चोटी पर अपने फतह का झंडा गाड़ते हुए खुद पर गौरवान्वित महसूस करने लगा। उस पल यश को लगा कि उसने इस प्रतियोगिता को जीत कर दुनिया जीत ली है। प्रतियोगिता पर नजर रख रहे लोग हैलीकॉप्टर से प्रतियोगियों पर बारीकी से नजर रख रहे थे। जब उसने देखा कि यश ने महज तीन दिन में ही पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा लहरा दिया है वे लोग हैलीकॉप्टर से इस दृश्य को कैमरे में कैद करने लगे। साथ ही वे यश पर पुष्पवर्षा करके उन्हें प्रतियोगिता जीतने की बधाई दी।

जब वह नीचे उतरा, तब उसे एहसास हुआ कि वो रहस्यमयी औरत कौन थी? जिसकी मदद और सलाह से वह अपने जीवन के सबसे बड़े सपने को पूरा कर पाया। उतरते वक्त वह पहाड़ की हर खोह, और सुरंग में उसे ढूंढ रहा था। काश वो मिल जाए ताकि वह उसका शुक्रिया अदा कर पाए। जब वह नजर नहीं आई तो एक पल को यश यह सोचने पर मजबूर हो गया कि शायद वो उसकी कल्पना मात्र थी, या फिर पहाड़ की आत्मा जो हर उस व्यक्ति की मदद करती है, जो उसे जीतने का सपना देखता है।

यश को समझ नहीं आ रहा था कि यह मदद कहां से आई थी, उसने काफी देर तक उस औरत के चेहरे को याद करने की कोशिश करता रहा पर उसे याद नहीं आया, लेकिन न जाने क्यों उसकी आवाजें रह रह कर उसके कानों में गूंजती रहती। वह आवाज उसे जानी पहचानी जैसी लग रही थी लेकिन उसके मानसपटल पर वह चेहरा अंकित नहीं हो पा रहा था कि आखिर वह किसकी आवाज थी? जब उसे कुछ याद न आया तो वह इसे अपनी किस्मत का खेल मान लिया।

जैसे ही यश ने पहाड़ की ऊंचाई पर तिरंगा फहराया, पूरे देश में उसकी जीत का संदेश फैल गया। जब वह नीचे उतरा, तो उसका भव्य स्वागत हुआ। हैलीकॉप्टर से बधाई देते हुए पुष्पवर्षा की गई और उसे हीरो की तरह सम्मानित किया गया। उसे न केवल प्रतियोगिता का सबसे बड़ा पुरस्कार मिला, बल्कि प्रतिष्ठित संस्थान से उसे नौकरी का प्रस्ताव भी दिया गया। उसकी जीत ने उसे रातों-रात एक आइकन बना दिया। कॉलेज में उसे युवाओं के लिए प्रेरणा के रूप में देखा गया और जगह-जगह उसके सम्मान में समारोह आयोजित किए गए।

यश को कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से नवाज़ा गया। राष्ट्रीय स्तर पर उसकी पहचान बनी, और उसे विभिन्न मंचों पर सम्मानित किया गया। संस्थान ने उसे आकर्षक नौकरी का प्रस्ताव दिया, जिससे उसकी प्रोफेशनल जिंदगी को भी नई दिशा मिली। यश का नाम अब सभी प्रतियोगी पर्वतारोहियों के बीच एक मिसाल बन चुका था।

यश के इस सफर ने न केवल उसे जीत का स्वाद चखाया बल्कि उसके अंदर दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास और कभी हार न मानने का गुण भी विकसित किया। सचमुच यश ने साबित कर दिया की वह अपने लक्ष्य को पाने के लिए पागल था। और आखिरकार उसे वह मुकाम मिल ही गया।

  इस खुशी के मौके पर यश को कॉलेज दोस्त अनीश की याद आई, अनीश पिछले कई दिनों से नजर नहीं आया था यहां तक की उसके सम्मान समारोह और पुरस्कार वितरण के दिन भी वह कहीं नहीं दिखा। यश ने फैसला किया कि वह अनीश के घर जाकर पता करे की आखिर क्या कारण है कि वह उनकी खुशी में शामिल नहीं हुआ।

  लेकिन यश को कहां मालूम था कि अनीश के घर पर उसे एक ऐसा रहस्य पता चलने वाला है कि वह जान कर उसका सर घूम जाएगा।

