इन्दौर के गणेशोत्सव की जीवित परम्परा व संस्कृति का लोक उत्सव
गणेश उत्सव से समाजिक दायित्व के साथ राष्ट्र भक्ति की जो ज्योत प्रज्वलित कर आजादी से पहले स्वतंत्र वीर बालगंगाधर तिलक जी ने जलाईं थी वह हम बिखरे हुए हिन्दुस्तानीयो के लिए मील का पत्थर साबित हुई ।जिससे हमारी आस्था और समृद्ध हुई विश्वास के साथ श्रध्दा और राष्ट्रीय एकता और सद्भावना भी बड़ी थी।जो कभी भी खत्म नहीं हो सकी । तभी तो उसी विचारधारा को हमारे मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी व स्वच्छता में अव्वल शहर इन्दौर जो व्यवसायिक राजधानी भी है उसी जीवित परम्परा व लोक संस्कृति का लोक उत्सव आज भी अविरल जारी है । छोटी सी शुरुआत आज परम्परा का हिस्सा बन चुकी है । पहला गणेश विसर्जन जुलूस यहां अनन्त चतुर्दशी गणेशोत्सव चल समारोह की शुरुआत 1923 में मिल मालिक मशहूर उद्योगपति काटन आफ किंग दानवीर सर सेठ हुकुमचंद जी ने पुण्य शाली लोक माता देवी अहिल्याबाई होलकर की इस इन्दौर नगरी में की थी। जब गणेश विसर्जन चल समारोह में लालटेन और गैस बत्ती के साथ ढोलक डमरू ढापली व विक्टोरिया बग्घियां के साथ बैलगाड़ी से झांकी निकलती थी । वह समय ऐसा था जब कपड़ा मिलों में मजदूरों के परिश्रम का डंका बजता था। वहीं पसीने की कमाई से 7 मिलो की वजह से यह इन्दौर कपड़ों का हब हुआ करता था । वह पावरलूम भी बहुत सारे थे । आज मिलों को बंद हुऐ 33 वर्ष हो चुके हैं । अब ना वह शोर गुल होता ना भोगे की आवाज ना मिलों की चिमनियों से धुआं निकालता है । कितनी बड़ी विडंबना है कि कम से कम 70 प्रतिशत मिल मजदूर संघर्ष करते रहे और अब व दुनिया छोड़ चले गए । एक लम्बी लड़ाई मजदूरों ने लड़ी पर समय के इस भंवर में उनकी आवाज अब खामोश है पर जीत उन मिल मजदूरों की हुई। सरकार अब उनको उनका हंक दे रही है। न्याय की देवी ने जो न्याय किया वह सर्वमान्य है। जो मजबूत नींव परम्परागत व संस्कृति बचाने हेतु लोगों की एकजुटता भाईचारा को बढ़ने हेतु सदियों पहले दानवीर सेठ हुकुमचंद जी ने डाली थी उसी विरासत को मिलों से जुड़े परिवारों द्वारा सहज कर आगे बढ़ाया जा रहा है। 100 वर्षों से ज्यादा पुराने इतिहास को वहीं जोश जुनून से अब भी इन्दौर ने कायम रखा हुआ है । यह बहुत ही गर्व की बात है , इस आधुनिकता के दौर में पहले जैसा रंग अब गणेश उत्सव व अनंत चतुर्दशी चल समारोह पर नहीं दिखाई देता है । जिस प्रकार उल्लास मनोरंजन के कार्यक्रम गीत संगीत कवि सम्मेलन व पर्दों पर फिल्में दिखना उसके बाद बीसीआर पर रामायण महाभारत का प्रदर्शन अब नहीं होता पर अनंत चतुर्दशी की झांकियों का सिलसिला व अखाड़ों के पहलवानों के करतबों शस्त्र कला के प्रदर्शन का सिलसिला जारी है । यहीं विरासत है और इस इन्टरनेट मोबाइल के आधुनिक युग में भी जिसे अब भी, यहां हजारों बल्ब से सुसज्जित झिलमिलाती झांकियों का कारवां इन्दौर की पहचान बना हुआ है। यही यह की नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत की लोक कला का प्रदर्शन भी होता है हर एक रंग में इन्दौरी उत्सव में उल्लास ढुंढ ही लेता है । यहां पुराने समय में दो तीन दिन पहले से दूरदराज के इलाके से लोग अपनी जगह रोकने हेतु आ जातें थे । इन सौ साल से ज्यादा के सफ़र में सिर्फ करोना के दो वर्ष ही थे जब यह चल समारोह नही निकला , बाकी अविरल इस का सफर जारी है। तभी तो हमारी पहचान मिनी मुंबई के नाम से होती है महाराष्ट्र के बाद इन्दौर में ही गणेश उत्सव की अपनी एक अलग सी छवि हुआ करती है । समय के साथ उत्सव में वह उल्लास कम जरूर हुआ पर जिस प्रकार मुंबई में अंनत चतुर्दशी पर गणेश विसर्जन चल समारोह में वहां कोई सोता नहीं है मुंबई जागरण करती है । उसी प्रकार इन्दौर भी जागरण करता है उस रात मानों आसमान से देवता भी पुष्प वर्षा कर स्वागत करते हैं शाम से पूरी रात तक दिन जैसा एहसास हर कोई करता है । आज दानदाताओं समाजसेवी व जनप्रतिनिधि की मदद से झांकियां तैयार की है और शहर के इस रतजगा में धार्मिक राष्ट्रीय देश भक्ति भाव से ओतप्रोत 30 से ज्यादा झांकियां सजाई गई है। जो शहर भ्रमण के लिए निकलेंगी ।
स्वच्छता में अव्वल शहर इन्दौर भारत का सिरमौर है उसी प्रकार वह परम्परा संस्कृति विरासत व इतिहास को सहेजने में भी सबसे आगे हैं । हमारा इन्दौर इस गणेश विसर्जन चल समारोह में पौराणिक कथाओं पर सनातन संस्कृति व धर्म पर ओर इतिहासिक प्रेरक प्रसंग बच्चों का स्वच्छ मनोरंजन के साथ विकासित भारत की बात व सरकार के सकारात्मक प्रयासों का चित्रण इन झांकियों में हो रहा है । जो शाम से मिल ऐरिये से शहर के हृदय स्थल राजबाड़ा से होते हुए पूरी रात घूमतीं है सुबह मिलों में खड़ी हो जाती है वह तीन दिन देखने के लिए और रखी जाती है । एक समय ऐसा हुआ करता था कि जब यह चल समारोह मशाल व लालटेन की रोशनी में निकला जाता था उस के बाद बल्ब की झिलमिलाती लाइट्स व अब एल ई डी की दूधिया रोशनी में अंनत चतुर्दशी की रात इन्दौर में अंधेरा नहीं होगा क्योंकि प्रथम पूज्य देवो के देव गजानंद गणपति जी का यह विसर्जन चल समारोह है जो प्रकाशमान बन पूरे शहर में सतरंगी छटा बिखरेगा। इसमें खास बात यह होती है इस आधुनिक युग में युवा पीढ़ी के लिए यह समारोह प्रेषित करता है कि भारतीय संस्कृति से जुड़ने के लिए अब जिम में लोग अपने शरीर को बनाने के लिए जाते हैं पर जो खुशबू हमारी मिट्टी के अखाड़ों में कसरत करने से आंनद की अनुभूति होती थी वह जिम में पसीना बहा कर भी नहीं होती है।उन्हीं मिट्टी व अखाड़ों में पहलवानी करने वाले लोग भी अपने अपने अखाड़ों की शस्त्र कला करतब शरीर सौष्ठव का प्रर्दशन भी इस चल समारोह में करते हैं। जिसमें बांदिश,भाला, आत्मरक्षा के लिए बनेटी, पटा गदका फरी बाना ,चकरी, तलवार आदि शास्त्र कलां का प्रदर्शन करते हैं। इस में उस्ताद व खलिफाओ का स्वागत भी किया जाता है । वही इस प्रदर्शन में अब बालिकाएं भी लाठी बनेठी व तलवार व अन्य अस्त्र-शस्त्र से ढोल नगाड़ों की थप पर कलाबाजियां भी करती है । जो इस विसर्जन समारोह का मुख्य आकर्षण भी रहता है जहां शासन प्रशासन इन्हें पुरस्कृत कर सम्मानित करते हैं यही हमारी आस्था की पहचान है इतनी भीड़भाड़ में बेटियां भी तलवार भाले बनेठी घुमती है जो भारत की प्राचीन कलाओं में हैं, अखाड़ों की असली पहचान पहलवानों की मेहनत से होती है तभी इस चल समारोह में यह मिट्टी वाले देशी करतब करते पहलवान उस्ताद व खलीफाओं से पुरे कार्यक्रम में चार चांद लग जाता है। आप को मालूम होगा फिल्म डान में लेखक सलीम खान इन्दौर