टाइमपास सरकारी शिक्षक
पढ़ाने में नानी मरता,
वेतन पर चर्चा रोज है।
हँसी-मजाक में दिन गुजरता,
कहते सरकार की सब दोष है।
ऐसा होता तो वैसा होता,
कहते शिक्षक की क्या इज्जत है।
अपनी करनी कभी न देखे,
कहते सरकार की सब दोष है।
बिन पंखा कैसे पढ़ाएं,
आज धूप बहुत ही तेज है।
आया पंखा सो रहे हैं,
कहते सरकार की सब दोष है।
आज आए तो कल होंगे गायब,
कर्तव्यनिष्ठ भी खूब हैं।
हाफटाइम से दिखाई न देंगे,
कहते सरकार की सब दोष है।
जो अच्छे हैं वो भी पिसते,
जैसे जौ संग पिसता घुन है।
नाम किए बदनाम शिक्षक का,
कहते सरकार की सब दोष है।
चापलूसी से काम निकालते,
बच्चों की झूठ कहते फिक्र है।
हिय तराजू तौल न पाते,
कहते सब सरकार की दोष है।
मानता हूंँ सरकार रही है दोषी,
पर सब शिक्षक भी नहीं पाक-साक हैं।
जिसको देखो सब यही हैं कहते,
कहते सरकार की सब दोष है।
— अमरेन्द्र