धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वेदों का परिचय और महत्व

वेद हिंदू धर्म का सर्वोच्च एवं सर्वोपरि ग्रंथ है। वेद जगत के सभी ग्रंथों में सबसे पुराना धर्म ग्रंथ है। वेद पूर्णतया ऋषियों द्वारा सुने गए ज्ञान पर आधारित है इसलिए इसे श्रुति कहा जाता है। वेद संस्कृत के शब्द से निर्मित है जिसका अर्थ ज्ञान होता है। हिंदू धर्म की व्याख्या करने वाले चार वेद हैं जो निम्नानुसार हैं—
1) ऋग्वेद— वेदों में सबसे पहले वेद ऋग्वेद है जो पदयात्मक(गेय)है। ऋग्वेद में 10 मंडल,1028 सूक्त तथा 11हजार श्लोक हैं। शाकलप, वास्कल, आश्रमलायन,शाखाएं,मांडूकायन इसके पांच क्रम हैं। इस वेद में देवताओं के आह्वान के मंत्र हैं।
2) यजुर्वेद —यजुर्वेद एक श्रुति ग्रंथ है। यज्ञ का अर्थ दान होता है। यजुर्वेद में अधिकतर यज्ञों के नियम और विधान है इसलिए यह वेद कर्मकांड प्रधान भी कहा जाता है। यजुर्वेद वेद की दो शाखाओं में बताया गया है शुक्ल और कृष्ण।
3) सामवेद— सामवेद गीत संगीत का मुख्य वेद है। प्राचीन आर्य द्वारा सामवेद का गान किया जाता था। सामवेद में 1875 श्लोक हैं। इसमें 1504 ऋग्वेद से लिए गए हैं। इस वेद में 75 ऋचाओं तथा तीन शाखों में ऋषि अग्नि और इंद्र आदि देवी देवताओं का वर्णन है। सामवेद में सभी वेदों का सार समाहित है।
4) अथर्ववेद —- महर्षि अगिरा द्वारा रचित अथर्ववेद में 20 अध्याय,730 सूक्त,5687 श्लोक और 8 खंड हैं। देवताओं की स्तुति के साथ चिकित्सा, आयुर्वेद,रहस्यमई विधाएं,विज्ञान आदि शामिल है। ब्रह्मा जी की सर्वत्र चर्चा होने के कारण इस वेद को ब्रह्मा वेद भी कहा गया है।

वेदों का महत्व—-
1)वेद सनातन धर्म का मूल आधार है। यही एकमात्र ऐसे ग्रंथ हैं जो आर्यों की संस्कृति और सभ्यता की पहचान करवाते हैं।
2) मनुष्य ने अपने बाल्यकाल से धर्म और समाज का विकास केवल वेदों से किया है।
3)वेदों में मानव के जीवन जीने की कला मिलती है।
4)वेदों में वर्ण व्यवस्था एवं आश्रम पद्धति की जानकारी के साथ-साथ रीति-रिवाज एवं बौद्ध धर्म का वर्णन और विभिन्न व्यवसायों की जानकारी दी गई है। ।
5) जैमिनी ऋषि,पराशर ऋषि,कात्यायन ऋषि, याज्ञकल्वय ऋषि, व्यास ऋषि आदि प्राचीन काल के वेद वक्ता रहे हैं। 6)वेदों के आधार पर अन्य लोगों ने ग्रंथों का निर्माण किया है।
7)वेद हमारी संस्कृति की शाखाएं हैं। 8)वेदों को इतिहास का ऐसा स्रोत कहा गया है जो पौराणिक ज्ञान विज्ञान का अथाह भंडार है।
9) वेदों में देवी देवताओं,ब्रह्मांड,ज्योतिष, गणित,औषधि, विज्ञान,भूगोल,धर्म, संगीत और रीति रिवाज से जुड़ी जानकारी मिलती है।
10)वेदों में समाज के कल्याण के बारे में भी बताया गया है।
11)वेदों की मदद से भारतीय भाषाओं का मूल स्वरूप निर्धारित करने में मदद प्राप्त हुई है।
12)वेद भौतिक सुख सुविधाओं तथा लाभों को प्राप्त करने के साधन बताने के साथ मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी बताते हैं। 13) वेदों का ज्ञान सूर्य के प्रकाश के समान समस्त सृष्टि का पोषण एवं कल्याण के लिए लाभकारी है।
14) वेद में मनुष्य जीवन की प्रमुख समस्याओं का समाधान है।
15)वेद ना केवल मानव जीवन के लिए मूल्यवान और गौरवपूर्ण है बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए हितकारी हैं।

