विलुप्त होते टेसू , झांझी
टेसू बनकर बजार में बिकने के लिए तैयार हैं लेकिन अब इसके खरिदार नहीं के बराबर है । शहरों में इसे कोई नही जानता है ग्रामीण इलाकों में ही इसके खरिदार मिलते हैं ।खासकर ब्रज क्षेत्र और इसके आस पास के इलाकों में बच्चे नवरात्री से शरद पूर्णिमा तक झांझी टेसू खेलते थे । अब यह खेल विलुप्त होता जा रहा है ।कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी इसे मनाया जाता है। इस परम्परा के बारे बताया जाता है कि महाभारत के समय भीम के पुत्र घटोत्कच का बेटा बर्बरीक झांझी नाम की लड़की से प्यार करता था , उससे शादी करने का वादा भी किया था , परंतु कौरवों की तरफ से युद्ध करने के कारण श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उनका सिर काट दिया था उन्हें जीवित रहने का वरदान मिला था इसलिए बर्बरीक जीवित रहे। भगवान ने उन्हें वरदान दिया कि हर वर्ष सबसे पहले आप की सालग मनाई जायेगी उसके बाद ही विवाह शुरु होंगें ।तब से आज तक हर साल टेसू और झांझी का विवाह किया जाता है ।
टेसू को हर साल नवरात्रि से लेकर शरद पूर्णिमा तक सजाया संवारा जाता है । यह तीन टांग पर खड़ा रहता हूं। इसका सिर्फ सिर होता है उसी में सिर पर दीया या मोमबत्ती जलाने का स्थान होता है । टेसू की शादी झांझी से होती है ।
झांझी यह एक मटकी होती है और उसमें छेद होते हैं लड़कियां उसमें दीपक रखकर झांझी गीत गाती हैं।झांझी और टेसू को गांव में हर शाम घुमाया जाता है और अटपटे गीत गाकर बच्चे सब का मनोरंजन करते हैं और गांव के लोग उन्हें बदले में पैसे अनाज देते हैं । बच्चे गांव की गलियों में गीत गाते हुए टेसू को घुमाते हैं
गीत
टेसूरा टेसूरा घंटार बजइयो
नौ नगरी दस गांव बसइयो
बस गए तीतर बस गए मोर
हरी डुकरिया ऐ लै गये चोर
चोरन के घर खेती
खाय डुकरिया मौटी
मौटी हैके गई बाजार
बाजार ते लाई धनियो
पीछे पड़ गयौ बनियौ
जब शरद पूर्णिमा आती है बच्चे इस दौरान एकत्र किये पैसों से झांझी और टेसू का विवाह धूमधाम से करते हैं। और बाद में इन्हें विसर्जित कर दिया जाता है
— अर्विना गहलोत