सामाजिक

अंदाज अपना अपना

हर इंसान दूसरे से जुदा होता है । कोई-कोई तो बचपन से ही बाएं हाथ से लिखता है, लेकिन उसके लिखने की रफ्तार दाएं हाथ से लिखने वालों से कम नहीं होती। ऐसे ही खब्बू बल्लेबाज भी चौके-छक्के लगाने या गेंदबाजी करने में पीछे नहीं रहते। यानी हरेक का अपना-अपना अंदाज होता है । कोई किसी से कम या पीछे नहीं होता । वह भी सही होता है और यह वाला भी । जमाना किसी को किसी दूसरे जैसा बनाने की कोशिश करे, तो भी खुद को बचाए रखना ही चाहिए। टीवी के पर्दे पर चलने वाले प्रतियोगिता आधारित कुछ ‘रियलिटी शो’ में प्रतियोगियों को वहां बैठे ‘जज’ भी आमतौर पर किसी की नकल न करने की हिदायत देते हैं और अपने ही अंदाज में अपनी कला का प्रदर्शन करने पर जोर देते हैं। हजारों गायक खुद को किशोर कुमार बनाने की कोशिश करेंगे, लेकिन खुद का अपना अंदाज कायम रखना ज्यादा लंबी दौड़ का घोड़ा बनाने का दमखम रखता है ।

प्राथमिक कक्षाओं से ही शिक्षक छात्र – छात्राओं को कुंजी या सहायक – पुस्तक की मदद न लेने की सलाह देते हैं। वजह साफ है कि अगर सभी परीक्षाओं में एक ही कुंजी से उत्तर रट कर लिखेंगे, तो सभी के औसत अंक ही आएंगे। बाकियों से हट कर उत्तर लिखने वाले ज्यादा अंक हासिल करते हैं। दरअसल, भीड़ हमेशा उस रास्ते पर चलती है, जो रास्ता देखा – भाला और आसान लगता है। लेकिन जरूरी नहीं कि वही रास्ता अव्वल आने के लिए सही ही । भीड़ के साथ बहने के बजाय अपनी राह खुद बनानी चाहिए, ताकि हम बाकियों से अलग हो सकें। हमेशा अलग बने रहना ही कामयाबी की वजह बनता है । जैसे आंखें झपकने – मटकाने की लाजवाब अदा ने हीरो राजेश खन्ना को रातोंरात सुपर स्टार बना दिया। यह उनकी अपनी शैली थी। ऐसा पर्दे पर पहले किसी ने नहीं किया था। कोशिश करके वही नहीं करना चाहिए, जो बाकी सभी करते हैं। कुछ अलग ढूंढ़ना चाहिए, फिर करना चाहिए । जो हट कर करता है, वह दूसरों से ज्यादा लाभ कमाता है ।

खलील जिब्रान की एक कहानी है। एक बार बदसूरती और खूबसूरती सागर में नहाने के लिए गईं। दोनों पानी में उतरीं । बदसूरती नहाकर पहले बाहर आ गई और खूबसूरती के कपड़े पहनकर चल दी। जब खूबसूरती बाहर आई, तो घबरा गई। अपनी लाज बचाने के लिए उसे आनन-फानन जो मिला, वही पहन लिया। अब उसके शरीर पर बदसूरती के कपड़े थे। लोग कपड़ों से धोखा खाकर बदसूरती को खूबसूरती और खूबसूरती को बदसूरती समझने लगे। हालांकि कुछ लोगों ने असली कपड़ों के साथ खूबसूरती का चेहरे भी देख रखा था । इसलिए बदले कपड़ों के बावजूद उसे पहचान ही लिया । इसी अपनी निजी खूबी हरेक इंसान की खूबसूरती और दमक बरकरार रहती है । दुनिया के शीर्ष उद्योगपति जाहिर करते हैं कि जब कोई कारोबारी नया विचार आता है, जिसे सभी बेहतरीन मानें, तो उसे कचरे के डिब्बे में फेंकना बेहतर होता है, क्योंकि एकदम अलग-थलग और बिरले उपाय को चुनना और उसे अपने तरीके से करने- निभाने में जुट जाना कामयाब बनाता है। ऐसा करने से मुमकिन है कि मौजूदा वक्त में थोड़ी रिक्तता या दिक्कतें झेलनी पड़ें, लेकिन आने वाला दौर अत्यंत सुखद होता है ।

खुद को बेमिसाल बनाने का एक तरीका है कि अपने अलग अंदाज में जारी रहना चाहिए। हर इंसान किसी खास काम के लिए बनाया गया है और उस काम को करने की इच्छा भी उसके अंदर भर दी गई है। बावजूद इसके कुछ को ही अपनी छिपी खूबी और काबिलियत का पता होता है। जैसे पीपल के वृक्ष की विशिष्टता है कि चाहे रेगिस्तान हो या बंजर स्थल, दलदल हो या सीमेंट की पक्की दीवार, वह कहीं भी और कभी भी अपनी जड़ें जमा लेता है । वह दूसरे पेड़ों की तरह नहीं है । इसीलिए पीपल प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अनुकूल बना लेता है। हर इंसान में भी पीपल की वही जिजीविषा होनी चाहिए कि अपनी विशेष पहचान से उत्साह और जोश से भरा रहे । एक दर्शनशास्त्री की राय है कि मेरे पीछे मत चलिए, शायद मैं नेतृत्व न कर पाऊं । मेरे आगे न चलिए, शायद मैं पीछा करने में विफल रहूं। समझना चाहिए कि हर इंसान के लिए अलग-अलग जिंदगी बुनी गई है। अपने स्वभाव के अनुकूल रास्ते पर बढ़ने की जरूरत है। जरा देर से ही सही, सफलता अवश्य कदम चूमेगी।

बचपन में सुनी-पढ़ी कछुआ और खरगोश की कहानी में अब झोल या बदलाव आ चुका है। इसके घटनाक्रम में कछुआ खरगोश को सशर्त दौड़ के लिए चुनौती देता है। वह दौड़ का मार्ग अपने मुताबिक रखने को कहता है । आत्मविश्वास से भरा खरगोश झट मान भी जाता है। दौड़ के दौरान खरगोश उछलता कूदता तेजी से तय स्थान की और दौड़ता है। लेकिन उस रास्ते में एक उफनती नदी बह रही होती है, जिस वजह से बेचारे खरगोश को वहीं रुकना पड़ता है। कछुआ धीरे-धीरे चलता वहां पहुंचता है। सरलता और सहजता से नदी पार कर लेता है। आगे लक्ष्य तक पहुंच कर जीत जाता है। सीख है कि पहले अपने स्वभाव, अंदाज और ताकत को पहचानना चाहिए । फिर उसके मुताबिक काम करने से जीत जरूर मिलेगी। लेकिन खयाल रहे कि कभी भी जल्दी या हड़बड़ी में जश्न नहीं मनाना चाहिए। जब तक हमारा उद्देश्य पूरा न हो जाए, तब तक अपनी भावनाओं पर काबू रखने की जरूरत है। पूर्व – परिपक्व जश्न अधिकतर निराशा में समाप्त होते हैं ।

— विजय गर्ग

विजय गर्ग

शैक्षिक स्तंभकार, मलोट