2) वेदांग — वेदों के अध्ययन में सहायक ग्रंथ को वेदांग कहते हैं। शिक्षा, कल्प,व्याकरण, ज्योतिष, छंद और निरुक्त यह छ वेदांग हैं। इसमें छंद को वेदों का पाद (पैर) कल्प हाथ,ज्योतिष नेत्र,निरुक्त कान,शिक्षा नाक और व्याकरण को मुख कहा गया है। इस प्रकार यह वेदांग के 6 अंग है जो वेदों के सम्यक और पूर्ण अर्थ को समझने के लिए उपयोगी है।
1) शिक्षा—- इसमें वेद मंत्रों के उच्चारण करने की विधि बताई गई है। स्वर एवं वर्ण आदि के उच्चारण प्रकार की शिक्षा दी जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य वेद मंत्रों के विशुद्ध उच्चारण किए जाने का है।
2) कल्प—- वेदों के किस मंत्र का प्रयोग किस कर्म में करना चाहिए यह इस वेदांग में बताया गया है। कल्प वेद प्रतिपादित कर्मों का भली भांति विचार प्रस्तुत करने वाला शास्त्र है। इसमें यज्ञ संबंधी नियम दिए गए हैं।
3) व्याकरण —- वेद शास्त्र का प्रयोजन तथा शब्दों के यथार्थ ज्ञान को प्राप्त करने के लिए इसका अध्ययन आवश्यक होता है। इस संबंध में पाणिनिय व्याकरण ही वेदांग का प्रतिनिधित्व करता है।
4) निरुक्त— वेदों में जिन-जिन शब्दों का प्रयोग जिन-जिन अर्थों में किया गया है उनके उन उन अर्थों का निश्चयात्मक रूप से उल्लेख निरुक्त में किया गया है। इसे वेद की आत्मा भी कहा जाता है।
5) ज्योतिष— इससे वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों का समय ज्ञात होता है। वेद यज्ञ कर्म में प्रवृत्त होते हैं और यज्ञ काल के आश्रित होते हैं और ज्योतिष शास्त्र से काल का ज्ञान होता है। अनेक वैदिक पहेलियों का ज्ञान भी बिना ज्योतिष के नहीं हो सकता।
6) छंद —वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उष्णिक आदि छंदों की रचना का ज्ञान छंद शास्त्र से होता है।

इस प्रकार वेदांगों का ज्ञान वेद का उत्तम बोध होने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

वेदांग का महत्व —- वेदांग वेदों के अंग है और वेदों के अर्थ को समझने और वैदिक कर्मकांड को समझने में मदद करते हैं।
2)वेदों का अध्ययन करने वाले व्यक्ति को समाज का मार्गदर्शक माना जाता है।

3)यह वेदांग वैदिक परंपराओं के अध्ययन संरक्षण और सुरक्षा में सहायक होते हैं और संवर्धन का कार्य करते हैं।

— डॉ. ममता मेहता

डॉ. ममता मेहता

लेखन .....लगभग 500 रचनाएँ यथा लेख, व्यंग्य, कविताएं, ग़ज़ल, बच्चों की कहानियां सरिता, मुक्ता गृहशोभा, मेरी सहेली, चंपक नंदन बालहंस जान्हवी, राष्ट्र धर्म साहित्य अमृत ,मधुमती संवाद पथ तथा समाचार पत्रों इत्यादि में प्रकाशित। प्रकाशन..1..लातों के भूत 2..अजगर करें न चाकरी 3..व्यंग्य का धोबीपाट (व्यंग्य संग्रह) पलाश के फूल ..(साझा काव्य संग्रह) पूना महाराष्ट्र बोर्ड द्वारा संकलित पाठ्य पुस्तक बालभारती कक्षा 8 वी और 5वी में कहानी प्रकाशित। पूना महाराष्ट्र बोर्ड 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए अभ्यास मंडल की सदस्य प्रस्तुति ..सब टीवी पर प्रसारित "वाह वाह क्या बात है" और बिग टीवी पर प्रसारित "बहुत खूब" कार्यक्रम में प्रस्तुति दूरदर्शन आकाशवाणी से काव्य पाठ संगोष्ठियों शिबिरो में आलेख वाचन ,विभिन्न कविसम्मेलन में मंच संचालन व काव्य पाठ दिल्ली प्रेस दिल्ली तथा राष्ट्रधर्म लखनऊ द्वारा आयोजित व्यंग्य प्रतियोगिता में सान्तवना ,द्वितीय व प्रथम पुरस्कार ।