धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

भारतीय ज्ञान परंपरा अर्थ महत्व

भारतीय ज्ञान परंपरा अर्थात जो ज्ञान वेदों उपनिषदों शास्त्रीय ग्रंथ,पांडुलिपियों या मौखिक संचार के रूप में हजारों वर्षों से चला आ रहा है। इसके अंतर्गत जीवन निर्वाह करने हेतु व्यवहारिक ज्ञान जैसे शिकार या कृषि,पारंपरिक चिकित्सा, आकाशीय ज्ञान (खगोल विज्ञान), शिल्प, कौशल, जलवायु,और क्षेत्र की पारंपरिक प्रौद्योगिकियां के बारे में प्राप्त किए जाने वाला ज्ञान शामिल है।मौखिक परंपरा के अंतर्गत यह ज्ञान कहानियों,किदवंतियों लोक कथाओं अनुष्ठानों गीतों पौराणिक कथाओं दृश्य कला और वास्तु कला के रूप में प्रचलित है।

महत्व

1) यह एक समृद्ध विरासत है जो कई हजार सालों से चली आ रही है।

2) इसमें ज्ञान और विज्ञान लौकिक और पारलौकिक कर्म और धर्म तथा भोग और त्याग का अद्भुत समन्वय है।

3) भारतीय ज्ञान परंपरा स्वास्थ्य मनोविज्ञान तंत्रिका विज्ञान प्रकृति पर्यावरण और सतत विकास जैसे क्षेत्र के अध्ययन को प्रोत्साहित करती है।

4) भारतीय ज्ञान परंपरा में भरत मुनि ने पहला नाट्यशास्त्र लिखा। चरक और सुश्रुत ने संहिताओं के रूप में आयुर्वेद या आयुर्वेद विज्ञान की रचनाओं की।

5) प्राचीन शिक्षा प्रणाली मानवता को प्रोत्साहित करती थी।

6) भारत के तक्षशिला नालंदा तथा विक्रमशिला शिक्षा एवं शोध के प्रमुख केंद्र थे जहां विदेश से कई शिक्षार्थी ज्ञानर्जन के लिए आते थे।

7) भारतीय ज्ञान परंपरा सांस्कृतिक अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

8) यह आर्थिक स्थिरता और बेहतर जीवन स्तर की प्राप्ति की कुंजी है इसलिए महत्वपूर्ण है।

9) स्वदेशी उद्योगो को बढ़ावा देने हेतु जिसमें कृषि,मछली पालन,हर्बल तथा आयुर्वेदिक दवाई शामिल है के लिए आवश्यक है।

10) आर्थिक स्थिरता ज्ञान पर निर्भर करती है । लोगों को यह जानने की आवश्यकता है की अर्थव्यवस्था कैसे काम करती है। उन्हें प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन विनिमय दरों विदेशी निवेश और राष्ट्रों की आर्थिक नीतियों को प्रभावित करने वाले मुद्दे शामिल हैं की जानकारी प्राप्त होती है।

11) पारंपरिक ज्ञान आजीविका के स्रोतों में से एक है।स्वास्थ्य लाभ, पर्यावरण और आध्यात्मिकता से जुड़ा है इसलिए कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है।

12) पारंपरिक ज्ञान वनों और जैव विविधता के संरक्षण के लिए प्रचुर अवसर प्रदान करता है। जैव विविधता के संरक्षण में स्वदेशी लोग और उनके पारंपरिक तरीके लाभदायक रहे हैं।
उदाहरण के लिए गुजरात की मालधारी और राजस्थान की बिश्नोई जनजाति।

13) असमानता से निपटने जलवायु से बचने खाद्य सुरक्षा तथा असुरक्षा जैसे मुद्दों के लिए सहायक है अर्थात सतत विकास की दयोतक।

14) पारंपरिक ज्ञान कुटीर उद्योग को बढ़ावा देगा जिसमें हस्तकला, चित्रकला; मूर्ति कला,सजावटी वस्तुओं की निर्मित तथा अन्य कई हुनर शामिल हैं।

निष्कर्ष — कह सकते हैं कि भारतीय ज्ञान भारतीय लोगों की बौद्धिक संपदा है जो पीढ़ियों से चली आ रही है और उनके अस्तित्व का अभिन्न अंग है। यह भारत की सांस्कृतिक विरासत, रीति-रिवाज, विश्वासों और ज्ञान प्रणालियों को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित कर रही है। यह पारंपरिक ज्ञान भारत की ज्ञान प्रणाली और पहचान को बढ़ावा देते हैं।

— डॉ. ममता मेहता

डॉ. ममता मेहता

लेखन .....लगभग 500 रचनाएँ यथा लेख, व्यंग्य, कविताएं, ग़ज़ल, बच्चों की कहानियां सरिता, मुक्ता गृहशोभा, मेरी सहेली, चंपक नंदन बालहंस जान्हवी, राष्ट्र धर्म साहित्य अमृत ,मधुमती संवाद पथ तथा समाचार पत्रों इत्यादि में प्रकाशित। प्रकाशन..1..लातों के भूत 2..अजगर करें न चाकरी 3..व्यंग्य का धोबीपाट (व्यंग्य संग्रह) पलाश के फूल ..(साझा काव्य संग्रह) पूना महाराष्ट्र बोर्ड द्वारा संकलित पाठ्य पुस्तक बालभारती कक्षा 8 वी और 5वी में कहानी प्रकाशित। पूना महाराष्ट्र बोर्ड 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए अभ्यास मंडल की सदस्य प्रस्तुति ..सब टीवी पर प्रसारित "वाह वाह क्या बात है" और बिग टीवी पर प्रसारित "बहुत खूब" कार्यक्रम में प्रस्तुति दूरदर्शन आकाशवाणी से काव्य पाठ संगोष्ठियों शिबिरो में आलेख वाचन ,विभिन्न कविसम्मेलन में मंच संचालन व काव्य पाठ दिल्ली प्रेस दिल्ली तथा राष्ट्रधर्म लखनऊ द्वारा आयोजित व्यंग्य प्रतियोगिता में सान्तवना ,द्वितीय व प्रथम पुरस्कार ।