                    भाग-4 (अंतिम भाग)

यश की प्रतियोगिता जीतने के बाद कई दिनों तक जब उसे अनीश का अता-पता नहीं मिला, तो उसे चिंता होने लगी। वह अनीश के घर जाकर उसकी स्थिति जानने का फैसला किया।

जब वह उसके घर के पास पहुंचा तो अंदर से बातचीत की आवाजें आ रही थी,जिसे सुन कर यश के पांव ठिठक गए। दरवाजे के पास खड़ा होकर यश छिपकर सुनने लगा। यूं तो यश को किसी दो आदमी की बातें छिपकर सुनना नापसंद था पर क्योंकि उस बातचीत में उसका नाम लिया जा रहा था इसलिए उसके अंदर यह जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई की आखिर अनीश उसके बारे में किसी से क्या बातचीत कर रहा है?

“यश की जीत तो तय थी,” एक नारी स्वर कहता है, जिसे यश पहचानने की कोशिश करता है। यह आवाज उसे जानी-पहचानी लगी, मानो वह उस आवाज के मालिक से पहले मिल चुका हो। कुछ ही पलों में उसे एहसास हुआ कि यह वही आवाज थी जो पहाड़ पर चढाई के दौरान उसकी मदद करती रही थी, उसे समय-समय पर रास्ता दिखाती रही और उसे तूफान से बचने का सुझाव देती रही। यह रहस्यमयी महिला कोई और नहीं, बल्कि उसकी पुरानी दोस्त और कॉलेज की प्रेमिका अर्पिता थी।

अनीश की आवाज सुनाई दी, “दीदी, यश को अभी तक कुछ भी पता नहीं चला है। उसने कभी सोचा भी नहीं होगा कि आप ही उसकी मदद कर रही थीं।”

अर्पिता हंसते हुए बोली, “मुझे कभी सामने आने की जरूरत ही नहीं पड़ी। मैं चाहती थी कि यश अपने दम पर आगे बढ़े। लेकिन मैं जानती थी कि उसे मदद की जरूरत पड़ेगी, इसलिए परदे के पीछे से उसकी मदद करना जरूरी था।”

यह सब सुन कर यश स्तब्ध रह गया। वह जानता था कि अर्पिता बचपन में उसे चाहती थी, पर इस हद तक उसका समर्थन करेगी इसका अंदाजा उसे बिल्कुल नहीं था। यश को आज यह भी पता चला कि अनीश, जो कॉलेज में उसका सबसे अच्छा दोस्त था, असल में अर्पिता का छोटा भाई था, और यश की मदद के लिए ही अर्पिता ने अनीश को यश के कॉलेज में दाखिला दिलवाया था।

अर्पिता ने बातचीत जारी रखी, “यश को HMI दार्जिलिंग में दाखिला दिलाने के लिए मैंने पापा से कहा था। वहां की ट्रेनिंग उसके सपने को पूरा करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी। और जब उसे प्रतियोगिता के लिए जरूरी किट की जरूरत थी, तब मैंने ही उसके ट्रेनर को बुलवाकर वह किट पहुंचाई थी।”

यह सुनकर यश को अपने पिछले कई अनुभव याद आने लगे। किस प्रकार से उसे हर मोड़ पर सही समय पर मदद मिलती रही थी। उसे अब समझ में आ रहा था कि यह कोई संयोग नहीं था, बल्कि अर्पिता की सोची-समझी योजना थी।

अनीश ने कहा, “आपने उसके लिए इतना कुछ किया, लेकिन उसे कभी पता नहीं चला।”

अर्पिता गंभीर होकर बोली, “मैंने कभी नहीं चाहा कि उसे पता चले। मैं चाहती थी कि वह खुद अपने लक्ष्य को हासिल करे, बिना किसी पर निर्भर हुए। मैं बस उसकी मदद करना चाहती थी, लेकिन पर्दे के पीछे से।”

यश का दिल तेजी से धड़कने लगा। वह समझ नहीं पा रहा था कि इस जानकारी पर कैसी प्रतिक्रिया दे। वह अर्पिता की प्रशंसा में खो गया, जिसने उसके सपनों को सच करने में इतनी बड़ी भूमिका निभाई थी।

