सामाजिक

न जन्म सहज न मृत्यु सहज

पुराने समय में महिलाएं प्रसव घर पर ही करती थी। उस समय दाईया होती थी जो सुरक्षित प्रसव कराती थी।अस्पताल जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। न कोई ज्यादा खर्च न कोई झंझट सरलता से प्रसव हो जाता था।वर्तमान युग में प्रत्येक प्रसव अस्पताल में हो रहा है और डॉक्टर पैसा कमाने के चक्कर में साधारण प्रसव के स्थान पर आपरेशन द्वारा प्रसव कराते है।बच्चे के जन्म के साथ परिवार में खुशियां आती है और प्रसव आपरेशन द्वारा होता है तो डॉक्टर का बिल बढ़ जाता है इसलिए आपकी खुशी के साथ साथ डॉक्टर भी खुश हो जाता है।
पहिले जब कोई व्यक्ति बीमार या दुर्घटना ग्रस्त होता था तो डॉक्टर यथा संभव साधनों द्वारा उसका उपचार करते थे।उनकी भावना मरीज को ठीक करने की होती थी।जब हमारा उद्देश्य सही होता है तो स्वयं भगवान आपकी मदद करने के लिए आ जाते है और अक्सर बीमार ठीक हो जाते थे।आजकल जितने नये अनुसंधान हुए हैं उनके अनुपात से रोगों की संख्या भी बढ़ी है।आज जैसे ही रोगी अस्पताल में आता हैं उनकी अनावश्यक पैथोलॉजी टेस्ट, अनावश्यक एक्स-रे ,सोनोग्राफी, एंजियोग्राफी, एम०आर०आई और सी०टी० स्कैन जैसे टेस्ट कराये जाते हैं इन टेस्टों का उपयोग मरीज को ठीक करना कम बल्कि मरीज का बिल बढ़ना है ताकि डॉक्टर कमाई कर सके।इतना तो छोड़िये डा०- मृत शरीर को को भी वेंटीलीटर पर रखकर 5-6 दिन उससे भी कमाई करते है।वेंटीलिटर एक लाईफ सपोर्टिंग सिस्टम है इससे मरीज की नही बल्कि डॉक्टर की लाईफ को ज्यादा सपोर्ट मिलता है ।कहते है भगवान की लाठी में आवाज नही होती । डॉक्टर आजकल जन्म और मृत्यु को भी अपने हाथ में ले रहे है।मरीज अपनी समस्या के निदान के लिए अस्पताल आता है परन्तु आधुनिक अस्पताल उनकी समस्या घटाने के लिए नही अधिक बढ़ाने के लिए है।
हमें यह बात ध्यान में रखना चाहिए यदि हम किसी के साथ गलत व्यवहार करते है तो हमारे साथ कुछ अच्छा नही होने वाला।इसलिये डॉक्टर वही करे जिससे मरीज का हित हो।जन्म और मृत्यु से छेड़- छाड़ न करें।उसे स्वाभाविक रूप से सम्पन्न होने दे।न जन्म सहज न मृत्यु सहज

— डॉ. प्रताप मोहन “भारतीय”

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय"

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