शहरों में वो बात नही हैं ।
शहरों में वो बात नही है।
कोई किसी का खास नही है।
लोगो में वों प्यार नही है।
मुश्किल घड़ी में परिवार का साथ नही है।।
पुरुषों के पास परिवार के साथ बैठने का वक्त नही है।
महिलाए सशक्त नही है।
बच्चे परिपक्व नही है।
रिश्तों में दरार है, पैसों की भरमार है।
पड़ोसी-पड़ोसी को नही जानता,
कोई किसी को अपना नही मानता है।
शहरों में वों बात नही है,
लोग तो बहुत है, पर कोई किसी का खास नही है।
— प्रशांत अवस्थी “रावेन्द्र भैय्या”