अर्पिता आगे कहती रही, “मैंने इसलिए ही तो घर छोड़ कर पहाड़ों में रहना शुरू किया, ताकि मैं जान सकूं कि कौन-कौन से रास्ते खतरनाक हैं और कहाँ यश को मदद की जरूरत पड़ेगी। मैंने हर छोटी-बड़ी जानकारी हासिल की ताकि उसे सुरक्षित रख सकूं। यश को इस बार सबसे बड़ी प्रतियोगिता जीतनी थी, और मैंने हर हाल में उसकी मदद की।”

अब यश के पास एक स्पष्ट चित्र था। अर्पिता ने न केवल उसे प्रतियोगिता जीतने में मदद की थी, बल्कि उसकी हर मुश्किल में साथ दिया था, बिना उसे बताए।

कुछ पलों के बाद यश ने दरवाजे पर दस्तक दी। दरवाजा खुलते ही अनीश और अर्पिता दोनों हैरान रह गए।

“यश! तुम यहाँ?” अर्पिता ने चौंकते हुए पूछा।

यश की आँखों में कृतज्ञता के आंसू थे। उसने धीमे स्वर में कहा, “अब सब समझ में आ गया, अर्पिता। तुम्हारे बिना मैं यह सब कभी नहीं कर पाता। तुमने मेरे लिए जो किया है, उसके लिए मैं हमेशा तुम्हारा आभारी रहूँगा।”

अर्पिता ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैंने कुछ नहीं किया, यश। सब तुम्हारे हौंसले और मेहनत का नतीजा है। मैं बस तुम्हारे साथ खड़ी रही।”

यश की आंखों में श्रद्धा थी। उसने आगे बढ़कर अर्पिता का हाथ थाम लिया और कहा, “तुमने जो किया है, वह मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं है। अब मुझे समझ में आया कि तुम ही वह रहस्यमयी औरत थीं जिसने मुझे हर कदम पर सही रास्ता दिखाया।”

अर्पिता ने हल्की हंसी में कहा, “मैं चाहती थी कि तुम खुद अपनी मंजिल तक पहुँचो।”

यश ने उसके सामने सिर झुकाते हुए कहा, “मैंने शायद दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर तिरंगा लहराया है, लेकिन मेरी असली जीत तुम हो, अर्पिता।”

यह सुनकर अनीश हंस पड़ा और बोला, “चलो, अब सच सामने आ ही गया।”

यश ने भावुक होते हुए कहा, “अर्पिता, तुमने सच में साबित कर दिया कि तुम मेरे प्यार में पागल हो। बिना किसी के प्यार में पागल हुए कोई इतना बड़ा त्याग नहीं कर सकता। तुमने अपने जीवन का हर लम्हा मेरी जीत के लिए समर्पित कर दिया। मेरे पास शब्द नहीं हैं कि कैसे शुक्रिया अदा करूं।”

अर्पिता मुस्कुराते हुए बोली, “अगर शुक्रिया अदा करना है, तो मेरा प्रेम प्रस्ताव स्वीकार कर लो, जो बचपन से लंबित है, जब तुमने उसे ठुकरा दिया था।”

यश हंसते हुए बोला, “स्वीकार है, अर्पिता। तुम्हारे जैसा प्रेम कोई कैसे ठुकरा सकता है।” 

दोनों मुस्कुराते हुए गले मिल गए।

यह खुलासा यश के जीवन में एक नई शुरुआत की ओर इशारा कर रहे थे। अब यश के सामने न केवल उसके सपनों की ऊंचाई थी, बल्कि एक ऐसी सच्चाई भी थी, जिसने उसकी ज़िन्दगी को एक नया मकसद दे दिया।

    (समाप्त)

— ओमप्रकाश ‘आनंद’

ओम प्रकाश 'आनंद'

मेरा पूरा नाम ओम प्रकाश राय है। मैं मूल रूप से बिहार के मधेपुरा जिले (गांव - गोठ बरदाहा) का रहने वाला हूं। मेरी जन्म तिथि 6 मार्च 1985 है। मैने ग्रेजुएशन (Zoology Hons. ) तक की पढाई की है जो साल 2008 में पूरी हुई। हिंदी साहित्य पढने और लिखने में रूचि शुरू से ही है। मैं अपने प्राइवेट नौकरी के दौरान मिले खाली समय का उपयोग लिखने व पढने में करता हूं। मेरी लिखी रचना पर आपके सुझाव, शिकायत और अन्य प्रतिक्रिया का स्वागत है। मेरी अन्य रचनाएं आप प्रतिलिपि पर भी पढ सकते है।

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