के थे जो खुद पहलवानी करते थे तभी तो उन्होंने ने डायलॉग लिखा । जिसे अमिताभ बच्चन ने फिल्म में डायलॉग बोला था कि हम भी इन्दौर के विजय बहादुर उस्ताद के अखाड़े के पहलवान हैं। ऐसी पटकनी देंगे की चारों खाने चित कर देंगे । इन्दौर में अभी भी ऐसे पंद्रह बीस बड़े अखाड़े आज भी चल रहे हैं । यह हमारी लोकमाता देवी अहिल्या बाई होलकर जी का पुण्य प्रताप ही है । कि यह के लोग लोक संस्कृति व संस्कार को अपनी परम्परा के रूप में अब भी कायम रखें हुऐ हैं। कितनी भी दिक्कत आये मजदूरों की अर्थव्यवस्था चाहे ठीक नहीं हो पर उनके ठोस दमदार इरादों के आगे यहां सब चीजें बहुत छोटी नज़र आती है । इन मेहनतकश मजदूरों के वंशज भी इस विसर्जन चल समारोह के सहयोग में सबसे आगे होते हैं और विघ्न विनाशक गणेश जी इस यात्रा को इस चल समारोह को निर्विघ्न संपन्नता का आशीर्वाद देते हैं। सर्व प्रथम इन्दौर के प्रसिद्ध खजराना गणेश मंदिर की झांकी रहती है । अनंत चतुर्दशी की पूरी रात झिलमिलाती झांकियों का कारवां चलता रहता है, बच्चे जवान बुजुर्ग नाचते गाते मस्ती उल्लास आंनद में आगे बढ़ते रहते हैं दर्शक जो इन्दौरी होने का फर्ज अदा करते हैं वह पूरी रात इन जांबाज मजदूरों की मेहनत का रास देखते हैं इन झिलमिलाती झांकियों के रंग-बिरंगे कारवां को निहारते हैं तभी तो अंनत चतुर्दशी की पूरी रात ढोलक बैंड बाजे डी जे नगाड़ों की गुंज बच्चों के खिलौनों की सीटियां कानों गुंजती है वहीं बुजुर्गो को बचपन की याद दिलाती है बच्चों के खिलोने चकरी गुब्बारे डमरू बेचने वाले भी बच्चों को आकर्षित करतें हैं । ऐसे खेल खिलौने जो अब बड़े बड़े माल में जाने पर भी नहीं मिलते है वह यह मिलते हैं, झांकी उत्सव प्रिय शहर वासियों व मेहनतकश मजदूरों का सार्थक प्रयास ही है कि सौ साल से ज्यादा पुरानी परम्परा संस्कृति इतिहास को सहेजने हेतू वर्तमान युवा पीढ़ी को जिम्मेदारी निभाने का संदेश भी दे रही हैं । अब कुछ सालों से नगरनिगम इन्दौर व इन्दौर विकास प्राधिकरण भी इस चल समारोह में सहभागिता निभा रहे हैं। यह गर्व की बात है कि हम आज भी इन्दौर के इस गणेश विसर्जन चल समारोह में युवा वर्ग की भागीदारी बहुत ज्यादा होती है नये कपोलों को अंकुरित करने हेतु इस तरह के समारोह हमेशा से प्रेरणादायक रहे हैं और हमेशा रहेंगे। तभी तो पूरा शासन प्रशासन व समाजिक संस्थान धार्मिक मंदिरों के प्रबंधक सभी धर्मों के अनुयाई इस राष्ट्रीय एकता के इतिहासिक चल समारोह में जो सदियों से इन्दौर की धरोहर व आन बान शान रहा है उसमें पूरा सहयोग करते हैं । तभी तो मध्यप्रदेश के इन्दौर में यह मिल मजदूरों के मनोरंजन व शिक्षा ओर धर्म समाज व राष्ट्र भक्ति जागने का छोटा सा प्रयास आजादी के पहले शुरू हुआ जो आज परम्परा संस्कृति पर्व हमारी विरासत बन गया है इस अंनत चतुर्दशी चल समारोह की झांकियों व अखाड़ों का 100 वर्षों से ज्यादा पुराना इतिहास आज भी अविरल जारी है परम्परा संस्कृति आज इस आधुनिक युग में भी जीवित हैं । इस के लिए पूरे इन्दौर के सभी लोगों का आभार जो आप लोगो ने अपने शहर की विरासत को स्वर्ण अक्षरों में अंकित कर रखा है। यह कारवां मेहनतकश मिल मजदूरों का अब हम इन्दौरीयो का लोक उत्सव व विरासत बन चुका है।
— हरिहर सिंह चौहान