कविता

दिया बाती

समंदर के वो दो किनारे हम
जो मिल नहीं सकते
साथ न रहकर भी साथ हम
मगर साथ रह नहीं सकते

साथ चलते हमसफर हम
राह एक पर चल नहीं सकते
दुनिया समझते हैं मिलकर
मगर एक दूजे को समझ नहीं सकते

मोहब्बत कर लेते हैं आसानी से,
मगर निभा नहीं सकते
सपने का एक महल हमारा
मगर बना नहीं सकते

पाकर सब कुछ दुनिया से,
सहारा बन नहीं सकते
दिया बाती से पावन हम
साथ जल नहीं सकते

सौम्या अग्रवाल

पता - सदर बाजार गंज, अम्बाह, मुरैना (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तक - "प्रीत सुहानी" ईमेल - [email protected]

Leave a Reply